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कल्याण लोकसभा सीट पर नोक-झोंक जारी किसकी है बारी!

कल्याण संसदीय सीट से वर्तमान सांसद श्रीकान्त शिंदे को लग सकता है झटका ! 

कल्याण. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कल्याण लोकसभा क्षेत्र को एक अलग महत्व प्राप्त हो गया है क्योंकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के पुत्र सांसद डॉ. श्रीकांत शिंदे का निर्वाचन क्षेत्र है; लेकिन शिवसेना के विभाजन के बाद, यह निर्वाचन क्षेत्र, जो शिवसेना का गढ़ है, दोनों गटों के लिए अस्तित्व की लड़ाई बन गया है। एक ओर जहाँ ठाकरे गुट शिंदे को चुनौती दे रहा है, वहीं गठबंधन की अंदरूनी लड़ाई का खामियाजा शिंदे को भुगतना पड़ेगा। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि सांसद श्रीकांत शिंदे के लिए इस वर्ष कल्याण का गढ़ बरकरार रखना चुनौतीपूर्ण ही नहीं मुश्किल होगा। 2014 में पहली बार निर्वाचित होने के बाद डॉ. श्रीकांत शिंदे पांच साल कल्याण लोकसभा क्षेत्र पर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे। उसके बाद 2019 में भी मतदाताओं ने उन्हें एक बार फिर मौका दिया परंतु वह दौर अलग था। मोदी की ईमानदारी और एकनाथ शिंदे के नाम के साथ भाजपा शिवसेना के दिली गठजोड़ के अलावा पूरी शिवसेना एक साथ होने के कारण उनका राजनीतिक सफर आसान हो गया था। लेकिन इसबार अंदरूनी चुनौतियों के चलते लोकसभा चुनाव उनके लिए आसान नहीं होगा। 

6 विधानसभाओं में मात्र 1 सीटं

कल्याण- लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में कलवा-मुंब्रा, कल्याण पूर्व, कल्याण पश्चिम, कल्याण ग्रामीण, उल्हासनगर और अंबरनाथ विधानसभा सीट शामिल हैं। इनमें से कलवा-मुंब्रा एनसीपी, कल्याण ग्रामीण मनसे, उल्हासनगर, कल्याण पूर्व और डोंबिवली सीट पर बीजेपी के विधायक हैं, अंबरनाथ में शिंदे गुट का एकमात्र विधायक होने कारण ही भाजपा अपना दावा कर रही है। परंतु मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इस सीट को अपने प्रतिष्ठा की सीट मान ली है और अपने पाले में लाने के लिए अड़े हुए हैं। कल्याण ग्रामीण, कल्याण पूर्व व डोंबिवली में जहां एक ओर सांसद शिंदे को अपने सहयोगियों से चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, वहीं भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी इस बार श्रीकान्त शिंदे को हराने का प्रण लिया है। दिवा बीजेपी मंडल के पदाधिकारियों ने तो भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले से मांग की है कि कल्याण लोकसभा चुनाव कमल के निशान पर ही लड़ा जाय, जिससे शिंदे के सामने एक और चुनौती खड़ी हो गई है। भारतीय जनता पार्टी दिवा शहर की ओर से हाल ही में एक बैठक आयोजित की गई, बैठक में दिवा मंडल अध्यक्ष सचिन भोईर, ठाणे जिला कार्यकारिणी सदस्य अशोक पाटिल, नरेश पवार, विनोद भगत, जिला सचिव विजय भोईर, सपना भगत, रोशन भगत, गणेश भगत उपस्थित थे. सभी पदाधिकारियों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया है कि कल्याण लोकसभा का यह चुनाव भाजपा चुनाव चिन्ह कमल पर लड़ा जाय और वह निवेदन उन्होंने बीजेपी महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष चन्द्रशेखर बावनकुले को दिया है। इस संबंध में दिवा मंडल अध्यक्ष सचिन भोईर ने कहा, हमने अपने प्रदेश अध्यक्ष बावनकुले से अनुरोध किया है कि कल्याण लोकसभा क्षेत्र में उम्मीदवार कोई भी हो, चुनाव चिन्ह कमल होना चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र में बीजेपी की बड़ी ताकत है। यहां बीजेपी के तीन विधायक हैं, जिनमें एक मंत्री है। अब देखने वाली बात यह होगी कि बीजेपी अपना उम्मीदवार उतारती है या फिर शिंदे को ही कमल निशान पर लड़ाती है या फिर दिवा पदाधिकारियों को मनाते हैं। 2014 में आये परिणाम में डॉ.श्रीकांत शिंदे (भाजपा+शिवसेना) 4,40,892, राकपा के आनंद परांजपे 1,90,143, मनसे राजू पाटिल 1,22,349 तो वहीं 2019 में डॉ.श्रीकांत शिंदे 5,59,723 और बाबाजी पाटिल 2,15,380 वोट मिले थे जब सब कुछ ठीक ठाक था। आज के इस दौर में श्रीकांत शिंदे ने अपड़ के चलते दर्जनों दुश्मन तैयार कर लिए हैं जो इनको हराने के लिए तन मन धन से जुटेंगे, शिवसेना ठाकरे गुट भी श्रीकान्त से अपना बदला लेने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगायेंगे। भाजपा के भीतरघात का सामना भी करना पड़ेगा। मनसे की ओर से भी शिंदे का लगातार विरोध होता रहा है। विधायक राजू पाटिल और सांसद शिंदे विकास कार्यों को लेकर हमेशा आमने-सामने रहे हैं। भले कहा जा रहा हो कि मनसे ने लोकसभा चुनाव के लिए सुलह कर ली है। भले ही शिंदे समूह कहे कि उसने इस निर्वाचन क्षेत्र में अपनी ताकत बढ़ा दी है, लेकिन एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो ठाकरे समूह पर विश्वास करता है। मुख्यमंत्री शिंदे को सीधी चुनौती देने और अपनी ताकत दिखाने के लिए ही खुद उद्धव ठाकरे ने कल्याण क्षेत्र से अपनी संपर्क यात्रा शुरू की है, पिछले चुनावों में, शिंदे को कलवा-मुंब्रा लोकसभा से राकांपा विधायक जितेंद्र आव्हाड़ ने भी समर्थन दिया था। लेकिन अब दोनों नेताओं के बीच भी कुछ ठीक नहीं है। सबकुछ देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस बार सांसद शिंदे को इस सीट से झटका लग सकता है। 

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