जन जन की भागीदारी बढ़ाने के लिए राज्य, जिला और पंचायतों में बनाए जाएंगे संगठन!
संगोष्ठी में शामिल नदी बचाओ समीती सदस्य
हेमलता म्हस्के
गंगा सहित देश की सभी छोटी-बड़ी नदियों को बचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक रूप से पहल करने की जरूरत है। इसके लिए देश के सभी गांवों और शहरों के जन-जन को और उनके सभी तरह के प्रतिनिधियों को देश की समस्त नदियों की बिगड़ती स्थिति से अवगत कराने के साथ ही उबारने के लिए देशवासियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करना होगा। यह निर्णय दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान, गंगा मुक्ति आंदोलन अवाार्ड संस्थापक अनिल प्रकाश व गणमान्य लोगों की मौजूदगी में गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत और सुप्रीम कोर्ट के वकील, जन हितैषी योद्धा अरुण मांझी की अध्यक्षता में हुई बैठकों में हुए मंथन के बाद निष्कर्ष के रूप में सामने आई है। बैठकों में यह बात खुल कर सामने आई कि गंगा सहित सभी नदियां, सभी जातियों, धर्मों और संप्रदायों के लिए जीवन दायिनी है। इन नदियों के कारण उनके तटों पर रहने वाले विभिन्न समुदायों के लिए आजीविका के अवसर पैदा हुए, साथ ही भारतीय संस्कृति का विकास हुआ। इसलिए गंगा सहित देश की सभी छोटी बड़ी नदियां सिर्फ संसाधन नहीं बल्कि हमारी विरासत हैं, धरोहर हैं और जागृत स्मारक हैं, जिनकी रक्षा करना हम सभी का सामूहिक कर्तव्य है लेकिन यह दिल और जेहन को झकझोरने वाला कठोर सत्य है कि नदियों की स्थिति अब पहले जैसी एकदम नहीं रही है। नदियों के साथ खिलवाड़ पर खिलवाड़ हो रहा हैं, गंगा व सभी सहायक छोटी बड़ी नदियों को बांधने, उनके किनारे को मनोरंजन व पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित करने से स्थित ज्यादा विकट दिखाई पड़ रहा है। नदियों के जल और किनारों को संसाधन मान कर पूंजीपतियों सहित विभिन्न ताकतवर लोग बेलगाम होकर उनका भरपूर दोहन कर रहे हैंं, मानों नदियां केवल उन्हीं की संपदा हो।आमजनों को नदियों से दूर खदेड़ा जा रहा है या वे विस्थापित होने पर मजबूर हैं। नदियों के साथ हो रहे दुरव्यवहार के कारण सिर्फ मानव ही नहीं पशु पक्षियों के साथ वनस्पति जगत भी तबाह हो रहे हैं। मूल संस्कृति भी छिन्न भिन्न हो रही हैं। गंगा सहित सभी छोटी बड़ी नदियां प्रदूषण और अतिक्रमण का शिकार हैं। केंद्र व राज्य सरकारों की उदासीनता इसका एक मुख्य कारण हैं। कई छोटी नदियाँ मरने की कगार पर पहुंच गई हैं। विशेषज्ञ चीख चीख कर शोधों के जरिए बता रहे हैं कि एकांगी उपायों से नदियों का भला नहीं होने वाला है। हालांकि बीते वर्षों में सरकारों की ओर से थोड़ी बहुत कोशिशें की गईं लेकिन वह कोशििशें ऊंट के मुंह में जीरा समान ही साबित हो रही हैं। पुरानी विभिन्न सरकारों द्वारा शुरू की गई योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई या उनका ठीक से क्रियान्वयन ही नहीं हो सका। समय समय पर गंगा मुक्ति आंदोलन जैसे अनेक आंदोलन भी हुए हैं, जिसके कुछ बेहतर परिणाम भी हासिल हुए हैं लेकिन अब फिर से कई नई चुनौतियों सामने आ गई हैं, जिनसे नदियों का संकट बहुत गहराता जा रहा है। नदियों का उद्धार अकेले सरकारों के बस की बात नहीं रह गई है। इसके लिए सभी सरकारोंं, जातियों, धर्मों, संप्रदायों की जनता को मिलजुल कर सही दिशा में वैज्ञानिक समझ के साथ प्रयास को अंजाम तक पहुंचाना होगा। चार दशक पूर्व गंगा को दो जमींदारों के कब्जे से मुक्ति दिलाने के लिए अनिल प्रकाश के नेतृत्व में चले आंदोलन और फिर उसके कामयाब होने की उपलब्धियां के साथ चर्चित गंगा मुक्ति आंदोलन के नेतृत्वकारी साथियों द्वारा फिर से जन-जन को जगाने और उन्हें संगठित करने का अभियान शुरू हुआ है। गंगा मुक्ति आंदोलन की ओर से दिल्ली में गंगा सहित सभी नदियों की मौजूदा स्थितियों पर विचारार्थ तीन बैठकें आयोजित हुईं, जिनमें नदियों के उद्धार के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास करने वाले साथियों और कार्यकर्ताओं के साथ पूर्व और वर्तमान सांसदों व विधायकों और नदी विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। इनके अलावा संतोष भारतीय, कुमार प्रशांत, सुधाकर सिंह, अनिल चमडिया, अली अनवर, जावेद अनवर मणि भूषण, धीरेंद्र कुमार, निखिलेश झा, डॉक्टर सुधीर मंडल, अमिताभ, दुर्गा प्रसाद सिंह, एमपी सिंह सुधांशु रंजन ,अमिताभ पाराशर, आकाश, रंजीत, रेखा सिंह, दिनकर कपूर आदि चिंताशीलों ने भाग लिया। इन सभी ने मिल कर सर्वसम्मति से यह तय किया है कि गंगा सहित सभी नदियों को बचाने के लिए सरकार को जगाने के लिए सभी सांसदों को पत्र लिखा जाए और उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाए। इन बैठकों में इस बात पर चिंता व्यक्त की गई कि नई पीढ़ी इस बात से पूरी तरह अनजान है कि देश की नदियां जनजीवन के लिए कितना उपयोगी रही हैं और वर्तमान में इनकी क्या दशा दुर्दशा हो गई है। नई पीढ़ी को नदियों के इतिहास, भूगोल और संस्कृति के साथ उत्पन्न हो रही विभिन्न समस्याओं से अवगत कराने के लिए विभिन्न भाषाओं में एक पुस्तिका तैयार की जाए और इसी के साथ सोशल मीडिया पर निरंतर प्रचार प्रसार की गतिविधियों को तेज करने और कविता,गीत और नाटकों के जरिए जन जागरण के लिए हरेक राज्य में स्थानीय भाषाओं के कवियों, कलाकारों और नाटककारों की सांस्कृतिक टीम बनाने का भी निर्णय किया गया। देश की सभी नदियों से इतिहास, भगोल और संस्कृति और समस्याओं पर एक ग्रंथ भी तैयार किया जाए। जिसके संपादन की जिम्मेदारी प्रसून लतांत को दी गई जो संपादकीय मंडल की देखरेख में ग्रन्थ को तैयार किया जाएगा।
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