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लाचार विरोधी दल की राजनीति झूंठ और प्रोपेगेंडा पर आधारित।

                                     "भारत का लाचार विरोधी दल" 

अपने देश के विपक्ष को इतना लाचार मैंने कभी नहीं देखा, इनके पास देश और देशवासियों के लिए कोई रचनात्मक और सृजनात्मक सलाह और सपोर्ट नहीं है इनके पास मोदी या मौजूदा सरकार द्वारा किए जाने वाले कार्यक्रमों का सिर्फ़ झुंठा विरोध वह भी सतप्रतिशत झूंठ के सहारे, कयी प्रकार के कर लगाकर व्यापारियों को सत्ताधारी व अधिकारी ब्लैकमेल करते थे वह बंद हो गया या न के बराबर हो गया उससे भी तकलीफ है। 
   देश के आजादी की पचहत्तरवीं वर्षगांठ पर हर घर तिरंगा अभियान का विरोध जबकि आम जनता ने अपने देश के आजादी की वर्षगांठ बड़े धूमधाम से मनाया और लगभग सभी लोगों ने अपने घर व गाड़ियों पर तिरंगा फहराया। एक तरफ कहा जाता है अन्य देशों की तरह हमारे में भी तरह-तरह के अविष्कार हों और देश तरक्की करे, पर हमारे देश का विपक्षीदल बूलेट ट्रेन का भी विरोध करता है कहता है इसकी क्या जरूरत है। कुल मिलाकर आज का विरोधी पक्ष मोदी का विरोध करते-करते हर समय देश विरोधी होता दिखाई देने लगता है। खुद को कुछ करना नहीं कोई करे तो विरोध!
ईडी की कार्यवाही का विरोध हो रहा है जबकि ईडी ने जहाँ भी दबिश दी है अब तक खाली हाथ नहीं लौटी, भ्रष्टाचार रोकने के लिए कोई तरीका बताने की बजाय ईडी और सीबीआई की कार्यवाही को रोकना चाहता है विपक्ष। महाराष्ट्र हो या बंगाल या फिर देश का कोई कोना जहाँ भी ईडी गयी वहीं अकूत काला धन निकाला। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नजदीकी मंत्री के घर जब ईडी गयी तो अकूत धन निकला। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी द्वारा संचालित "हेराल्ड" नामक समाचार पत्र की प्रापर्टी में हुए भ्रष्टाचार के मामले में जमानत पर हैं और जांच के दौरान उनके कार्यकर्ता सड़कों पर आकर विरोध दर्शाते हैं। क्या इन कांग्रेसियों को उनके पार्टी में रहे पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री याद नहीं जिन्होंने रेल के पटरी से उतर जाने के हादसे को अपने सर लेते हुए रेलमंत्री पद से स्तिफा दे दिया था। कहां गया कांग्रेस का वह चरित्र? 

आज देश में हर तरफ भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है तो आम जनता खुशहाल कैसे रहेगी? भ्रष्टाचार का मतलब होता है "जिसकी लाठी उसकी भैंस" ऐसे में जो कमजोर तबके के लोग हैं उन्हें न्याय कैसे मिल पायेगा? अगर सत्तापक्ष कुछ हद तक भ्रष्टाचार खत्म करने की कोशिश कर रहा है तो उसमें उसकी मदद व सराहना करने के बदले उसका विरोध क्यों किया जा रहा है। अब कुछ लोग कहते हैं क्या भ्रष्टाचारी सिर्फ विरोधियों में ही हैं तो उसका जवाब यह है कि 57 वर्ष कांग्रेसी शासन रहा है उन्हीं के शासनकाल में विरोधी सक्षम और मजबूत होकर सत्तारूढ़ हुए हैं तब आपने उनके भ्रष्टाचार पर अंकुश क्यों नहीं लगाया। जब आपके पास सारे संसाधन उपलब्ध थे अब उन्हीं से उनपर कार्यवाही की उम्मीद क्या न्यायसंगत है। जब समय गंवा दिया तो अब इंतजार करो और झूंठे विरोध के बदले सच्चाई से जनता को अपने पक्ष में कर सत्ता में आने की कोशिश करो और सत्ता में आकर विरोधियों के भ्रष्टाचार उजागर करो किसने रोका है पर अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार को तो साफ करो।

विरोधीपक्ष फैसले लेने में चूक जा रहा है। हिन्दुत्व की विचारधारा से ओतप्रोत शिवसेना पक्षप्रमुख के घर के बाहर हनुमान चालीसा की बात आती है तो वे मंच लगाकर सहयोग करने और कार्यक्रम में सम्मिलित होने की बजाय हनुमान चालीसा पढ़ने का चैलेंज करनेवालों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराकर उसे जेल भेज देते हैं। राहुल और सोनिया गांधी पर अगर भ्रष्टाचार का आरोप है तो जांच में सहयोग कर पाक साफ जांच से बाहर आना चाहिए न कि आंदोलन करना चाहिए अगर जांच अधिकारी पर भरोसा नहीं है तो उसे बदलने के लिए आंदोलन समझ में आता है परंतु जांच ही न हो यह कैसे न्यायसंगत है? इस तरह विरोधी अपने-आप को भ्रष्टाचारी और सत्तारूढ़ दल को इमानदार साबित कर रहा है। ऐसे में जनता का भरोसा और विश्वास कैसे जीता जा सकता है।

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