सत्ता की भूख इतनी गहरी है कि सांसद लगा रहे हैं, कालानी महल के चक्कर, बैटमिंटन खेल कर डूबती नैया पर भी सवार, होने को तैयार!!
कमलेश दुबे
उल्हासनगर. उल्हासनगर महानगरपालिका के आगामी आम चुनाव को देखते हुए, सांसद डॉ.श्रीकांत शिंदे पिछले कुछ दिनों से साईं पार्टी के संस्थापक जीवन इदनानी और शहर की राजनीति में अपना वर्चस्व रखने वाले कालानी महल से दिनोदिन नजदीकियां बढ़ाने में
उल्हासनगर. उल्हासनगर महानगरपालिका के आगामी आम चुनाव को देखते हुए, सांसद डॉ.श्रीकांत शिंदे पिछले कुछ दिनों से साईं पार्टी के संस्थापक जीवन इदनानी और शहर की राजनीति में अपना वर्चस्व रखने वाले कालानी महल से दिनोदिन नजदीकियां बढ़ाने में
जुटे हुए हैं। पिछले 2 महीनों के भीतर इदनानी के कई कार्यक्रमों में सांसद शिंदे का शामिल होना शहर के राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है।
सांसद डॉ. श्रीकांत शिंदे
सांसद डॉ. श्रीकांत शिंदे
महानगरपालिका के पिछले आम चुनाव में उम्रकैद की सजा काट रहे कुख्यात माफिया सरगना पप्पू कालानी के पुत्र ओमी कालानी द्वारा बनाई गई टीम ओमी कालानी (TOK) से युति कर भाजपा चुनाव में गई और टीओके उम्मीदवारों ने भाजपा की निशानी पर पर्चा दाखिल कर चुनाव लड़ा, जीत भी हासिल की दोनों को मिलाकर भी जब बहुमत नहीं मिला तब भाजपा ने साईं पार्टी के समर्थन से महानगरपालिका में सत्ता स्थापित की। पर यह गठबंधन ज्यादा दिनों नहीं चला और टीओके ने अलग होकर शिवसेना का मेयर बना दिया और सांई पार्टी का विलय भाजपा में हो गया। विलय के बाद से जीवन इदनानी अलग थलग पड़े हैं।अब मुरझाये फूल में सांसद खुशबु तलाशने निकले हैं। दोस्ती बढ़ाने के लिए उनके साथ बैटमिंटन खेल रहे हैं। और बार बार कलानी महल के चक्कर भी लगा रहे हैं। अनेकों बार उल्हासनगर मनपा की सत्ता परिवर्तन में कालानी परिवार (टीओके) एवं साई पार्टी का अहम रोल रहा है। इसलिए ऊक्त दोनों स्थानिक राजनीतिक दलों को सांसद शिंदे अपने पक्ष में लाने की फिराक में जुटे हैं।
आगामी महानगरपालिका चुनावों को देखते हुए शहर में एक नए राजनीतिक समीकरण को नकारा नहीं जा सकता है। शिवसेना-कालानी समूह और साईं पार्टी के गठजोड़ की संभावना जताई जा रही है। राज्य और ठाणे जिले में शिवसेना-भाजपा पिछले कुछ दिनों से आमने-सामने हो गयी है। दोनों पार्टियों के बीच दुराव का नतीजा ही है। हाल ही में हुई भाजपा केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी और उमनपा में भाजपा मनोनीत नगरसेवक प्रदीप रामचंदानी को सड़क पर गिराकर पीटने के बाद चेहरे पर कालिख पोत देना इन घटनाओं के बाद शिवसेना भाजपा का नजदीक आना मुश्किल नजर आ रहा है। लोगों का मानना है मारपीट के मामले पर खेद व्यक्त करने के बजाय शिवसेना नेताओं ने मारपीट करने वालों को सम्मानित किया, यह जले पर नमक छिड़कने जैसा है। इतनी गहरी दुश्मनी के बाद अब राजनीतिक तौर पर शिवसेना, भाजपा का नजदीक आना बहुत मुश्किल नजर आ रहा है।
महानगरपालिका के आगामी चुनावों को देखते हुए, शिवसेना टीओके और सांईपार्टी के बीच गठबंधन की संभावनाओं को सांसद तलाश रहे हैं। शिवसेना सांसद शिंदे एक ओर सिंधी समुदाय के दबदबे वाले कालानी समूह को साथ लाने के लिए कालानी महल के चक्कर लगा रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर जीवन इदनानी के साथ खेल परिसर के उद्घाटन में शिरकत कर इदनानी के साथ बैडमिंटन खेलना लुफ्त उठाने का मामला नहीं हैं। इसलिए राजनीतिक गलियारों में यह कयास लगाया जाना शुरू हो गया है, कि बैडमिंटन कोर्ट की पारी की तरह ही सांसद शिंदे की ओर से इदनानी आगामी चुनाव में शिंदे और शिवसेना के लिए भी खेलेंगे?
सिंधी वोट की राजनीति
अगर सांसद डॉ.शिंदे कालानी और इदनानी को भाजपा से बाहर करने में सफल होते भी हैं, तो उनको कालानी और इदनानी के बीच की दुश्मनी को मिटाना होगा। स्वार्थ के कारण नेताओं की दुश्मनी मिट भी जाती है, तो क्या सिंधी भाषी वोटर गैर सिंधयों द्वारा एक सिंधी भाषी को पीटा जाना और पीटने वालों का स्वागत कर, यह बयान देना की शिवसेना अपने विरोधियों से इसी तरह से निपटती है, यानी की मारपीट को मान्यता देगा। राजनीति में न कोई आजीवन दोस्त होता है और न ही दुश्मन पर शिवसेना तो मारपीट कर लोगों को आजीवन दुश्मन बना लेने में विश्वास करती है। इसलिए सांसद कालानी और इदनानी को एक साथ लाते भी हैं तो, यह विश्वास कैसे दिलाएंगे की उनके साथ मत भिन्नता होने पर शिवसेना अपने अंदाज में उनसे नहीं निपटेगी। इस तरह अब सांसद का राजनीतिक कौशल दांव पर लगा है कि, दो विपरीत ध्रुवों को एक साथ कैसे लाते हैं और मारपीट की राजनीति में विश्वास रखने वाली अपनी पार्टी की छवि को लोगों के सामने कैसे पेश कर भरोसा जगाते हैं। यह लड़ाई आसान नहीं है सांसद डाॅ.श्रीकांत शिंदे के लिए। परंतु राजनीति में किसी भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।अब तो यह समय ही बताएगा की राजनैतिक ऊंट किस करवट बैठता है।
अगर सांसद डॉ.शिंदे कालानी और इदनानी को भाजपा से बाहर करने में सफल होते भी हैं, तो उनको कालानी और इदनानी के बीच की दुश्मनी को मिटाना होगा। स्वार्थ के कारण नेताओं की दुश्मनी मिट भी जाती है, तो क्या सिंधी भाषी वोटर गैर सिंधयों द्वारा एक सिंधी भाषी को पीटा जाना और पीटने वालों का स्वागत कर, यह बयान देना की शिवसेना अपने विरोधियों से इसी तरह से निपटती है, यानी की मारपीट को मान्यता देगा। राजनीति में न कोई आजीवन दोस्त होता है और न ही दुश्मन पर शिवसेना तो मारपीट कर लोगों को आजीवन दुश्मन बना लेने में विश्वास करती है। इसलिए सांसद कालानी और इदनानी को एक साथ लाते भी हैं तो, यह विश्वास कैसे दिलाएंगे की उनके साथ मत भिन्नता होने पर शिवसेना अपने अंदाज में उनसे नहीं निपटेगी। इस तरह अब सांसद का राजनीतिक कौशल दांव पर लगा है कि, दो विपरीत ध्रुवों को एक साथ कैसे लाते हैं और मारपीट की राजनीति में विश्वास रखने वाली अपनी पार्टी की छवि को लोगों के सामने कैसे पेश कर भरोसा जगाते हैं। यह लड़ाई आसान नहीं है सांसद डाॅ.श्रीकांत शिंदे के लिए। परंतु राजनीति में किसी भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।अब तो यह समय ही बताएगा की राजनैतिक ऊंट किस करवट बैठता है।
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