उल्हासनगर: उल्हासनगर महानगरपालिका अंतर्गत चलवा लक्ष्मी नारायण कंपाउंड, श्मसान भुमी के सामने व महादेव कंपाउंड में 10/11 कारखाने 50 माइक्रोन व उससे कम की प्लास्टिक थैलियों का निर्माण कर रहे हैं। उल्हासनगर में बनने वाली पर्यावरण की दुश्मन यह पन्नियां उल्हासनगर ही नहीं आसपास के शहरों व देश के कयी हिस्सों में पहुंच रही हैं। परंतु महाराष्ट्र पर्यावरण विभाग व उमनपा अधिकारी हर महीने लाखों रुपयों का हफ्ता लेकर पर्यावरण के दुश्मन का साथ दे रहे हैं।
जान पड़ता है कि महाराष्ट्र राज्य के ठाणे जिले की उल्हासनगर तालुका में देश का कोई नियम और कानून लागू नहीं होता। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, महाराष्ट्र ही नहीं अपितु पूरे भारत देश में एक ही बार उपयोग में लायी जाने वाली पचास माइक्रोन या उससे कम की प्लास्टिक थैलियां प्रतिबंधित हैं।जबकि उल्हासनगर की हर ठेलागाड़ी व दुकान पर प्रतिबंधित प्लास्टिक थैलियों में सामान भरकर खरीददारों को दिया जा रहा है। यह प्रतिबंधित थैलियां कहीं और से तस्करी करके नहीं लायी जा रही है। उल्हासनगर कैम्प क्रमांक-1, महादेव कंपाउंड, महालक्ष्मी कंपाउंड व श्मशान भुमी के सामने स्थित कारखाने में बन रही है और वहीं से अलग अलग दुकानो पर व देश के कई हिस्सों में बेंची जा रही है। अब यहाँ आश्चर्य की बात यह है कि इस तरह खुलेआम 50 माइक्रोन और उससे कम की प्लास्टिक थैलियां उपयोग में लायी जा रही हैं। फिर भी शासन प्रशासन अजगर के भांति चीर निद्रा में सोया पड़ा है। आखिर पर्यावरण विभाग का कोई सदस्य उल्हासनगर का दौरा क्यों नहीं कर रहा है? क्या पर्यावरण विभाग सिर्फ दिखावे के लिए है? भारत सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध का पालन कौन करवाएगा ? यह एक ज्वलंत प्रश्न सबके सामने है।
मिली जानकारी अनुसार उल्हासनगर में एक व्यापारी एसोसिएशन चलाने वाले या यूं कहें कि पन्नी बनाने व बेचने वालों का एशोसियेशन चलाने वाला और साथ ही अवैध निर्माण करनेवाला तथाकथित भाजपा नेता जो बार-बार पार्टी बदलने में माहिर है। उल्हासनगर का स्वघोषित व्यापारियों का मसीहा दिपक छ - लानी। जो शहर व पर्यावरण दोनो के लिए घातक है। केंद्र सरकार ने सन 2022 में एक ही बार उपयोग में लायी जाने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था। जबकि महाराष्ट्र सरकार 23 जून 2018 को ही राज्य में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का फैसला कर चुकी थी। उस समय कुछ व्यापारी उच्च न्यायालय पहुंच गये थे। न्यायालय ने सरकार के फैसले को बरकरार रखा और 50 माइक्रोन व उससे कम के सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया।
भारत में प्रतिदिन लगभग 25 हजार टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। देश के प्रदूषण में प्लास्टिक कचरे का सबसे बड़ा योगदान है। प्लास्टिक विभिन्न तरीकों से नदियों और महासागरों में पहुँच रहा है। प्लास्टिक के अति सुक्ष्मकण यानी 'माइक्रोप्लास्टिक्स पानी के साथ मिश्रित हो जाने के कारण नदी के साथ-साथ समुद्री जल भी प्रदूषित हो रहा है। समुद्र तक पहुँचने वाले कचरे में प्लास्टिक कचरे की मात्रा सबसे ज्यादा है। यही नहीं अब इंसान के खून, जमीन की मिट्टी, मां के दूध व गाय के पेट में भी प्लास्टिक पाया जाने लगा है। ज्यादातर प्लास्टिक कचरा सिंगलयुज पन्नी, स्ट्रॉ, चिप्स, बोतल के ढक्कन, खाने को ढकने के लिए इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक से होता है। राज्य सरकार द्वारा प्लास्टिक प्रतिबंध पर ढुलमुल रवैया अख्तियार किये जाने से सिंगलयुज प्लास्टिक बंद होने का नाम नहीं ले रही है। जबकि केंद्र सरकार और उच्च न्यायालय द्वारा प्लास्टिक पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाया गया है। फिर भी उल्हासनगर में प्रतिबंधित प्लास्टिक थैली बनाने वाले कई बड़े-बड़े कारखाने हैं जो उल्हासनगर ही नहीं अपितु पूरे भारत में प्रतिबंधित पन्नियां भेजकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं। अग्निपर्व टाइम्स एक ही बार उपयोगी प्लास्टिक पन्नी की खबर पहले भी लगा चुका है परंतु महाराष्ट्र सरकार, पर्यावरण विभाग व स्थानीय महानगरपालिका न जाने किस मद में खोये हुए हैं।
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