ताजा ख़बर

6/recent/ticker-posts

उल्हासनगर में सनद घोटाला थम नहीं रहा है, फर्जी कागजातों के आधार पर मिल रही है सनद!

उल्हासनगर उपविभागीय कार्यालय या भू-माफियाओं का अड्डा ! 

उल्हासनगर : ठाणे जिले का उल्हासनगर उपविभागीय कार्यालय कार्यक्षेत्र में उल्हासनगर और अंबरनाथ दो तालुकाओं की जवाबदेही है। इन दोनों तहसीलों के राजस्व व जमीन संबंधित जो भी मसले हैं वह उपविभागीय अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में होने के साथ उल्हासनगर शहर प्रशासक की जवाबदारी भी उनके पास है। 11 मई 1965 के पहले यु नंबर ई नंबर व अतिक्रमित जमीनों के लंबित पड़े मामलों का निपटारा करना व उनको सनद देने का अधिकार डीपी एक्ट 1954 के अंतर्गत उपविभागीय अधिकारी/प्रशासक को है। यदि कुछ विवादित मामले हैं तो उनको सेटलमेंट कमिश्नर के पास प्रस्तुत कर आदेशानुसार जमीनों की सनद देने का अधिकार प्रदत्त है।
         दाहिनी तरफ मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे व पुत्र आदित्य ठाकरे 

सरकारी नितियां

महाराष्ट्र सरकार की ढुलमुल नितियों व भ्रमित नियमों का नाजायज फायदा प्रशासक/उपविभागीय अधिकारी जयराज कारभारी, तालुका भू सर्वेक्षण अधिकारी, जिला अधिक्षक व सेटलमेंट कमिश्नर मुंबई उठाकर जेबें भर रहे हैं। इसका खामियाजा उल्हासनगर की निरीह जनता को उठाना पड़ रहा है, कागज पत्रों की हेराफेरी कर 11 मई 1965 तक डीपी एक्ट 1954 के अंतर्गत तथा सरकार द्वारा निर्गमित शासन सर्कुलर वर्ष 1973 के जमीन दर 6 व 13 रुपये तथा सर्कुलर 1983 के दर 13 से 20 रुपये अधिकतम दर से जमीन का मालिकाना हक या सनद देने का आदेश है, लेकिन उसके पीछे बैठे दलालों जैसे कि लक्ष्मण राठौर, सोमनाथ पूर्व कर्मचारी भालेराव, हरी वाधवा व चर्चित अजीत भाटिया की मिलीभगत से खरीददार को 7 हजार से लेकर 15 हजार रुपये प्रति चौरस मीटर का भुगतान करना पड़ता है। जबकि सरकारी खजाने में उपर लिखित न्युनतम दर ही सरकारी खाते में जमा हो पाता है, फलस्वरूप शासन व जनता को आर्थिक क्षति का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
       अजीत भाटिया 

45 वर्ष के कब्जा धारकों से धोखा

उल्हासनगर के आरक्षित व अनारक्षित तथा नदी व नालों के किनारों पर खाली पड़े भूखण्डों की सनदें भू माफियाओं को आसानी से मिल जा रही हैं। परंतु 40/45 वर्षों से निवास कर रहे झोपड़ा धारकों, चाल धारकों, दुकान धारकों, सामाजिक संस्थाओं आदि को मालिकाना हक से सरकार व कर्मचारियों के दोहरे रवैया के चलते वंचित रह गये हैं। रह रहे लोगों को पता भी नहीं चलता और उनकी जगह का मालिकाना हक/सनद, प्रशासक उल्हासनगर टाउनशिप, भूमापन अधिकारी, जिला अधिक्षक भूमापन तथा सेटलमेंट कमिश्नर व दलालों से मिलीभगत कर हजारों मिटर जमीन की सनद अजित भाटिया जैसे भू माफियाओं बिल्डरों को आवंटित हो जाती है, उसके बदले में अल्टरनेट साइड या फिर टीडीआर मांगते हैं। अपुष्ट सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि कतिपय भू-माफिया हिललाइन पुलिसस्टेशन के पीछे टेकड़ी, जिसे भूतपूर्व नगराध्यक्ष स्वर्गीय प्रह्लाद आडवाणी अप्पूगार्डन (दिल्ली पैटर्न) अनुसार प्रस्तावित किया था तथा एक रेस्टहाउस भी निर्मित करवाया था जो वर्तमान में अधोगति पर है उस भूखण्ड की फर्जी सनद निकालने की जुगाड़ में कुछ भू-माफिया हैं। क्या उल्हासनगर मनपा आयुक्त/प्रशासक राजा दयानिधि व वर्तमान नगर विकास मंत्री व पालक मंत्री जन जिवनदायी अप्पू गार्डन को मूर्त रुप देने व संरक्षित करने में भू-माफियाओं के चलते सफल हो पायेंगे? इस तरह के घोटालों के लिए महाराष्ट्र सरकार खुद जगह निर्माण करती है अपनी ढुलमुल नितियों के कारण जिसका फायदा अधिकारी कर्मचारी लेकर काला धन जमा कर रहे हैं। उदाहरणार्थ साईट नंबर 110, पोस्ट अंड टेलिग्राफ के लिए रिजर्व साइट व रिजेंसी एंटिलिया को सर्वे नंबर 53 की 21 एकड़ भूमि दे दी जाती है। लेकिन वही 21 एकड़ जमीन न्यायाधीशों के निवास हेतु मांगने पर दलदली जमीन कहकर नकार दिया जाता है। इस तरह का खेल कब तक चलेगा और जनता कब तक जमीन मालिक बनने के लिए आस लगाये बैठी रहेगी? इसका जवाब कौन देगा? 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ