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MD ड्रग पेडलर को ले देकर छोड़ने वाले संभाजी काले DB से बेदखल!

लेनदेन कर MD ड्रग छोड़ने वाले संभाजी काले को निकाला गया डीबी से, बचा रहे वरि.निरीक्षक अशोकभगत की जांच कब? 
उपायुक्त 
अंबरनाथ : अंबरनाथ छत्रपति शिवाजी नगर पुलिस स्टेशन में कार्यरत संभाजी काले नामक पुलिसकर्मी ने शिवमंदिर के पीछे फ्लोरा नामक इमारत में छापेमारी कर एक ड्रग स्मगलर को 90 ग्राम एमडी ड्रग के साथ पकड़ा और पुलिस स्टेशन ले आये परंतु ले देकर बिना मामला दर्ज किये ही छोड़ दिया। छापे के दौरान का विडियो अग्निपर्व टाईम्स को मिल गया और वह विडियो उन्होंने अपने चैनल पर चलाया, ब्लॉग भी लिखा परंतु वरिष्ठ निरीक्षक अशोक भगत और पुलिस उपायुक्त डा. सुधाकर पाठारे ने जांच की जरूरत नहीं समझी, परंतु "अग्निपर्व टाईम्स" ने पीछा नहीं छोड़ा, अब जाकर काले की हकालपट्टी, डीबी से हुई परंतु वरि.निरीक्षक अशोकभगत और उपायुक्त सुधाकर पाठारे का रोल क्या था इसकी जांच क्यों नहीं? जबकि उनके भ्रष्टाचार के कारण पूरा उल्हासनगर, अंबरनाथ और बदलापुर त्राहि-त्राहि कर रहा है। 

. DCP Dr. Sudhakar Pathare 

ठाणे पुलिस आयुक्तालय क्षेत्र परिमंडल-4, अंबरनाथ पूर्व स्थित छत्रपति शिवाजी नगर पुलिसस्टेशन के खोजी दस्ते में तैनात संभाजी काले ने १० जून २३ की रात ११ बजे के दौरान शिव मंदिर के पीछे फ्लोरा नामक इमारत की पार्किंग में खड़े एक दो चक्का वाहन की डिग्गी से तीन प्लास्टिक पन्नी की पुड़िया में भरा सफेद रंग का पावडर बरामद किया जिसको तत्कालिक समय में ही एमडी घोषित कर दिया और मालिक के साथ मोटरसाइकिल शिवाजीनगर पुलिस थाने लायी गयी। इस दल में पुलिस के अलावा बाहरी भी दो व्यक्ति थे जिनको पंच की संज्ञा दिया जा रहा था। विडियो में आप सुन सकते हैं। दोनों में से एक पूरे घटनाक्रम का विडियो बना रहा था जो बाद में अग्निपर्व टाईम्स के हाथ लगा। और उस विडियो को समाचार के रूप में यु टियुब पर प्रसारित कर दिया। वह समाचार देखने के बाद भी वरि.निरीक्षक अशोक भगत, सहायक आयुक्त और उपायुक्त ने जांच की जरूरत नहीं समझी! बाद उसके ब्लाग भी प्रकाशित किया गया फिर भी इनके कान पर जूं नहीं रेंगी फिर तीसरी बार प्रकाशित किया गया। परंतु इस बार पुलिस आयुक्त बदल चुके थे और आशुतोष डुंबरे पुलिसआयुक्त बन चुके थे। इसलिए जांच शुरू हुई परंतु जांच का जिम्मा उन साहब अशोक भगत को दिया गया, जो संभाजी काले को बचाने की जद्दोजहद में जुटे हुए थे, उन्होंने जांच की शुरुआत भंडाफोड़ करने वाले अग्निपर्व टाईम्स के संपादक से शुरू की और इधर-उधर से फोन कराने के साथ ही खुद भी फोन कर बुलाया न आने पर जी मेल, वाटशाप पर समन भेज कर सबूत के साथ पुलिस थाने पर हाजिर होने का आदेश दिया और साथ ही कहा हाजिर न होने की सूरत में जांच बंद कर दी जायेगी। संपादक समन मिलने पर पुलिस स्टेशन पहुंचे और अपना बयान दर्ज कराया पर अशोकभगत स्वतः नदारद थे। पुलिस को सूचना देने वाले को ही सबूत भी देना होगा, पुलिस प्रशासन क्या करेगा? हमने जनसूचना अधिनियम के तहत जानना चाहा कि छापा मारने के लिए जाने या आने पर रोजनामचे पर कुछ दर्ज किया गया है, जवाब में आया नहीं। उस रात का सीसीटीवी फुटेज मांगने पर पहले एक टीबी का हार्डडिस मांगा गया और दिये जाने पर कहा गया कि डाऊनलोड नहीं हो रहा है, दूसरा हार्डडिस लाओ। परंतु कंप्यूटर में उस रात का फूटेज दिखाने की जरूरत नहीं समझी, इस तरह जांच कर हैं अशोक भगत। बावजूद इसके, थाने पर दक्ष नागरिक बनने की ताकीद लिखी होती है। बताइए कौन अपना समय, रुपया नष्ट कर दक्ष नागरिक बन गाली, मार व पारिवारिक कष्ट झेलना चाहेगा? जब पुलिस के स्थानीय आला अधिकारी ही भ्रष्टाचार में संलिप्त हों तब जनता अपने द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों से उम्मीद करती है परंतु जब मंत्री और नेता भी ध्यान न दें तो आखिर जनता जाये कहाँ ? मेरी तो जनता से अपील है कि विधायक सांसद ऐसे लोगों को चुनें जो रुपये के प्रतिनिधि न होकर आपके प्रतिनिधि हों। 


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