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उल्हासनगर महानगर पालिका एसिया की सबसे भ्रष्ट मनपा बन गयी है और शासन कर रही है शिवसेना!!

उल्हासनगर में महामारी के दौरान भी नहीं रुक रहे अवैध निर्माण। महापौर, उपमहापौर, आयुक्त, उपायुक्त, नगर नियोजन सभापति भर रहे हैं तिजोरियां।
            शिवसेना शहर प्रमुख राजेंद्र चौधरी 
उल्हासनगर महानगरपालिका की गली गली में डबल टियर गाटर और दर्जनों अवैध बहुमंजिला इमारतों का निर्माण शुरू है। और हजारों अवैध निर्माण हो चुके हैं। परंतु शिवसेना महापौर लिलाबाई आसान महाभारत की गांधारी की तरह आंखों पर पट्टी बांधकर कुछ न देख पाने का अभिनय कर रही है। क्यों नहीं शिवसेना स्टाईल में कोई ठोस निर्णय लिया जाता। आयुक्त, उपायुक्त तथा प्रभाग अधिकारियों के खिलाफ खोला जाता मोर्चा। 

उल्हासनगर शहर अवैध निर्माणों का शहर बनता जा रहा है। शहर में कोई नियोजन न होने के कारण, यहां की सड़कों पर पैदल चल पाना मुश्किल हो रहा है। सड़कों पर जगह जगह वाहन खड़े रहते हैं। शहर में वाहन स्थल की व्यवस्था नहीं है। १३ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाला उल्हासनगर शहर ८ लाख की आबादी पार कर गया है। पर्यावरण के मामले में ठाणे जिले का सबसे दूषित शहर कहने में अतिश्योक्ति न होगी! फिर भी उल्हासनगर मनपा पर शासन करने वालों के आंखों पर लालच की बंधी पट्टी खुलने का नाम नहीं ले रही है।

उल्हासनगर १ से लेकर ५ तक सैकड़ों अवैध बांधकाम शुरू हैं। हर रोज सोसल मिडिया पर अवैध निर्माणों के फोटो और अवैध निर्माणकर्ताओं के नाम दिखाई देते हैं। कैम्प क्रमांक १ में एस.टी.महामंडल की जमीन भारत सरकार में मंत्री रामदास आठवले की तस्वीर लगाकर हड़प ली गयी उमनपा के ज्यादातर सरकारी शौचालय हड़पे जा चुके हैं। खेल के मैदान, गली रास्ते तक हड़पे जा रहे हैं। खुलेआम पीपल, बरगद जैसे राष्ट्रीय वृक्ष काटे जा रहे हैं। क्या यह शिवसेना महापौर को दिखाई नहीं देता ? सत्ता सिर्फ पैसे जमा करने का साधन बनकर रह गया है! इसका उदाहरण भी महापौर के घर में मौजूद है। मां लिलाबाई लक्ष्मण आसान चुनाव जीतकर नगरसेवक बनीं तो वहीं बेटा अरुण लक्ष्मण आसान स्विकृत नगर सेवक बन गये। एक ही घर में दो दो नगरसेवकों की क्या जरूरत थी। शिवसेना जहाँ कमजोर थी वहां स्विकृत नगरसेवक पद दिया जाता तो वहां पार्टी को फायदा मिल सकता था। सारा दोष आयुक्त, उपायुक्त और सहायक उपायुक्तों पर मढ़ने से महापौर बच नहीं सकती। जनता को अपनी जवाबदेही क्यों नहीं निभाया, इसका जवाब आने वाले चुनाव में देना होगा। ऐसे ही कार्यों के बल पर शिवसेना अपना विधायक और सांसद चुनकर लाने का दम भरती है? क्या यही 80 प्रतिशत समाजसेवा और 20 प्रतिशत राजनीति है? क्या यह वही शिवसेना है? जिसके लिए स्व.आनंद दिघे, बाला साहब ठाकरे ने अपना जीवन अर्पित कर दिया? मजे की बात तो यह है कि ज्यादातर नगरसेवक आस पास के शहरों में अपना ठिकाना बना चुके हैं। यहां सिर्फ राजनीति करने के लिए आते हैं। उल्हासनगर शहर के हालात इसी तरह बद से बदतर हुए तो आने वाली पीढ़ियां किसी भी पार्टी और नेता को माफ नहीं करेंगी। 

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