शुक्रवार को कोथमिरे ने ठाणे शहर की फिजाओं में अंतिम सांस ली। वे अपनी नयी मंजिल नक्सलवादी जिला गडचिरोली की यात्रा पर निकल गए। हम दुआ करते हैं कि डीआईजी उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें। कोथमिरे को डीआईजी का रीडर बनाकर भेजा गया है।
मृदुभाषी, मिलनसार राजकुमार कोथमिरे भ्रष्ट लोगों की सेवा में अहर्निश तत्पर रहते थे। उनके अचानक चले जाने से ठाणे शहर की जनता की आँखों में ख़ुशी के आंसू हैं तो भ्रष्ट, भ्रष्टाचारी और अपराधी खून के आंसू रो रहे हैं। वे इसे अपनी निजी क्षति मान रहे हैं। ऐसा एक वाकया साझा करना चाहूंगा। उल्हासनगर के सबसे बड़े गोल्ड स्मगलर दीपक सुहानी के खिलाफ राजकुमार कोथमिरे जांच कर रहे थे। उनसे दीपक सुहानी का कष्ट देखा नहीं गया। कोथमिरे साहब ने उसके धंधे का बोझ अपने कंधे पर ले लिया। उसका धंधा खुद ही संभाल लिया। दूसरा, कोथमिरे साहब को जब मालूम पड़ा कि उल्हासनगर में स्वामिनी साड़ी सेंटर के मालिक के पास 300 करोड़ रुपये नकद पड़े हैं तो उसका बोझ हल्का करने के लिए वे ईडी ऑफिसर बनकर पहुँच गए और सिर्फ 15 करोड़ लेकर चले आये।
एक बात तो तय है कि ठाणे हफ्ता विरोधी प्रकोष्ठ में अब कितना भी भ्रष्ट ऑफिसर आ जाये उनकी जगह नहीं ले सकता। उन्होंने भ्रष्टाचार की ऊंचाइयों को छुआ था। भ्रष्ट और भ्रष्टाचार की बात जब भी होगी राजकुमार कोथमिरे का नाम सबसे पहले और अदब के साथ लिया जायेगा। मीडिया ने उन्हें ‘एक्सटॉरशन का राजकुमार’ कहा था। राजकुमार कोथमिरे एक्सटॉरशन का काम इतनी तल्लीनता से करते थे कि नेता और मंत्री भी कन्फ्यूज़ हो जाते थे। ठाणे शहर के शिवसेना विधायक प्रताप सरनाईक को राज्य सरकार से पत्र लिखकर पूछना पड़ा कि ये राजकुमार कोथमिरे हफ्ता विरोधी दल का प्रमुख है कि हफ्ता वसूली दल का ? पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में विरोधी पक्ष नेता देवेंद्र फडणवीस ने भी विधानसभा अध्यक्ष से पूछा कि महोदय- ये राजकुमार कोथमिरे है कौन ? विपक्ष जानना चाहता है।
हम सबके लाडले कोथमिरे साहब इतनी सफाई से काम करते थे कि कोई भी उनका हाथ पकड़ नहीं पाता था। मनसुख हिरण हत्याकांड में एटीएस ने एक बार, एनआईए ने 3 बार और बिल्डर मयूरेश राऊत की कारों के मामले में भी एनआईए ने 3 बार पूछताछ की लेकिन वे भी कोथमिरे साहब को गिरफ्तार नहीं कर पाए।
राजकुमार कोथमिरे साहब के बारे में जितना कहें या लिखें कम है। अंत में मैं दो शब्द लिखकर अपनी लेखनी को विराम देना चाहूंगा कि पहले कोथमिरे साहब चिन्दी चोर थे। वो तो ठाणे में आने के बाद उन्हें ऐसे गुरु मिले जिन्होंने उन्हें अपने जैसा डाकू बना दिया।
कोरोना काल में उनके इस प्रकार असमय चले जाने से घाटकोपर के हॉकर्स मिठाइयां बाँटकर सेलिब्रेट कर रहे हैं। घाटकोपर पुलिस स्टेशन से एलबीएस मार्ग पर रात को जोर-जोर से जब चीखने-चिल्लाने की आवाज़ आती थी तो लोग समझ जाते थे कि कोथमिरे साहब आज नाईट ड्यूटी में हैं। कोथमिरे साहब हॉकरों की बेदम पिटाई कर उनकी दिन भर की कमाई लूट लेते थे।
ऐसा भी नहीं है कि कोथमिरे साहब के जाने के बाद ठाणे में भ्रष्ट अधिकारियों का अकाल आ जायेगा। वे अपने पीछे दीपक देवराज, अविनाश अंबुरे, एनटी कदम, मदन बल्लाल, मुकुंद हाटोते, व्यंकटेश आंधले, किशोर खैरनार, अनिल पोवार, डीडी टेले, एसबी साल्वे आदि भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं।
अंत में, कोथमिरे साहब जहां भी रहें, खुश रहें। वहीं रहें। ॐ शांति।

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