उल्हासनगर की ख्याति प्राप्त नवजीवन बैंक भ्रष्टाचार के चलते पीएमसी बैंक की राह पर, व्यापार हुआ 12 सौ करोड़ से घटकर 6.49 करोड़।
ठाणे जिले में ख्याति प्राप्त नवजीवन बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं प्रबंधन, संचालक मंडल (Director) के भ्रष्टाचार से बैंक डूबने की कगार पर!
निज संवाददाता
उल्हासनगर : महाराष्ट्र, ठाणे जिले के उल्हासनगर शहर में शुरू हुईं नवजीवन सहकारी बैंक जिसकी कुल आठ शाखाएं (Branch's) हैं। जिनमें से सात उल्हासनगर में और एक थाने के कोपरी कालोनी में है। बैंक राज्यस्तरीय सहकारी बैंक की श्रेणी में आती है। बैंक का विनिमय (Turnover) लगभग 12 सौ करोड़ हुआ करता था। जिस पर हिस्सेदार (Share Holder) ही नहीं उल्हासनगर का हर नागरिक गर्व महसूस करता था। परंतु आज बैंक का विनिमय घटकर 6.49 करोड़ रह गया है। जिसका कारण संचालक मंडल का परिवारवाद और परिवारवाद से पनपा भ्रष्टाचार है। बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी/प्रबंध निदेशक के भ्रष्टाचार पूर्ण रवैये से लोगों का भरोसा बैंक से उठने लगा है, जिसका नतीजा यह हुआ कि बैंक विनिमय आधा हो गया है। अब उपभोक्ताओं को यह भय सताने लगा है कि कहीं नवजीवन बैंक का हाल भी पीएमसी (Panjab Maharashtra Cooperative) बैंक जैसा न हो जाय, बैंक डूब न जाय। फलतः उपभोक्ताओं ने अन्य बैंकों की तरफ अपना रुख कर लिया। एक तरफ बैंक की लोकप्रियता घट रही है। जिससे व्यापार घट रहा है। दूसरी तरफ निर्देशक मंडल में मुख्य कार्यकारी अधिकारी दिनेश सितलदास हरचंदानी की निदेशक पत्नी के तानाशाही भरे रवैये के चलते कर्मचारियों में असंतोष व्याप्त हो गया है। पहले बैंक की आठ शाखाओं में मिलाकर कुल 211 कर्मचारी कार्यरत हुआ करते थे। परन्तु अब प्रबंधन ने 30-35 कर्मचारियों को यह कहते हुए सेवामुक्त कर दिया है कि बैंक की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। वहीं मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) दिनेश हरचंदानी ने अपना वेतन 3 लाख 50 हजार से बढ़ाकर 5 लाख और उपकार्यकारी अधिकारी शालू भीमवर्गा का वेतन 90 हजार से बढ़ाकर 1 लाख 60 हजार कर दिया है। जबकि दूसरी तरफ दैनिक संकलन अभिकर्ता (Collection Agent) जो बैंक की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बना रहे थे, उनका कमिशन तीन-चार प्रतिशत से घटाकर डेढ़ प्रतिशत कर दिया गया। जिससे उनमें रोष व उहापोह की स्थिति पैदा हो गई है। जब डेली कलेक्शन एजेंटों ने अपनी मनोदशा व्यक्त करने के लिए निदेशक मंडल व मुख्य कार्यकारी अधिकारी से मिलने का विचार व्यक्त किया तो मुख्य शाखा प्रबंधक स्वाति ने कहा कि एजेंटों का प्रतिनिधि मंडल निदेशक मंडल और मुख्य कार्यकारी अधिकारी से नहीं मिल सकता है। 1.50% पर संकलन करना है तो किजिए नहीं तो छोड़ दिजिए। आदेश की प्रति मांगने पर, पल्ला झाड़ते हुए प्रबंधक महोदया ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार हम लिखित पत्र नहीं दे सकते। इस प्रकार नवजीवन बैंक की स्थिति दयनीय होती जा रही है। उपरोक्त बातें बैंक के लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया है।
ज्ञात हो कि बैंक का NPA जो पहले 7-8% हुआ करता था वह अब बढ़कर 11.50% हो गया है। इस वित्तीय वर्ष का लाभ 2.5 करोड़ दिखाते हुए शेयरधारकों को 9% का डिविडेंड दिया गया जबकि इसके पहले लाभ 5-6 करोड़ हुआ करता था। और शेयर धारकों को 12 से 15% लाभांश के साथ उपहार भी दिया जाता रहा है। मुख्यालय की इमारत जो बैंक के प्रारंभिक वर्ष 1985 से ही आजतक मुख्य कार्यकारी अधिकारी की पारिवारिक (इमारत) संपत्ति है। जिसका वार्षिक किराया (Rent) अब 1.28 करोड़ हो गया है। जबकि इमारत को स्थानीय उल्हासनगर महानगरपालिका ने जर्जर इमारतों की सूची में डालते हुए जर्जर इमारत घोषित किया है। परंतु मुख्य कार्यकारी अधिकारी व पारिवारिक निदेशक अपने आर्थिक स्वार्थ के चलते नयी इमारत की खोज नहीं कर रहे हैं।
निदेशक मंडल व मुख्य कार्यकारी अधिकारी के भ्रष्टाचारी व स्वार्थी रवैये की जानकारी कतिपय शेयर धारकों द्वारा रिजर्व बैंक व सहकार आयुक्त को बार बार दिए जाने के बाद भी न जाने किस मोह में आजतक कोई कार्यवाही नहीं की। जबकि विभागीय जांच का निर्देश सहकार कानून 83 के तहत निर्देशित होने के साथ ही मुख्यकार्यकारी अधिकारी को त्वरित प्रभाव से सेवामुक्त करने हेतु स्पष्ट आदेश है। परन्तु सहकारिता आयुक्त पुणे व भारतीय रिजर्व बैंक उचित कार्यवाही से न जाने क्यों परहेज कर रहे हैं। क्या PMC बैंक की स्थिति में आने की राह देख रहे हैं। हमने यह समाचार बैंक के कतिपय शेयरधारक, संकलन अभिकर्ताओं और वार्षिक रिपोर्ट के निरिक्षण के आधार पर उल्लेखित है। शेष उल्लेख बैंक अधिकारी सहायुक्त ही कर सकते हैं।
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