अपटा संवाददाता
उल्हासनगर : उल्हासनगर मनपा क्षेत्र में धड़ल्ले से बन और बिक रही हैं, 50 माइक्रो से कम की पन्नियां। उमनपा का स्वच्छता विभाग दिखावे के लिए करता है कार्यवाही, हफ्ता वसूली ही होता है मुख्य उद्देश्य।
एक ओर जहाँ देश के प्रधानमंत्री एक ही बार उपयोग में आने वाली प्लास्टिक पन्नी बंद करने की घोषणा करते हैं, वहीं उमनपा अधिकारियों को कमाई का एक नया जरिया मिल जाता है। बतादें यह एक बार उपयोग में आने वाली पन्नी नदी, नाले व समुद्र के लिए अभिशाप है। इन पन्नियों में घर में बची हुई खाने पीने की चीजों को भरकर फेंक दिया जाता है, उन चीजों के साथ खाने जानवर पन्नी भी खा जाते हैं। जिससे गाय, भैंस, बकरी आदि पालतू जानवरों की जान पर बन आती है। कई बार जानवरों के पेट से कई किलो पन्नी निकली है। इन फेकी हुई पन्नियों को अपने आप खत्म होने में सैकड़ों वर्ष लगते हैं, इसीलिए मानव जीवन के लिए घातक है पन्नियां, पर्यावरण की दुश्मन हैं पन्नियां।
उल्हासनगर बीटीसी मैदान की ओर जाने वाली सड़क पर सीएनजी पंप के सामने पाताली शिवमंदिर के बगल में टीना प्लास्टिक में पचास माइक्रोन से कम की प्रतिबंधित प्लास्टिक पन्नी बनती है। इसी तरह उल्हासनगर कैम्प क्रमांक-1, श्मशान भूमि के पास प्रतिबंधित पन्नी के कयी कारखाने हैं जो बाहर से बंद करके अंदर इन कारखानों में इस तरह की पन्नियां बनाते और बेचते हैं।
इसीलिए शहर की हर दुकान व ठेलों पर इन प्रतिबंधित पन्नियों में भरकर सामान दिया जाता है। बतादें की कल ही खत्म हुई टीओके का एक पदाधिकारी जो यूटीए का भी पदाधिकारी है वह हर महीने कुछ गीने चुने पत्रकारों, समाज सेवियों के अलावा उल्हासनगर मनपा के अधिकारियों और कर्मचारियों को हर महीने हफ्ता बांटता है। इस तरह उल्हासनगर का यह व्यापारीक समूह 'युटीए' बन गया है पर्यावरण और मानवता का दुश्मन! अब यह एक गूढ़ प्रश्न बन गया है की क्या उल्हासनगर में कभी प्रतिबंधित पन्नी बंद होगी? क्या उल्हासनगर के भ्रष्ट अधिकारी व कर्मचारी कभी ऐसे लोगों पर सख्त कार्रवाई करेंगे?
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