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ईश्वर का खेल समझ लेना ही भक्ति है।

            भक्त और भगवान का मेल!

 एक मंदिर में एक पुजारी रहते थे। वे बहुत विद्वान और दयालु थे पाप करने का तो छोड़िए वे पाप करने का ख्याल आने पर भी सिहर जाते थे। उनपर लोगों की बड़ी आस्था थी। गांव में पूजा-पाठ करते बड़े आराम से दिन कट रहे थे। बरसात का मौसम था। कयी दिनों से घनघोर वर्षा हो रही थी। गांव के नजदीक बहने वाली नदी उफान पर थी, गांववासियों को बाढ़ की आसंका हो गयी थी। लोग अपना सामान बांधकर गांव छोड़कर किसी ऊंचे स्थान पर जाने लगे थे। गांव से निकलते समय कुछ गांववाले अपनी बैलगाड़ी लेकर आये और पंडित जी से कहा महाराज बाढ़ आनेवाली हैै, हम लोग गांव छोड़कर जा रहे हैं, आप भी हमारे साथ निकल चलिए। पंडित जी ने कहा मैं नहीं जाऊंगा मैं इसी मंदिर में रहकर भगवान की सेवा करुंगा मूझे वही सकुशल रखेंगे। गांववालों के लाख समझाने और मिन्नत करने के बाद भी पंडित जी नहीं माने तो गांव वाले चले गये। आखिर नदी का बांध टूट गया गांव में पानी भरने लगा, गांव भर जाने के बाद मंदिर के चारो ओर पानी भर गया आने जाने का रास्ता बंद हो गया तब कुछ लोग नाव लेकर आये और पंडित जी से बोले पंडित जी निकल चलिए किसी भी क्षंण मंदिर में पानी प्रवेश कर जायेगा आप हमारे साथ चलिए पर पंडित जी ने फिर नकार दिया और लोग नाव लेकर चले गये। मंदिर में पानी प्रवेश कर गया, पंडित जी मंदिर के उंचे स्थान पर चढ़कर बैठ गए इतने में सेना के कुछ लोग आये और पंडित जी से बोले महाराज पानी बहुत है। पूरे मंदिर के डूब जाने की आशंका है आप हमारे साथ चलिए पंडितजी का फिर वही जवाब भगवान बचाएंगे लाख कोशिश के बाद पंडित जी नहीं माने आखिर सेना के लोगों को जाना पड़ा। बाढ़ का पानी और बढ़ा पूरा मंदिर डूब गया सिर्फ गुंबद बचा था। पंडित जी गुंबद पर चढ़कर वहां लगी पताका पकड़कर बैठे थेे। वहीं से गुजर रहा एक हेलिकॉप्टर, जो लोगों की मदद और राहत कार्य में जुटा था उसकी नजर पंडित जी पर पड़ी। हेलिकॉप्टर चालक पंडित जी को ले जाने की जीद करने लगा पर पंडित जी को तो अपने निष्पाप होने पर गर्व था वे ईश्वर के इस खेल को समझ पाने में असमर्थ थे कि हर बार ईश्वर उनकी मदद के लिए साधन भेज रहा है। और इस बार भी हेलीकॉप्टर पर बैठने से मना कर दिया। इतने में पानी के एक जोरदार बहाव में मंदिर पूरा डूब गया पंडित जी बह गये और उनकी जीवन लिला समाप्त हो गयी।

पंडित जी की आत्मा स्वर्ग लोक पहूंची वहां उनका जोरदार स्वागत हुआ और कुछ समय पश्चात ईश्वर पंडित जी मिलने आये। ईश्वर को देख पंडित जी भड़क उठे और बोले मैं सारा जीवन निष्पाप, निष्कलंक रहा और आपकी सच्चे मन से सेवा की तब पर भी आप मुझे बचाने नहीं आये। यह सुनकर भगवान मुस्कुराने लगे और कहा नाराज मत होइए एक दो बार नहीं मैं चार बार तुम्हें बचाने आया पर तुम समझ न सके। इसमें मेरा क्या अपराध? अच्छे लोगों की मैं बार बार सहायता करने के लिए तत्पर रहता हूँ। पर वे लोग मुझे और मेरी सहायता को पहचाने तो सही। जो कुछ आपके पास आता है वह मेरी ही मर्जी से आता है। मैं स्वयं कहां कहां पहुंच पाऊंगा इसलिए मेरे भेजे हुए साधन को मेरी मर्जी मानकर उसका इस्तेमाल करना ही प्राणी का कर्तव्य है। 

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