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उल्हासनगर भाजपा जिला अध्यक्ष आखिर कौन होगा?

उल्हासनगर भाजपा अध्यक्ष पद के लिए कुछ मालदर लोग तड़जोड़ में लगे हैं।         कुमार आयलानी             जमुनो पुरस्वानी.             प्रदीप रामचंदानी 

उल्हासनगर : उल्हासनगर शहर भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव को देखते हुए कुछ मालदार व्यापारी अध्यक्ष पद पाने के लिए वरिष्ठ नेताओं को तोहफे पहुंचाने में और उनकी चाटुकारिता करने में लग गए हैं। भाजपा अपने आपको साफ सुथरी छवि की पार्टी बताती है। परंतु उल्हासनगर में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता।      राजेश वधारिया 

उल्हासनगर भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष पद की चुनावी प्रक्रिया है। दिखावे के लिए कुछ कार्यकर्ताओं का विचार जाना जा रहा है। परंतु अध्यक्ष वही होगा जो परवेक्षक व वरिष्ठ नेताओं को मंजूर होगा, अपनी बाटली में उतार लेगा। कहने को भाजपा कैडरबेस पार्टी है परंतु उल्हासनगर में ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सूत्र बताते हैं कि कई दर्जन उपाध्यक्ष और सेक्रेटरी बनाये जाते हैं। उनमें से दो चार लोगों को ही फैसलों में सामिल किया जाता है। बाकी के सिर्फ गाड़ियों में बोर्ड लगाने के लिए पदाधिकारी बनते हैं या फिर सरकारी कार्यालयों में धौंस जमाने के लिए पद लेते हैं। उनको संगठन के किसी महत्वपूर्ण फैसलों में सामिल ही नहीं किया जाता या युं कहें की पदाधिकारी होने का लालिपाप लिए घूमते हैं परंतु उसे चूस नहीं पाते।

अध्यक्ष पद के दावेदार

अध्यक्ष पद के दावेदारों में हर कोई अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए ही अध्यक्ष बनना चाहता है न कि पार्टी को बढ़ाने के लिए (१) वैसे तो भाजपा में अध्यक्ष पद तीन वर्षों के लिए होता है परंतु अगर वरिष्ठ खुश रहे तो पद छह वर्षो का हो जाता है। जमनु पुरस्वानी जिन्होंने अपना छह वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया है फिर भी पद छोड़ना नहीं चाह रहे हैं। अब आप कहेंगे उनको पार्टी से लगाव है, "न भाई न" अब हम आपको थोड़ी सी कहानी बताते हैं। जमनू पुरस्वानी की पहले स्थित कुछ ठीक नहीं थी, 407 टेंपो चलाया करते थे परंतु भाजपा से जूड़ते ही उनके भाग्य खुल गये। नगरसेवकी के चुनाव के लिए भाजपा का टिकट न मिलने पर भी उन्होंने बगावत कर चुनाव लड़ा, भाजपा के कार्यकर्ता जो सिंधी समुदाय से आते थे उन्होंने अधिकृत उम्मीदवार का साथ न देकर असांजा मानू कहकर जमुनो का साथ दिया। जिसका नतीजा यह हुआ कि सिंधी मतों के धुर्वीकरण ने भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार यशंवत (बाबा) देशमुख को हरा दिया और पुरस्वानी नगरसेवक बन गये। नगरसेवक बनते ही इन्होंने तुरंत अवैधनिर्माण का व्यवसाय शुरू किया और अपने वार्ड के लगभग सभी शौचालयों पर कब्जा कर मकान बनाकर बेच डाला ऐसी शहर में चर्चा है और जमुनो से जमुनो सेठ बन गये।

(2) दुसरे उम्मीदवार प्रदीप रामचंदानी जो खानदानी ठेकेदार हैं। उनके पिताजी भी उल्हासनगर मनपा के ठेकेदार थे और खुद भी ठेकेदार हैं और उनके सुपुत्र भी ठेकेदार है। इसलिए उनके बारे में कहा यह जाता है कि वे ठेका पाने के लिए और भुगतान जल्द निकाल सकें इसलिए उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद की बड़ी आवश्यकता है और यह बात बहुत हद तक सही भी है। प्रदीप रामचंदानी कयी बार चुनाव लड़ चुके हैं, परंतु हर बार दो सौ के आसपास ही उनके मतों की संख्या रही, जिससे उनके जमीनी कार्यों को समझा जा सकता है। साथ ही सार्वजनिक बांधकाम विभाग से फाईल चोरी करते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हो जाने की वजह से पैंतालीस दिन जेल में कैद रहे।

(3) कुमार आयलानी भी अध्यक्ष बनना चाहते हैं जबकि विधायक हैं। यह भी भवन निर्माता हैं इनका नाम भी अवैध निर्माण से घिरा रहता है (4) मन्नू खेमचंदानी उर्फ मन्नू गरीब का है जो पार्टी के महासचिव हैं और अब अध्यक्ष बनना चाहते हैं। इनका व्यवसाय है पार्टियों का झंडा बिल्ला यानी चुनावी सामग्री बेचना। चुनावी सामग्री के आर्डर इन्हें मिलें इसलिए इन्हें भी अध्यक्ष पद चाहिए (5) विनोद गोवानी जो अपने आपको जीता हुआ ही समझ रहे हैं। परंतु विनोद गोवानी का अध्यक्ष बनना नामुमकिन है। साधन संपन्न न होना उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है, अक्सर परेशान होकर घर बैठ जाते हैं। स्व. सनी पंजाबी के निधन के बाद कार्यालय संभालने के लिए एक आदमी की जरूरत थी। कुछ दिनों पूर्व इन्हें कुमार आयलानी ने साधन मुहैया कराकर अपने विधानसभा क्षेत्र का कारोबार सौंपा है (6) राजेश बधरिया को अभी जुम्मा जुम्मा आठ दिन हुए कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये और वे भी अध्यक्ष पद के दावेदार हैं और क्यों न हों मालदार पार्टी होने के साथ ही उल्हासनगर की ईस्ट इंडिया कंपनी कोनार्क के हिस्सेदार भी हैं। यही नहीं शहर को लूटनेवाली कोलंब्रो कंपनी भी इन्हीं की थी। इस तरह चाल चरीत्र और चेहरे की बात करनेवाली भाजपा के इन्हीं चेहरों में से कोई एक अध्यक्ष होगा? 

कहने को तो भाजपा अपने आपको को स्वच्छ व साफ सुथरी छवि की राजनीतिक पार्टी बताती है। परंतु उल्हासनगर में यह अपवाद ही है। जबसे भाजपा संगठन बना है तबसे उल्हासनगर में सिंधी भाषी ही अध्यक्ष बनता रहा है। परंतु अगर धरना प्रदर्शन आंदोलन की बात आती है तो पहले स्थान पर उत्तर भारतीय और दूसरे स्थान पर महाराष्ट्रियन दिखते हैं। यही नहीं उल्हासनगर के सिंधी नेता शहर के सिंधियों से मतदान भी नहीं करा पाते हैं।सिंधी मत प्रतिशत तीस पैंतीस से आगे नहीं पहुंच पाता है। और अब उल्हासनगर शहर जनसंख्या के आधार पर भी सिंधी बहुल नहीं बचा है। फिर भी न जाने क्यों भाजपा का अध्यक्ष बनने का अधिकार कोई गैर सिंधी नहीं रखता है। अब यह तो भाजपा का संगठन और कार्यकर्ता ही बता सकते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है। 

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