उल्हासनगर के आयुक्त डां. राजा दयानिधि से बड़ा बे... और भ्रष्ट आयुक्त शायद ही कोई महाराष्ट्र में हो!!
उल्हासनगर महानगर पालिका के आयुक्त, महापौर, उपमहापौर आयुक्त, उपायुक्त, सहायक उपायुक्त के साथ ही विपक्ष व अधिकतम नगरसेवकों की सांठगांठ से सैकड़ों अवैध निर्माण उल्हासनगर में चल रहे हैं। इन बांधकामों द्वारा जनता व मनपा की तिजोरी पर डाका डाल रहे हैं झोलाछाप ठेकेदार और कथित भवन निर्माताyou tube
चल रहे अवैध बांधकामों से जहाँ एक ओर शहर अस्त व्यस्त हो रहा है। तो वहीं मनपा की तिजोरी में कुछ न पहुंचने से शहर के विकास में भी बाधा उत्पन्न होती है। सत्ता, विपक्ष भ्रष्ट होने से कर्मचारियों अधिकारीयों को भी बहती गंगा में हाथ धोने का मौका मिल जाता है। यही कारण है कि उल्हासनगर मनपा भ्रष्टाचार की दलदल में धंसी जा रही है।
अवैध निर्माणों से शहर ही अस्त व्यस्त नहीं होता जनता भी ठगी जाती है। अवैध निर्माण करने वाले ठेकेदार तकनीकी तौर पर एकदम अनजान होते हैं। तो वहीं अवैध निर्माण करने के लिए दाम दुगुने से ज्यादा लेते हैं। जिस प्रभाग में अवैध निर्माण शुरू होने से पहले नगरसेवक से मिलना होता है, नगर सेवक बताता है निर्माण करने के लिए कच्चा माल किससे लेना है और निर्माणकार्य किस ठेकेदार से करवाना है। क्योंकि ठेकेदार, कच्चा माल बेचने वाले(ईंट रेती सिमेंट आदि) से नगरसेवक की पहले ही सांठगांठ होती है। फिर बारी आती है प्रभाग अधिकारी की वह अगर छोटा बांधकाम है तो रुपये २५ हजार से शुरू होकर लाखों तक जाता है। यही पैसा उपर तक जाता है। बीट मुकादम को काम के हिसाब से तीन हजार से पांच हजार के बाद आते हैं पत्रकार यह लोग अपनी औकात के हिसाब से रुपये २ सौ से ५ हजार तक लेते हैं। भ्रष्टाचारियों को दिये गये इन पैसों का बोझ कौन सहता है? जनता।
ठेकेदार निर्माण कार्य बड़ी ही तेज गति से करता है ताकि लोगों से लिए गये पैसे जो कथित पत्रकारों व समाजसेवकों को देने हैं उनमें से कुछ बच जांय, जब तक लोगों को पता चले तबतक बांधकाम पूरा हो जाय। इस चक्कर में बांधकाम की गुणवत्ता खत्म हो जाती है। इस तरह बांधकाम करवाने वाले को दोहरी मार पड़ती है। पैसे भी ज्यादा जाते हैं और निर्माण भी कच्चा रह जाता है।
अभी-अभी कुछ दिनों पहले उल्हासनगर के चरणदास चौक पर एक एक पांच मंजिला इमारत ढह गयी जिसमें पांच जनों की जान चली गयी। यह इमारत भी अवैध थी। उसके रहवासी दर दर न्याय के लिए भटक रहे हैं। जिसके पास रहने को मकान नहीं वे अपने रिश्तेदारों के घर रह रहे हैं। नेता घटना स्थल पर पहुंचे लोगों को शांतवना दी फोटो खिचाकर अपनी राजनीति चमकाई और चले गये। मनपा ने आडिट रिपोर्ट की बात कही। पर बेघर हुए लोगों को वापस कैसे बसाया जाय ऐसी चर्चा कंही सुनाई नहीं दी। अब तक जितनी इमारतें गिरी या गिराई गयी उन इमारतों में रहने वाले कहाँ है? खाली हुई जमीन के तो दर्जनों मालिक सामने हैं! क्या इन्होंने फ्लैट की किमत नहीं ली थी? या करार किया था इमारत के गिरने पर जमीन वापस ले ली जायेगी? इमारत समय से पहले गिर गयी तो निर्माणकर्ता और अभियंताओं पर मामला दर्ज क्यों नहीं हुआ? यह एक गूढ़ सवाल है।
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