भ्रष्टाचार के दलदल में डूबी दबंग प्रियंका राजपूत !
उल्हासनगर को इस भस्मासुरिणी से कौन बचाएगा !
उल्हासनगर: उल्हासनगर महानगर पालिका की तथाकथित दबंग कहलाने वाली प्रियंका भरत राजपूत मैडम का अत्याचार भले रुक गया हो, परंतु उनका भ्रष्टाचारी प्रशासनिक रवैया बदस्तूर जारी है। प्रियंका राजपूत के भ्रष्टाचार पर अब तक कई एपिसोड लिखे जा चुके हैं और भी कई लिखे जा सकते हैं।
प्रियंका राजपूत
श्रीमती प्रियंका राजपूत द्वारा नागरिक सुविधाओं के लिए सामग्री खरीद में किया गया भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार के चक्र को परिभाषित करने के समान है। भुगतान क्र. 414 दिनांक 23 दिसंबर 2021 अनुसार नगर निगम सेवा में आते ही प्रियंका ने बड़ा झटका दिया। उन्होंने 5 कंप्यूटरों के स्पेयर पार्ट्स खरीदने के लिए श्रीराम एंटरप्राइजेज को 6 लाख 99 हजार 989 रुपये का भुगतान किया। इसके बावजूद भी आधुनिक भस्मासुर की भूख नहीं मिटी। सारे कल पुर्जे जोड़कर कंप्यूटर बनाने के नामपर (असेंबल) प्रत्येक कम्प्यूटर के लिए रुपया 9, 900/ भुगतान किया गया। इस तरह करीब 800 करोड़ बजट वाली महानगरपालिका के लिए कम्प्यूटरों की खरीद की गई। क्या तैयार कंप्यूटर नहीं खरीदे जा सकते थे? इस तरह इस भस्मासुर की बहन ने 1 लाख 39 हजार 974 रुपयों की दर से 5 कंप्यूटरों की खरीदारी की। कंप्यूटर घोटाले का कर्ताधर्ता प्रियंका के अलावा और कौन हो सकता था? यदि राज्य सरकार के GEM पोर्टल से खरीदारी की गई होती तो, दलाल भ्रष्टाचार नहीं कर पाते। इसीलिए इन्होंने सरकारी निर्देशों को रौंदने का दुस्साहस किया। एरवी के 5 ग्राफ़िक कार्ड भी खरीदे, जो केवल गेम व एनिमेशन के काम आते हैं। चुनाव कार्य में वार्डवार महिला-पुरुषों का पंजीयन करना होता है। ग्राफिक कार्ड की क्या आवश्यकता? लेकिन इस भस्मासुरिणी ने यह अनावश्यक खरीदारी भी कर ली।
नगरविकास व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे
चुनाव कार्य में हो रहे भ्रष्टाचार की खबरें उजागर होने के बाद अंधाधुंध भ्रष्टाचार पर कुछ अंकुश लगा और लगभग 1 करोड़ के भुगतानो को रोकने में सफलता हासिल हुई, फिर भी विकास चव्हाण ने न किए गए कार्यों के लिए 7-7 लाख के 4 बिलों का भुगतान कर दिया और 28 लाख का घोटाला हो ही गया। खून के प्यासे शेर और भ्रष्टाचार की आदी मैडम में कोई अंतर नहीं है? यह सिर्फ आरोप नहीं है। चीफ ऑडिटर शरद देशमुख के साथ आयी आडिट कमेटी ने इन आरोपों पर मुहर लगा दी। मुंबई महालेखाकार ने भी भ्रष्टाचार के मुद्दे को चिन्हित किया है। लेकिन भस्मासुर की यह बहन बेशर्मी से कुर्सी पर जमी हुई है और आयुक्त के साथ ही सारे लोग मूक-बधिर बने हुए बैठे हैं। एक महिला अधिकारी पर इतने कठोर शब्दों का प्रयोग कर हम दुखी होते है। परंतु असंवेदनशील प्रियंका पर कोई असर नहीं होता ! भ्रष्टाचारी महिला ने निर्देशों का उल्लंघन कर मूल संकल्प से अधिक की खरीद कर महिला एवं बाल कल्याण समिति में भी 1.18 करोड़ रुपये पर हाथ साफ कर लिया। बिना डायरेक्ट बेनिफिसरी ट्रांसफर किये और शासन की अनुमति के बिना साहित्य की खरीदी की। लाभार्थियों का ब्यौरा नहीं रखा, मनमानी पद्धति से महिला बचटगटों की नियुक्ति की, लेखा परीक्षण पथक को जानकारी न देने जैसी अनेक अनियमितताओं से मलीदा खाने के आरोपों से घिरी हैं सौंदर्यसम्राज्ञी।
आयुक्त अजीज शेख
प्रियंका के भ्रष्टाचारों का अंत ही नहीं है। मैडम ने शहाड स्थित कोणार्क रेजीडेंशियल कांप्लेक्स के 16 फ्लैटों पर प्रॉपर्टी टैक्स ही नहीं लगाया और इसी कांप्लेक्स में से एक इमारत के फ्लैट नंबर 701 में, प्रॉपर्टी टैक्स डिप्टी कमिश्नर मैडम मुफ्त में रह रही हैं। यह भी तो पद के दुरुपयोग व अप्रत्यक्ष रुप से रिश्वत स्वीकार करने का ही एक स्वरूप है। 5 दिसंबर 2022 की ऑडिट रिपोर्ट में इसका उल्लेख भी है। बीते चार वर्षों से दंडात्मक संपत्ति कर न लगाकर भ्रष्टाचार की सीमाओं की हद ही पार कर दी गई। सिंधु एजुकेशन ट्रस्ट के मामले में भी ऐसा ही किया गया है। यह अहंकारी अधिकारी बकासुर को भी लज्जित कर दे इतनी भुक्कड़ अधिकारी है।
श्रीमती राजपूत ने GIS सर्वे के लिए नागपुर की ब्लैक लिस्टेड कंपनी कोल्ब्रो को 2.75 करोड़ प्रतिवर्ष की दर से 5 वर्ष के लिए 13.75 करोड़ का ठेका स्वीकृत किया। जो कार्य नगरनिगम स्तर पर संभव था। उस कार्य का ठेका कोल्ब्रो कंपनी को दे दिया गया, और रु. 25 प्रति देयक में हो रहा कार्य अब कोल्ब्रो कंपनी 150 रुपये प्रति देयक की दर से कर रही है। नगरनिगम के कंप्यूटर से सारा डाटा प्रियंका राजपूत के आशिर्वाद व कृपा से कोलब्रो कंपनी को दे दिया गया। प्रियंका राजपूत काम करें और काम में भ्रष्टाचार न हो तो प्रियंका नाम ही किस काम का? इस औरत ने महापालिका के राजस्व को डुबाने में जबरदस्त सफलता हासिल की है। मंत्रालय से इसके ऊपर जिस किसी का वरदहस्त है, गॉडफादर है, वह भी इस भ्रष्टाचार में उतना ही सम्मिलित है जितना कि प्रियंका राजपूत और उल्हासनगर का उतना ही बड़ा अपराधी है जितना कि प्रियंका राजपूत।
आयुक्त वर्ष भर से हताश होकर तमाशा देख रहे हैं, न जाने उनकी कौन सी दुखती रग प्रियंका के पास है। वर्षभर पहले रिपोर्ट पाने के बाद भी लगाए गए आरोपों पर आयुक्त चुप क्यों हैं? दबंगई से डर लगता है या फिर और कोई मजबूरी है। महानगरपालिका में घोटाले पर घोटाला हो रहा है। परंतु एक भी घोटालेबाज सलाखों के पीछे नहीं जा रहा है। अब प्रियंका राजपूत के घोटाले का फैसला कब आएगा और कौन करेगा? यह एक यक्ष प्रश्न बनकर समस्त उल्हासनगर वासियों के सामने खड़ा है।
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