राज्य सरकार को अड़चन में डालने वाले अधिकारियों को ही मिल रहा है महत्वपूर्ण पद!
मुंबई : राज्य के पूर्व पुलिस महासंचालक सुबोध कुमार जयस्वाल की नियुक्ति सीबीआई प्रमुख के पद पर की गयी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्य न्यायाधीश एन.व्ही. रमन्ना और विरोधी पक्ष नेता अधीर रंजन चौधरी की हुई बैठक में इनके नाम की जोरदार चर्चा थी। अंत में सीबीआई संचालक पद पर जयस्वाल की ही नियुक्ति हुई। इस पर मुंबई के सेवानिवृत्त सहायक पुलिस आयुक्त राजेंद्र त्रिवेदी ने राज्य सरकार को मशविरा दिया है कि 'सीबीआई के नवनियुक्त संचालक सुबोध कुमार जयस्वाल को राज्य सरकार ने मदद किया है। राज्य सरकार जिस अधिकारी पर ज्यादा विश्वास दिखाती है और मदद करती है वही अधिकारी राज्य सरकार की अड़चनों का कारण बनता है ऐसा कुछ दिनों से घट रही घटनाओं से प्रतीत होता है। अब तो राज्य सरकार की आंखें खुल जानी चाहिए, अब तो प्रमाणिक और ईमानदार लोगों की नियुक्ति महत्वपूर्ण पदों पर करनी चाहिए। इस तरह की सलाह राजेंद्र त्रिवेदी ने राज्य सरकार को दी है।
सुबोधकुमार जयस्वाल और राजेंद्र त्रिवेदी
जयस्वाल और तेलगी प्रकरण
महाराष्ट्र कैडर के अधिकारी सुबोधकुमार जयस्वाल अब जिनकी नियुक्ति सीबीआई संचालक पद पर हुई है। देश की एक महत्वपूर्ण यंत्रणा के प्रमुख बने हैं। यह पद उनको महाराष्ट्र राज्य सरकार की मदद से नशीब हुआ है। सन 2000 में तेलगी प्रकरण हुआ था। इस प्रकरण में एस आय टी गठित की गई थी, वरिष्ठ अधिकारी होने के नाते इस एसआयटी में जयस्वाल भी नामित हुए थे। उस समय के तत्कालीन पुलिस आयुक्त रणजीत शर्मा को इन्होंने गिरफ्तार किया। उस समय रणजीत शर्मा ने उच्चतम न्यायालय में जमानत याचिका दाखिल की थी, मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने उन्हें जमानत ही नहीं दिया, तेलगी प्रकरण की जांच पर ही संसय जाहिर करते हुए सुबोधकुमार पर ठीक से जांच न करने आक्षेप भी लगा दिया।
'.... तो सुबोधकुमार सीबीआई
संचालक पद तक पहुंचते ही नहीं "
उसके बाद रणजीत शर्मा अपने ऊपर दर्ज मामले को रद्द करने की मांग लेकर पुणे स्थित मोका न्यायालय गये। मोका न्यायालय ने अपना आदेश सुनाते हुए आदेश में लिखा सुबोधकुमार ने ठीक से जांच नहीं की और तेलगी को मदद किया! मोका न्यायालय के आदेश से यह दो मुद्दे निकालने के लिए मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। तब न्यायालय ने इन दोनों मुद्दों पर अगले छह महीने के लिए स्थगन आदेश देने के साथ ही सरकार प्रतिज्ञापत्र देकर बताये के इस बारे में उसका क्या मत है। आदेश में यह भी लिखा था। यह याचिका 2007 की है और इस घटना को 14 वर्ष बीत चुके हैं।
'जयस्वाल को मदद करने की घटना '
उस समय से आज तक किसी भी सरकार ने सुबोध कुमार की याचिका के विरोध में प्रतिज्ञापत्र दाखिल नहीं किया! यह घटना तो यही दर्शाती है कि सरकारें सुबोध कुमार को मदद कर रही थी। राज्य सरकार ने सुबोध कुमार के खिलाफ प्रतिज्ञापत्र दाखिल किया होता तो उन पर कार्रवाई हुई होती तो उन्होंने जिन महत्वपूर्ण पदों का उपभोग किया, उन्हें उसका उपभोग करने का मौका न मिलता तथा सुबोधकुमार को सीबीआई प्रमुख पद पाने में अनेक अड़चनों का सामना करना पड़ता। त्रिवेदी ने कहा कि इससे तो यही साबित होता है कि राज्य सरकार की मदद के बल पर ही सुबोधकुमार सीबीआई प्रमुख बने हैं। इसी तरह सुबोधकुमार को राज्य सरकार ने राज्य पुलिस बल का महासंचालक बनाया और उन्होंने ही कहा कि सरकार पुलिस बदली में हस्तक्षेप कर रही है यह बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। जरूरत पड़ने पर स्तिफा देने से भी वे पीछे नहीं हटेंगे। इस समय राज्य सरकार के विरुद्ध सीबीआई जांच शुरू है। कार्रवाई मे अब तेजी आने की संभावना भी व्यक्त किया उन्होंने।
रश्मि शुक्ला और परमबीर सिंह का
उदाहरण
दुसरा उदाहरण पुलिस महासंचालक रश्मि शुक्ला का है। इन्होंने राजकीय नेताओं व अधिकारियों की फोन टैपिंग की परंतु सरकार ने इन्हें माफ कर दिया। आगे चलकर उन्होंने भी सरकार की पोल खोलकर रख दी। उसके बाद सरकार ने परमबीर सिंह को पुलिस आयुक्त बनाया। अब उन्होंने ने ही कहा राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने मुंबई के बार और पब से महिने में 100 करोड़ रुपये की वसूली का लक्ष्य दिया है। इस तरह का आरोप राज्य सरकार पर लगाया और राज्य सरकार को अड़चन में ला दिया। अब तो राज्य सरकार को सुधरना चाहिए ऐसी अपेक्षा राजेंद्र त्रिवेदी ने राज्य सरकार से जाहिर की है।
महाराष्ट्र कैडर के अधिकारी सुबोधकुमार जयस्वाल अब जिनकी नियुक्ति सीबीआई संचालक पद पर हुई है। देश की एक महत्वपूर्ण यंत्रणा के प्रमुख बने हैं। यह पद उनको महाराष्ट्र राज्य सरकार की मदद से नशीब हुआ है। सन 2000 में तेलगी प्रकरण हुआ था। इस प्रकरण में एस आय टी गठित की गई थी, वरिष्ठ अधिकारी होने के नाते इस एसआयटी में जयस्वाल भी नामित हुए थे। उस समय के तत्कालीन पुलिस आयुक्त रणजीत शर्मा को इन्होंने गिरफ्तार किया। उस समय रणजीत शर्मा ने उच्चतम न्यायालय में जमानत याचिका दाखिल की थी, मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने उन्हें जमानत ही नहीं दिया, तेलगी प्रकरण की जांच पर ही संसय जाहिर करते हुए सुबोधकुमार पर ठीक से जांच न करने आक्षेप भी लगा दिया।
'.... तो सुबोधकुमार सीबीआई
संचालक पद तक पहुंचते ही नहीं "
उसके बाद रणजीत शर्मा अपने ऊपर दर्ज मामले को रद्द करने की मांग लेकर पुणे स्थित मोका न्यायालय गये। मोका न्यायालय ने अपना आदेश सुनाते हुए आदेश में लिखा सुबोधकुमार ने ठीक से जांच नहीं की और तेलगी को मदद किया! मोका न्यायालय के आदेश से यह दो मुद्दे निकालने के लिए मुंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। तब न्यायालय ने इन दोनों मुद्दों पर अगले छह महीने के लिए स्थगन आदेश देने के साथ ही सरकार प्रतिज्ञापत्र देकर बताये के इस बारे में उसका क्या मत है। आदेश में यह भी लिखा था। यह याचिका 2007 की है और इस घटना को 14 वर्ष बीत चुके हैं।
'जयस्वाल को मदद करने की घटना '
उस समय से आज तक किसी भी सरकार ने सुबोध कुमार की याचिका के विरोध में प्रतिज्ञापत्र दाखिल नहीं किया! यह घटना तो यही दर्शाती है कि सरकारें सुबोध कुमार को मदद कर रही थी। राज्य सरकार ने सुबोध कुमार के खिलाफ प्रतिज्ञापत्र दाखिल किया होता तो उन पर कार्रवाई हुई होती तो उन्होंने जिन महत्वपूर्ण पदों का उपभोग किया, उन्हें उसका उपभोग करने का मौका न मिलता तथा सुबोधकुमार को सीबीआई प्रमुख पद पाने में अनेक अड़चनों का सामना करना पड़ता। त्रिवेदी ने कहा कि इससे तो यही साबित होता है कि राज्य सरकार की मदद के बल पर ही सुबोधकुमार सीबीआई प्रमुख बने हैं। इसी तरह सुबोधकुमार को राज्य सरकार ने राज्य पुलिस बल का महासंचालक बनाया और उन्होंने ही कहा कि सरकार पुलिस बदली में हस्तक्षेप कर रही है यह बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। जरूरत पड़ने पर स्तिफा देने से भी वे पीछे नहीं हटेंगे। इस समय राज्य सरकार के विरुद्ध सीबीआई जांच शुरू है। कार्रवाई मे अब तेजी आने की संभावना भी व्यक्त किया उन्होंने।
रश्मि शुक्ला और परमबीर सिंह का
उदाहरण
दुसरा उदाहरण पुलिस महासंचालक रश्मि शुक्ला का है। इन्होंने राजकीय नेताओं व अधिकारियों की फोन टैपिंग की परंतु सरकार ने इन्हें माफ कर दिया। आगे चलकर उन्होंने भी सरकार की पोल खोलकर रख दी। उसके बाद सरकार ने परमबीर सिंह को पुलिस आयुक्त बनाया। अब उन्होंने ने ही कहा राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने मुंबई के बार और पब से महिने में 100 करोड़ रुपये की वसूली का लक्ष्य दिया है। इस तरह का आरोप राज्य सरकार पर लगाया और राज्य सरकार को अड़चन में ला दिया। अब तो राज्य सरकार को सुधरना चाहिए ऐसी अपेक्षा राजेंद्र त्रिवेदी ने राज्य सरकार से जाहिर की है।
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