उल्हासनगर : उल्हासनगर शहर 13 वर्ग किलोमीटर का शहर है, यहॉ विकास योजनाएं तो बनती परंतु कार्यान्वयन नहीं होती। शहर का दुर्भाग्य ऐसा है कि जो समाज भारत विभाजन के बाद निर्वासित होकर यहां आकर आश्रित हुआ, लेकिन कतिपय स्वार्थी व दुष्ट परवर्ती के लोगों ने उन्हें फिर से निराश्रित कर दिया। खुद तो आसपास के शहरों में मुंबई, नयीमुंबई व कल्याण जैसे सुविधाजनक और अच्छी जगह रहने चले गए। लेकिन एक दुधारू गाय तब तक निचोड़ी जाती है जब तक उसका विनाश नहीं हो जाता है। निराश्रित, आश्रितों ने उल्हासनगर की स्थिति उसी गाय जैसी कर रखी है। यहां जो भी राजनैतिक पार्टियाँ व नेता उदभवित हुए उन्होंने इस शहर को दुधारू गाय ही समझा चाहे नगरसेवक हों विधायक व सांसद, कतिपय स्व.सांसद रामभाऊ म्हालगी व नगराध्यक्ष प्रहलादआडवाणी को छोड़ दिया जाय तो सभी ने शहर को विकास देने की बजाय स्वको पोषित व विकसित किया है। उल्लेखनीय है कि मई 1986 से नगरपालिका पर एक ही परिवार का विशेषतः अधिकार रहा। वर्ष 1990 से 2009 तक विधायक भी इसी परिवार का रहा, विधायक रहते हुए पप्पू कालानी ने विधायिकी के कोई काम नहीं किए सिर्फ अवैध निर्माणों को बढ़ावा दिया और 20 रुपये फुट वसूल किया जिसका परिणाम है आजकी धराशायी होती इमारते और मौत के गाल में समाते, बेघर होते लोग। कई परिवार ध्वस्त हो गये, इतने विनाश पर भी लोगों की आंखे नहीं खुली। लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने के लिए तैयार नहीं! कुछ उम्मीदें भारतीय जनता पार्टी शिवसेना से थी वह भी अब धूमिल हो गयी है। लग रहा था प्रांत विशेष पर ध्यान देने का दम भरनेवाली शिवसेना उल्हासनगर शहर पर भी ध्यान देगी लेकिन परिणाम विपरीत ही है, नगरसेवक, महापौर से लेकर विधायक, सांसद अपने ही हितों को साधने में व्यस्त हैं। जनता को झूंठा आश्वासन और स्वहिताय कार्य करने में लगे हैं। जिनके पास सायकल नहीं थी झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर थे, आज वे कई फ्लेटों, कारों व रिसार्टों के मालिक बन बैठे हैं और जनता को उसकी हालत पर छोड़ दिया है। ऐसे में भाजपा नगरसेवक व विधायक क्यों पीछे रहते वे भी उसी अनैतिकता की दिशा में बढ़ते हुए आर्थिक लाभ व अवैध संपत्ति जुटाने में लग गये हैं।
विधायक कुमार आयलानी
पंडित दिनदयाल उपाध्याय द्वारा दिया गया एकात्म मानव वाद व समरसता के सिद्धांत को तिरोहित कर दिया। पहले संगठन से शुरू होनेवाला,सबको विश्वास में लेकर होने वाला कार्य अब कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता अब अन्य राजनैतिक पार्टियों की तरह ऊपर से संदेश आने लगा है। फलतः शहर का समन्वित विकास अवरुद्ध हो गया है। विधायक कुमार आयलानी से कुछ उम्मीद थी भाजपा के मूल सिद्धांतों को मानते हुए कुछ कार्य जनहिताय व शहर हित में करेंगे लेकिन उनसे भी निराशा ही हाथ लगती दिख रही है। 1986 से 92 तक पप्पू कालानी के कार्यकाल में जिन अवैध इमारतों का निर्माण हुआ था उसमें वर्तमान विधायक कुमार आयलानी की भी भूमिका रही है। वह भूमिका आज भी उनके मन में जागृत है, आज भी नालों आरक्षित भूखण्डों व वालधुनी नदी के किनारों की जमीनों को विधायक अपनी विधायिकी का गलत इस्तेमाल करते हुए सैकड़ों एकड़ जमीन हथिया कर उनपर गलत ढंग से इमारतों का निर्माण कर रहे हैं। जबकि प्रशासन व राजनैतिक नेताओं को भलीभांति ज्ञात है कि बैरेक, ब्लाक और औद्योगिक, व्यवसायिक संपत्तियों को छोड़ दिया जाय तो 70% उल्हासनगर अनाधिकृत बांधकामो से पटा पड़ा है। उन निवासियों को मालिकाना हक दिलाने के लिए सामाजिक संस्थायें 1970 से संघर्षरत हैं परंतु आज तक उनको उनका मालिकाना हक नहीं मिला। परंतु अवैध रीति से वर्ष 1990 के बाद बनी इमारतों को नियमित कराने हेतु विधायक, पालक मंत्री व सांसद एड़ी चोटी एक किए दे रहे हैं। जिसका दृष्टांत कल महाराष्ट्र की विधानसभा में सेना विधायक बालाजी किणीकर द्वारा अनाधिकृत इमारतों पर पूछे गये सवालों पर शिवसेना नगरविकास मंत्री एकनाथ शिंदे ने प्रतिउत्तर देते हुए केवल अनाधिकृत इमारतों, ज्योति व साईनाथ कालोनी का ही उल्लेख किया, इनको नियमित करने हेतु एक हाईपावर कमेटी राजस्व व नगरविकास मुख्य सचिव, कोकण व उल्हासनगर मनपा आयुक्त के साथ ही 15 सदस्यीय कमेटी बनाकर, वर्ष 2006 के आदेशों के अनुरूप नियमन - सनद देने की कार्यवाही की जाएगी ऐसा आश्वासन दिया परंतु खेद है कि उल्हासनगर में निर्मित वाणिज्यिकिय निर्माणों हेतु, जो बैरेक के रूप में पूरे शहर में, 1 से 5 नंबर तक स्थित है उन झोपड़ों और बैरकों हेतु कोई भी आश्वासन नहीं दिया गया। अमीर और गरीब के बीच की इस खाई को कौन-सा मंत्री व प्रशासन खत्म करेगा,समझ में नहीं आ रहा।
ज्ञात हो कि वर्ष 1970 से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा आवेदन, आंदोलन व लांगमार्च के माध्यम से उन निर्माणों को वैद्य कर जमीन का मालिकाना हक जिस वर्ष निर्माणकार्य किया गया, उस वर्ष के आधार पर जमीन का भाव लेते हुए मालकी हक (पूर्ण मालिकत्व) प्रदान किया जाय न की वर्ष 2006 में घोषित डी फार्म जिसमें मालिकाना हक न देते हुए पट्टाधारी दर्शाने की कोशिश की गयी। क्या ? प्रशासन व मंत्रीमंडल विधायक इस पर गहनता से विचार करते हुए उल्हासनगर के बिगड़ते हुए स्वरूप को बचाने और विकास की दिशा में ले जाने के लिए उचित मार्गदर्शन लेते हुए कार्य के प्रति प्रतिज्ञ होंगे?
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