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उल्हासनगर का साधूबेला स्कूल/कालेज बना वसुली का अड्डा, दो वर्ष से स्कूल बंद फिर भी चाहिए पूरी फीस।

उल्हासनगर साधूबेला गर्ल्स कालेज को पूरी फीस नहीं दी गयी तो वह परिक्षा परिणाम नहीं देगा!

पूरी फीस नहीं तो रिजल्ट नहीं, भले ही क्षात्राओं को नौकरी न मिले, आगे की पढ़ाई रुक जाय!

उल्हासनगर: उल्हासनगर कैम्प नं.एक स्थित जे वाटूमल साधूबेला गर्ल्स कालेज का स्टाफ और टिचर्स पढाई तो कराते नहीं सिर्फ फीस के पीछे पड़े रहते हैं। पूरी फीस देने पर ही मिलेगा परिक्षा परिणाम पत्र, भले ही शिक्षा मंत्री ने फीस माफ करने के लिए कहा हो! प्रशिक्षार्थी कुछ भी बेंचकर कालेज को दें फीस।

उल्हासनगर स्थित साधूबेला कालेज कोविड-19 के चलते पूरी तरह से बंद था और है। आन लाइन लेक्चर उन्हीं बच्चों को दिए गये जिन्होंने पूरी फीस अदा की थी। साधूबेला स्कूल व कालेज में फीस तो और सभी कालेजों से दुगुनी, तीगुनी है पर पढाई के नाम पर आधा भी नहीं। यहां पढे हुए बच्चों को कंप्यूटर का क भी नहीं आता जबकि उन्हें तीन वर्ष तक कंप्यूटर सिखाया गया और सिखाने के लिए चार हजार तक फीस ली गयी। एक बच्ची के पिता चल बसे और उसकी परिस्थिति खराब हो गयी, इस कारण वह दो वर्ष तक स्कूल नहीं जा सकी दो वर्ष बाद उसको स्कूल छोड़ने के दाखिले की जरूरत पड़ती है। तब वह स्कूल से अपना दाखिला मांगने जाती है, तब स्कूल प्रशासन उससे कहता है दो वर्ष की फीस भरने के बाद ही दाखिला मिलेगा। इस तरह स्कूल प्रबंधन सिर्फ विद्यार्थियों के दोहन के पीछे पड़ा है। शिक्षा देने के नाम पर सिर्फ वसुली का कारोबार शुरू है।

इसी तरह जिन विद्यार्थियों ने अपनी डीग्री की पढ़ाई इस कोविड-19 काल में किसी तरह पूरी की है। अब वह छात्राएँ अपने द्वितीय और त्रितिय सत्र के परिक्षा परिणामों के लिए चक्कर काट रहे हैं। परंतु कालेज प्रशासन देने को तैयार नहीं उसको पूरी फिस चाहिए। इस कारण कई विद्यार्थी अपनी आगे की पढ़ाई से भी वंचित रह जायेंगे। अब यह विद्या के संस्थान अब व्यापारिक संस्थान बन कर रह गये हैं। लोगों के कर के पैसों को स्कूल और कॉलेज को ग्रांट के रुप में देने वाली सरकार न जाने क्यों इस तरह के संस्थानों पर कार्रवाई करने से कतरा रही है। यह एक प्रश्न बनकर रह गया है। 

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