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तीन लाख रुपये और एक फ्लैट की खंडनी लेकर विनोद पंजाबी ने वापस लिया एफआईआर !!

   डीसीपी सुधाकर पाठारे, विनोद पंजाबी ने मिलकर सुनील सिंह से वसूला लाखों की               खंडनी, पुलिस अगर दोस्त हो तो किसीसे से भी खंडनी वसूलना होता है आसान ? 
     विनोद खथुरिया (पंजाबी) 

उल्हासनगर: उल्हासनगर मध्यवर्ती पुलिसस्टेशन में 2096/2024 को एक मुकदमा दर्ज किया गया। जिसका आधार बताया गया कि एक वर्ष पूर्व कलवा ने रिवाल्वर दिखाया था। पत्रकार कमलेश विद्रोही ने कालर पकड़ा, गाली-गलौज कर थप्पड़ जड़े, क्योंकि अनिल गुप्ता की जो जमीन कथित तौर पर विनोद ने खरीदा था उस जमीन पर सुनील सिंह उर्फ कलवा अवैध निर्माण कर रहा था। अब उस मुकदमे को खत्म करने के लिए विनोद खथुरिया (पंजाबी) ने तीन लाख रुपया और एक फ्लैट लेकर एक कसमनामा लिखकर दिया है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था। मैने गलतफहमी में मुकदमा दर्ज करवाया था। मुकदमा तो अब खत्म हो जायेगा परंतु, झूंठे मुकदमे से जो बदनामी हुई और पुलिस की प्रताड़ना झेलनी पड़ी उसका क्या? 
.   डीसीपी सुधाकर पाठारे 

एक बार फिर पूरी कहानी। 

2023, एप्रिल महीने में विनोद खथुरिया (पंजाबी) का फोन आया, सामने से कहा मैं मर रहा हूँ। आप देखने नहीं आये। मैने कहा ऐसा क्यों कह रहे हो? मैंने कहा मैं कैसे आऊ आप कहाँ रहते हैं मुझे पता नहीं है। विनोद ने अपना पता बताया जो मेरे घर के नजदीक, शहीद दुनीचंद कालेज के पीछे ट्रांसपोर्ट वाली बिल्डिंग के पहली मंजिल पर है। विनोद ने कहा मैने मुंबई के जेजे अस्पताल में आप्रेशन कराया है। मैं न पैदल चल सकता हूँ और न ही रिक्शे पर और मैने जो जमीन खरीदी थी उस पर कलवा अवैध निर्माण कर रहा है। मैं क्या करुं मैने कहा आप 112 पर काल करो और मैं अपने घर चला गया। दूसरे दिन फिर विनोद का फोन आया और कहा आप फ्री हो तो एक बार आ जाओ। बिमार व्यक्ति पैसे-पैसे को मोहताज क्योंकि अब तक मुझे पता चल चुका था कि उसकी पत्नी और बेटी साथ नहीं रहते, पत्नी से तलाक हो चुका है। मैं उसके घर गया शायद कोई जरूरत होगी? पहुंचने पर कहा बैठो, अभी दो जन और आ रहे हैं उनके साथ साईट पर जाकर काम बंद करा दो, मैने कहा मैं नहीं जाऊंगा, आये हुए दो व्यक्त्ति साईट पर गये। विनोद ने कहा मेरी मदद नहीं करोगे? मैने कहा पुलिस में शिकायत करो मैं वहाँ जाकर आपकी पैरवी कर दूंगा, परंतु साईट पर जाकर गाली गलौज और मारपीट में साथ नहीं दूंगा क्योंकि मैं पत्रकार हूँ, गुंडा नहीं। इस पर विनोद कहा मेरे नामपर एक एप्लीकेशन टाईप करवा लाओ जो मैं चोपड़ा कोर्ट के सामने से टाईप करवा लाया। और अपने बेटे से कहकर पुलिस थाने, महानगर पालिका, डीसीपी व एसीपी कार्यालय पहुंचवा दिया। स्थानीय पुलिस थाने जाकर निरीक्षक दिलिप फुलपगारे से मिला और तब तक आता जाता रहा जबतक काम बंद नहीं हो गया। काम बंद होने पर जमीन मालिक अनिल गुप्ता डेवलपर सुनील सिंह(कलवा) का फोन विनोद को आने लगा। उनकी आपस में बातें होने लगी, परंतु पुलिसस्टेशन पर मेरे द्वारा दबाव बनवाता रहा कि कलवा पर मुकदमा दर्ज हो, मैं तत्कालीन वरिष्ठ निरीक्षक फुलपगारे से मिलकर बातचीत करता रहा, एक दिन चाय के उपरांत निरीक्षक साहब ने कहा विनोद तुमसे और बात करता है और कलवा से कुछ और डबल क्रास कर रहा है दुबेजी सावधान हो जाइए, आप जितना समझ रहे हैं विनोद उतना सही व सीधा नहीं है। संयोग से उसी दिन कलवा अपना स्टेटमेंट देने थाने आया हुआ था। मुझे मिल गया और अपने रिस्तेदार के बर्तन की दुकान पर ले गया, जहाँ उसने मुझे बताया कि विनोद का ब्याज समेत सात लाख अनिल पर निकलता है। वह रुपया भी उसने रोकड़ा या फिर चेक से नहीं दिया था। उसने अनिल गुप्ता को दो बार अंबरनाथ पुलिस स्टेशन से छुड़ाया था और रिश्वत के रूप में कोते नामक पुलिस निरीक्षक को दिया था। परंतु आप कहेंगे तो मैं बढाकर दे दूंगा, परंतु काम करने देगा तब, परेशान करेगा तो मैं काम छोड़ दूंगा मेरा लगा हुआ रुपया डूबेगा ही विनोद को भी कुछ नहीं मिलेगा। 
        वरिष्ठ निरीक्षक शंकर अवताड़े 

अनिल गुप्ता को रूपया कैसे दिया गया?

अनिल गुप्ता पर कत्ल की एफआईआर दर्ज न हो इसलिए अंबरनाथ पुलिस स्टेशन के वरि. निरीक्षक कोते को रिश्वत के रूप में दिये गये रुपयों के एवज में अनिल की जमीन का खरीदीखत विनोद की पूर्व पत्नी के नाम तैयार किया गया। मजे की बात यह है कि वह करारनामा भी फाड़ दिया गया था। परंतु धूर्त विनोद ने उस करारनामे की छायांकित (झेराक्स) प्रति निकालकर रख लिया था। जिसके आधार पर पंद्रह लाख रुपये मांग रहा था। हमारे पास वह रिकार्डिंग मौजूद है जिसमें विनोद की पूर्व पत्नी कह रही है मैने रुपये ब्याज पर लेकर दिये हैं। मेरे सात लाख वापस कर दो नहीं तो मेरी पुलिस में बहुत पहचान है हम झूंठा मुकदमा कर तुम्हें जेल में डलवा देंगे! वही पत्नी जो तलाकशुदा है और बिमारी में विनोद की तिमारदारी करने भी नहीं आयी, अलग रह रही है। मुझपर हुए झूंठे मुकदमे से मेरे शुभचिंतकों ने सभी अधिकारियों को पत्र लिखा और उनके जवाब भी आये। जांच की बात कही गई है। परंतु जांच वही पुलिस थाना कर रहा है, जिसमें झूंठी प्राथमिकी दर्ज हुई थी। वह भी एक कनिष्ठ पुलिस अधिकारी उमेश सावंत कर रहा है जो जांच के नामपर सिर्फ अक्षता उत्तेकर को बार बार पुलिस स्टेशन, स्टेटमेंट दर्ज करने के बहाने बुलाता है और कहता है तुम इस पचड़े में क्यो पड़ रही हो, वह लोग गुंडे हैं। पत्रकार लोग भी पैसे लेते हैं आदि-आदि। हमारे महाराष्ट्र का पुलिस महकमा कितने ढंग व जिम्मेदारी से काम करता है यह आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं, जब वरिष्ठ निरीक्षक की जांच उसी पुलिस थाने का कनिष्ठ कर्मचारी कर रहा हो। 

मुझे फसाने के लिए इस्तेमाल जरिया 

विनोद, कलवा व अनिल तीनों आमने-सामने हुए और तेरह लाख रुपये देने पर आपसी सहमति बनी और नया करारनामा बनाने की तैयारी हुई। इस तरह विनोद को अब ओरिजनल व नया, अपने नाम का करार नामा मिल गया था। मुकदमे में 35 कत्ल के सजायाफ्ता सिंह मामा गवाह हैं, जिन पर पहला टाडा लगा था। पैंतीस वर्ष जेल में रहकर बाहर आये हैं। बात यह हुई थी की पहला गाला बिकते ही विनोद को रूपये दे दिये जायेंगे।पंद्रह दिन बीत गये गाला (गोदाम) नहीं बिका इधर विनोद को रुपये की जरुरत थी। वह बार-बार कलवा को फोन करता एक दो बार कलवा ने फोन पर मुझे बताया भी तो मैने कहा रुपये देकर छुटकारा पाओ कलवा ने कहा गाला बिका नहीं रहा है और मेरे पास इतने रूपये हैं नहीं। विनोद ने जब अपनी माँ की बिमारी की बात मुझसे कही तो मैने भी कलवा से कहा और उसने दो बार में दो लाख रुपए विनोद को दिये एक लाख अपने कार्यालय मेरे सामने दिया। लेकिन विनोद की हकीकत विनोद और उसके लोगों के द्वारा जानने के बाद मैने विनोद के घर आना जाना छोड़ दिया। यहाँ तक की फोन करना भी बंद कर दिया। एक दो बार विनोद चोपड़ा कोर्ट पर नवीन केसवानी की बीवी के साथ मिला तो बताया की डीसीपी साहब का खास आदमी गणेश वाघमुड़े मेरा दोस्त है कोई काम होगा तो बताना तुम्हारी भी कमाई करवा दूँगा मैने कहा मैं पुलिस की दलाली नहीं करता। उसके बाद मैने अंबरनाथ शिवाजी नगर पुलिस स्टेशन की खबर लिखा उसमें डीसीपी साहब की तस्वीर लगा दी, तब भी विनोद ने मुझे मना किया और गणेश वाघमुड़े से मिलाकर समझौता कराने की बात कही मैं टाल गया। इसी तरह अंबरनाथ शिवाजी नगर पुलिस थाने से नब्बे ग्राम एमडी ड्रग पकड़े जाने और आरोपी सहित गायब होने की खबर मैने लिखा, अपने यु टियुब चैन पर भी चलाया। उसपर भी समझौता करवाने के लिए विनोद तैयार था। सूत्रों के मुताबिक गणेश वाघमुड़े और डीसीपी सुधाकर पाठारे उस एमडी ड्रग मामले की कमाई में हिस्सेदार थे। इन सभी बातों का बदला लेने के लिए विनोद पंजाबी को अपने हाथों में लेकर जोन-4 पुलिस उपायुक्त सुधाकर पाठारे ने मुझे झूंठे मुकदमें, में फंसाया है। विनोद खथुरिया पंजाबी का व्यापार सुपारी लेकर लोगों के मकान दुकान व प्लाट जबरी खाली करवाने के अलावा मध्यप्रदेश से असलहा मंगाना, पुलिस से सांठगांठ कर, पकड़ाना तोड़ करवाना खुद कमाना और पुलिस को कमवाना है। विनोद खथुरिया पंजाबी को इस कारोबार में स्थानीय पुलिस साथ देती है। डीसीपी सुधाकर पाठारे, वरि.निरीक्षक शंकर अवताड़े और विनोद खथुरिया की दोस्ती के कारण आठ महीने बीत जाने के बाद भी जांच पड़ताल पूरी नहीं हुई और चार्जशीट न्यायालय नहीं पहुंची। अब फ्लैट और रुपये मिले हैं तब शायद जांच-पड़ताल पूरी हो और चार्जशीट न्यायालय तक पहुंच जाय, हमने उच्च न्यायालय और सुप्रीम अदालत के साथ सभी संबंधित विभागों को पत्र लिखा कई बार समाचार लिखे परंतु वीआईपी न होने के कारण किसीने ध्यान नहीं दिया। यह है आम आदमी की औकात कहने को लोकतंत्र है। 

अ ब एक फ्लैट और तीन लाख रुपये लेकर विनोद द्वारा दिए गये एफिडेविट (कसमनामें) के बाद मुकदमें का कारण सभी के समझ में आ गया होगा और डीसीपी सुधाकर पाठारे और वरिष्ठ निरीक्षक शंकर अवताड़े को कितनी हिस्सेदारी मिली यह जांच का विषय है। परंतु जांच करेगा कौन? महाराष्ट्र के गृहमंत्री और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी बड़े बड़े कामों में व्यस्त रहते हैं उनको छोटे पत्रकारों और आम जनता से कोई सरोकार नहीं है। यही कारण है कि महाराष्ट्र में पुलिसिया अत्याचार और गुंडों का मनोबल बढ़ा हुआ है। 

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