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उल्हासनगर उपविभागीय कार्यालय को दलालों से कौन मुक्ति दिलाएगा?

उल्हासनगर उपविभागीय कार्यालय बना एजेंटों का अड्डा, जरुरतमंदों का बैठ रहा है भट्ठा।
       ऐजेंट सोमनाथ गायकवाड़ 

उल्हासनगर : उल्हासनगर उपविभागीय/प्रशासकीय कार्यालय एजेंटों और सेवानिवृत्त कर्मचारियों के चंगुल में इस तरह फंस गया है कि इनकी सहमति और हिस्सेदारी के बिना कोई कार्य संपादित नहीं होता। जयराज कारभारी ने एजेंटों के बैठने और वसूली करने के लिए अलाट की है केबिन।
                    लक्ष्मण राठौर 

ज्ञात हो कि वर्ष १९५४ पाकिस्तान से निर्वासित होकर आये सिंधी व अन्य समाज के जमीनी मुद्दों (Compensation of pool property) के निवारण हेतु प्रशासकीय कार्यालय की स्थापना की गयी थी। जिसका कार्यकाल १९९३ में तत्कालीन प्रशासक द्वारा प्रशासन को रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा गया कि प्रशासक कार्यालय संबंधित मामले निपटाए जा चुके हैं कुछ मामलों को छोड़कर, जैसे ५ हजार यु नंबर १२ हजार ५ सौ ई नंबर जो किन्ही न किन्ही नगरविकास योजना से प्रभावित हो रहे थे या जो मुद्दे किन्ही कारणों से अनिर्णित रहे मामले जो अपीलीय अधिकारी सेटलमेंट कमिश्नर के माध्यम से निपटाए जाने थे, परंतु वह मामले आजतक निपटाए नहीं जा सके परंतु उसकी आड़ में १९६५ पूर्व के फर्जी कागजपत्र तैयार कर कुछ पूर्व कर्मचारियों व दलालों के माध्यम से फर्जी लोगों को जमीनों के सनद देने का गोरखधंधा फलफूल रहा है।
.      नवनिर्मित उपविभागीय कार्यालय जो उद्घाटन की राह जोह रहा है। 

 इसके पहले पूर्व उपविभागीय अधिकारी जगतसिंह गिरासे ने सैकड़ों फर्जी सनदे उन लोगों को आबंटित कर दी जो लोग उल्हासनगर के कभी निवासी ही नहीं थे ऐसे लोगों को चार चार पांच पांच सनदे दी गयी। उसी तर्ज पर जयराज कारभारी भी चल रहे हैं। कारभारी गिरासे से भी एक कदम आगे निकलते हुए दलालों (Agent)  को प्रशासकीय कार्यालय में बैठकर फर्जी कार्य करने व अपने लिए आर्थिक हिस्सेदारी वसूल करने हेतु एक केबिन निर्माण कर उनको बैठने का स्थान भी दे दिया है। यही नहीं उनके लैपटॉप में उल्हासनगर शहर के जमीन संबंधी सारे रेकार्ड अपलोड कर दिया है। वह लैपटॉप सोमनाथ गायकवाड़ नामक दलाल अपने घर भी ले जाता है। इस मुद्दे पर कतिपय राजनेताओं ने उपविभागीय अधिकारी कारभारी से सोमनाथ गायकवाड़ और लक्ष्मण राठौर के बारे में जानकारी मांगी तो उन्होंने जवाब दिया कि हमारे पास इस नाम का कोई भी कर्मचारी नहीं है। परंतु जब अग्निपर्व टाइम्स ने उपविभागीय कार्यालय का दौरा किया तो जयराज कारभारी द्वारा दी गई केबिन में सोमनाथ गायकवाड़ के पास बैठकर नायब तहसीलदार घोरपड़े किसी चर्चा में तल्लीन होने के साथ लैपटॉप में कुछ देखते हुए पाये गये। इससे यह स्पष्ट होता है कि जयराज कारभारी लोगों से झूंठ बोलते हैं कि हमारे कार्यालय में कोई दलाल नहीं है। अतः इससे यह भी स्पष्ट होता है कि फर्जी सनदे देने में कारभारी का पूर्ण योगदान है। इनके भ्रष्टाचार का ज्वलंत उदाहरण कुशीवली डैम जमीन अधिग्रहण मामला भी है जहाँ एक सेवानिवृत्त हंगामी नायब तहसीलदार व तलाठी के ऊपर भ्रष्टाचार का सारा ठीकरा फोड़ते हुए उक्त भ्रष्टाचार का खुलासा करने का श्रेय खुद लेकर अपने-आप को पाक साफ साबित करने की नाकाम कोशिश कर रहे है, जबकि सर्वविदित है कि तहसील कार्यालय में हंगामी नायब तहसीलदार उपविभागीय अधिकारी के अंतर्गत ही कार्य संपादित करता है, तो यह कैसे संभव हो सकता है कि प्रशासकीय कोश से निधि निकालकर उपविभागीय अधिकारी की संस्तुति के बगैर जानकारी के अधिनस्थ कर्मचारियों द्वारा जमीन धारकों को वितरित किया गया हो। इससे यह स्पष्ट होता है कि उपविभागीय अधिकारी भ्रष्टाचार का पर्दा खुलने के साथ ही सारी जिम्मेदारी अपने मातहत कर्मचारियों के मत्थे मढ़ते हुए वरिष्ठों की निगाह में अपने भ्रष्टाचार को छिपाने का कुत्सित षड्यंत्र कर रहे हैं। अतः इस मामले की जांच एंटिकरेप्सन ब्यूरो व ईडी द्वारा कराए जाने पर ही दूध का दूध और पानी का पानी हो पायेगा। यह लेख लिखने का हमरा उद्देश्य जनता को हो रहे भ्रष्टाचार के प्रति आगाह करने के अलावा शासन के संज्ञान में लाने का एक प्रयास भर है। 

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