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ठाणे जिले में तबादलों का घोड़ा बाजार, वरिष्ठ निरीक्षक डेढ़ और उपायुक्त तीन से पांच करोड़??

भाजपा-शिवसेना राज में "रुपये लेकर कमाऊ जगहों पर होते हैं पुलिस विभाग के तबादले" 

      मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अभिजीत दरेकर 

"किस किस से कहिये किस किस को रोइये आराम बड़ी चीज है मुह ढककर सोइये" जब मैं किसी काम को करने में आलस्य करता था, तब मेरे पिताजी यह स्लोगन कहा करते थे। जो आज महाराष्ट्र की जनता पर चरितार्थ होता है। उल्लेखनीय है कि उल्हासनगर के और महाराष्ट्र के कथित नेता और कार्यकर्ता चाहे वे किसी भी पार्टी के क्यों न हों, उनको भ्रष्टाचार से कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसलिए अब कहा जाने लगा है कि सिर्फ अपने घर का चूल्हा जलाने के लिए लोग कार्यकरता बनते हैं। और अपनी तीन पीढ़ियों के लिए व अय्याशी के लिए धन इक्ट्ठा करने के लिए नेता बनते हैं। समाज सेवा तो सिर्फ छलावा है। ऐसा मैं इसलिए लिख रहा हूँ, क्योंकि महाराष्ट्र की स्थिति लिखवा रही है।
                                                                         उपायुक्त डा.सुधाकर पाठारे 

मैने एक खबर लिखा था कि "ठाणे के भ्रष्ट पुलिस उपायुक्त ने रु.३ करोड़ देकर खरीदा मुंबई पुलिस उपायुक्त का पद? कया यह खबर महाराष्ट्र के किसी पार्टी के कार्यकर्ता ने नहीं पढ़ा? अगर पढ़ा तो अपने किसी नेता से क्यों नहीं पूछा? रुपये देकर पुलिस अधिकारी पद खरीदेंगे तब क्या वे पुलिस स्टेशनों में बैठकर न्याय करेंगे? "खल निग्रहणाय और सद् रक्षणाय" करेंगे? या रुपये कमाने के लिए 'खल' यानी दुष्टों का संहार करेंगे या संरक्षण जो उनको कमाकर देनेवाले हैं ! 

ठाणे परिमंडल-४ उपायुक्त डा.सुधाकर पाठारे का तबादला सातारा जिले के अधिक्षक के रुप में कर दिया गया था। परंतु वे तबादले से नाखुश थे, इसलिए उन्हें फिर ठाणे के परिमंडल-४ उपायुक्त के रूप में उल्हासनगर में स्थापित किया गया यह तो जग जाहिर है। परंतु अब जो सूत्र बताते हैं वह जानकर अंबरनाथ के विधायक डा.बालाजी किणीकर को जिन्होंने वोट दिया है, उनका का सर शर्म से झुक जायेगा। क्योंकि किणिकर और उनके साथी अभिजीत दरेकर जो मुख्यमंत्री के खासमखास हैं। इन्हीं दोनो की मध्यस्थता या फिर दलाली कहें, उसीके चलते भ्रष्ट अधिकारी सुधाकर पाठारे ने ३ करोड़ में अपना तबादला सातारा से बदलकर मुंबई करवाया! यह मैं नहीं कह सकता कि यह रुपया मुख्यमंत्री ने लिया या फिर सांसद श्रीकांत ने? इस तरह अगर पुलिसबल के तबादलों में "घोड़ा बाजार" चलता रहेगा तो कानून व्यवस्था कैसे बरकरार रहेगी इसका जवाब किस नेता या कार्यकर्ता के पास है? एक जमाना था नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते थे तो वे अपना इस्तीफा देकर जांच कराते थे, परंतु आजकल न नेताओं को शर्म है और न ही उनके पिछलग्गू कार्यकर्ताओं को सारी नीति और नियत को तिजोरियों में बंदकर पत्तल चाटने के लिए पिछलग्गू बने हुए घूमते हैं। ताकि उन्हें भी कोई पद मिल जाय और वे भी सत्ता की दलाली कर कुछ रुपये कमा सकें और अच्छे कपड़े पहनकर दिखावा कर सकें? महाराष्ट्र की या उल्हासनगर की जनता को क्या कहें? महाराष्ट्र में जबसे शिंदे सरकार स्थापित हुई है। सारे महाराष्ट्र में भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ गया है और ठाणे पर ज्यादा ही मेहरबान है। 
अग्निपर्व टाईम्स के आरोपों पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और गृहमंत्री जांच करायेंगे? ठाणे परिमंडल चार के पुलिस उपायुक्त को दो वर्ष से ज्यादा समय तक उल्हासनगर में रखा गया और जब उनका तबादला सातारा पुलिस अधिक्षक के रुप में किया गया, सूची जारी हुई, जिसकी एक कापी अग्निपर्व टाईम्स के पास है। उसके कुछ घंटों के बाद ही फिर से सुधाकर पाठारे को परिमंडल चार उल्हासनगर बुला लिया गया और चार्ज दे दिया गया। और गणेशोत्सव के अंतीम दिन उनकी विदाई मुंबई पुलिस उपायुक्त के रुप में किया गया। समारोह में वीआईपी भोजन रखा गया जिसका कुल खर्च 12 से 15 लाख रुपये होने का आकलन किया जा रहा है। खर्च किसने किया यह जांच का विषय है, परंतु जांच करेगा कौन? जब मित्र मुख्यमंत्री हो? इसी वर्ष नवंबर में महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव होना है। तो क्या सरकार पुलिस विभाग के तबादलों से रुपया कमाकर चुनावों में होनेवाला खर्च बटोर रही है। यह सवाल अब महाराष्ट्र के गली-गली में पूछा जा रहा है, जवाब देंगे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे साहब। 

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