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असली शिवसेना किसकी एकनाथ शिंदे के विचारों की या ठाकरे परिवार की?

हिन्दूत्व के मुद्दे पर अटल शिवसेना के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे, कार्यकर्ता असमंजस में ठाकरे के साथ रहे या हिन्दूत्व के साथ। 
उल्हासनगर : उल्हासनगर शहर के शिवसेना कार्यकर्ताओं व नेताओं में असमंजस की स्थिति, हिन्दूत्व के साथ रहें या उद्धव ठाकरे के साथ! हिन्दूत्व के मुद्दे पर मुख्यमंत्री का पद ठुकराने वाले एकनाथ शिंदे शिवसेना प्रमुख हिन्दू हृदय सम्राट बाला साहब ठाकरे के बने असली वारिस! 
हिन्दूत्व के मुद्दे को दरकिनार कर सत्ता के मोह में पिता पुत्र उद्धव ठाकरे व आदित्य ठाकरे मंत्री तो बन गये परंतु शिवसेना के कुछ नेताओं कार्यकर्ताओं को यह रास नहीं आ रहा था और वे मन ही मन घुट रहे थे, जिसका परिणाम यह आया की 55 विधायकों में से 34 विधायक एकनाथ शिंदे के साथ हो लिए और ठाकरे पिता पुत्र की कुर्सी को हिला दिया। अब उद्धव ठाकरे कह रहे हैं, "मुझे मुख्यमंत्री की कुर्सी का कोई मोह नहीं मैं तो शिवसेना प्रमुख का पद भी छोड़ने को तैयार हूँ" इस तरह की भावुक घोषणा कर बचे-खुचे विधायकों, नगरसेवकों और कार्यकर्ताओं को अपने साथ जोड़े रखना चाहते हैं! जबकि यही ठाकरे अभी कुछ दिनों पूर्व कांग्रेस के हितैषी बनकर अपने तख्त को बरकरार रखने के लिए औरंगजेब का गुणगान कर रहे थे। जिस कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से बालासाहब ठाकरे सारी जिन्दगी लड़ते रहे उसके सामने सत्ता के लिए घुटने टेकने वाले उद्धव ठाकरे के उद्घार। 

कांग्रेस से अलग होकर शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई परंतु पूरे महाराष्ट्र का समर्थन हासिल न कर सके और अंत में उन्हें कांग्रेस के समर्थन से ही सत्तासुख प्राप्त करना पड़ा, लेकिन भाजपा और शिवसेना युती ने फिर उन्हें उखाड़ फेका और दुसरी बार युती की सत्ता आती देख उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने अपनी कूटनीतिक चाल में मुख्यमंत्री की कुर्सी का लालच देकर शिवसेना प्रमुख को फंसा लिया। शरद पवार शिवसेना को हिन्दूत्व के विचार से डिगाकर जनाधार कम करने की अपनी चाल में कामयाब हो गये, क्योंकि सत्ता बचाने के लिए कई बार ठाकरे को हिन्दूत्व के मुद्दे से विमुख होना पड़ता रहा और कुछ नेताओं कार्यकर्ताओं के मन में यह बात खटकती रही जिसका परिणाम आज बगावत के रूप में देखने को मिल रही है। इससे यह भी साबित हो गया की शिवसेना अब ठाकरे परिवार की प्रायव्हेट लिमिटेड पार्टी बनकर नहीं चल सकती उसे कार्यकर्ताओं के विचारों का भी ख्याल रखना होगा नहीं तो इसी तरह हरबार टूट का सामना करना पड़ेगा! 

उल्हासनगर के कुछ नेता भी इस दौरान नाटरीचेबल रहे उनमें एकनाथ शिंदे के करीबी कहे जाने अरुणआसान नाटरिचेबल रहे तो वंही उल्हासनगर शिवसेना शहर प्रमुख राजेंद्र चौधरी से पूछने पर उन्होंने वेट एंड वाच कहा। उल्हासनगर एक नंबर के उपविभाग प्रमुख ने कहा वे मातोश्री के साथ खड़े हैं उनके लिए विचारधारा मायने नहीं रखती है। इसी प्रकार अलग अलग शिवसैनिकों के अलग अलग विचार रहे। अब यहाँ विचार करनेवाली बात यह है कि जिस शिवसेना से ठाकरे परिवार जुड़ा हुआ है वह असली शिवसेना है या फिर जिससे हिन्दूत्व जुड़ा हुआ है वह असली शिवसेना है। जिस तरह से एकनाथ शिंदे अपने विचारों पर अड़े हुए हैं, राकांपा कांग्रेस के समर्थन वाला मुख्यमंत्री पद भी उन्होंने ठुकरा दिया है। इस तरह अब अगर उद्धव ठाकरे नहीं झुकते हैं तो शिवसेना में दो फाड़ होना निश्चित है और यह नुकसान शिवसेना के लिए तगड़ा होगा अबतक अलग होने वाले लोग अपने स्वहित के लिए अलग हुए या फिर अपने स्वाभिमान पर लगी चोट के कारण अलग हुए, यह पहला मौका है जब पार्टी में विचारों को लेकर दो फाड़ होने की संभावना है। आगे क्या होगा यह समय के गर्भ में छिपा हुआ है। मेरे अपने विचारों के साथ कुछ अन्य लोगों के विचारों को संग्रहित करने की मेरी कोशिश है। पसंद आये तो और लोगों तक पहुंचाये इसी आशा और उम्मीद के साथ इतिश्री।

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