मुंबई क्राइम रिपोर्टर्स एसोसिएशन (एमसीआरए) ने गुरुवार को एक हफ्ताखोर, ब्लैकमेलर (और ना जाने क्या-क्या) पत्रकार को अपने आधिकारिक व्हाट्सप्प ग्रुप से निकाल दिया और ग्रुप को मुंबई पुलिस से छीनकर अपने कब्जे में ले लिया।
हुआ यूं कि मुंबई पुलिस के प्रवक्ता एस. चैतन्य ने कल इस पत्रकार कहे जाने वाले व्यक्ति को एमसीआरए के आधिकारिक व्हाट्सप्प ग्रुप में जोड़ दिया। इससे समस्त क्राइम रिपोर्टर्स खफा हो गए। उन्होंने चैतन्य से उसे ग्रुप से निकालने को कहा। चैतन्य ने भी क्राइम रिपोर्टर्स की बात को अनदेखा कर दिया। इस पर क्राइम रिपोर्टर्स ने आंदोलन शुरू कर दिया। कुछ ने तो ग्रुप छोड़ दिया तो कुछ ने एमसीआरए के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। क्राइम रिपोर्टर्स का विरोध तेज होता जा रहा था। चैतन्य के निलंबन की मांग को लेकर क्राइम रिपोर्टर्स शुक्रवार को गृहमंत्री दिलीप वलसे पाटिल से मिलने वाले थे। सेवानिवृत सहायक आयुक्त राजेंद्र त्रिवेदी ने भी पुलिस आयुक्त को पत्र लिखकर इस बोगस पत्रकार को ग्रुप से तुरंत निकालने की मांग की थी।
मुंबई पुलिस आयुक्त हेमंत नागराले
क्राइम रिपोर्टर्स का कहना था कि यह व्यक्ति 1) पत्रकार नहीं है, 2) ठाणे में रहता है, 3) पुलिस का खबरी है, 4) नवी मुंबई, ठाणे, भिवंडी, कल्याण और उल्हासनगर का सबसे बड़ा ब्लैकमेलर और हफ्ताखोर है, और 5) ये पत्रकारों का सचिन वाज़े है। इसलिए इसे ग्रुप से निकाला जाये। पुलिस के उच्च अधिकारियों ने जब इस मामले की तफ्तीश की तो क्राइम रिपोर्टर्स की बात सच निकली। फिर इस व्यक्ति को ग्रुप से निकाल दिया गया। साथ ही क्राइम रिपोर्टर्स ने एमसीआरए ग्रुप को प्रवक्ता से छीनकर अपने कब्ज़े में ले लिया। बाद में एस. चैतन्य ने ऑफ दि रिकॉर्ड क्राइम रिपोर्टर्स को बताया कि पुलिस कमिश्नर हेमंत नगराले के कहने पर उन्होंने उसे ग्रुप में जोड़ा था। यह बात तो वह भी जानते हैं कि यह व्यक्ति कितना बदनाम है। हफ्ताखोर और ब्लैकमेलर है।
अब आप उस व्यक्ति का नाम जानने को उत्सुक होंगे। तो मैं बता दूँ कि उस व्यक्ति का इतना गंदा नाम है कि मैं यहाँ लिखना नहीं चाहता। इतना समझ लीजिये कि अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखता है। खुद को आरटीआई एक्टिविस्ट, सोशल एक्टिविस्ट लिखता है। हफ्ताखोरी के लिए ठाणे में बाकायदा अपनी ऑफिस खोल रखी है। कुछ भ्रष्ट पुलिस वालों का वह ख़ास मित्र और दामाद जैसा है। पुलिस को तो पैसे से मतलब है। वह व्यक्ति पुलिस से अवैध धंधों पर रेड करवाता है और फिर बड़ी तोड़पानी करता है। पुलिस को भी उसका हिस्सा देता है। ठाणे एंटी एक्सटॉरशन सेल में गिलास धो-धो कर पुलिसवालों को चाय पिलाता रहता है। फिलहाल एमसीआरए ने उसकी सारी इज़्ज़त (जो थी ही नहीं) मटिया में मिलाय दी।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। यशस्वी यादव औरंगाबाद के पुलिस कमिश्नर थे। उन्होंने भी इस व्यक्ति को वहां के पत्रकारों के आधिकारिक व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ दिया था। वहां के पत्रकारों ने मुंबई और ठाणे में फोन कर पता किया कि ये बंदा कौन है तो उन्हें बताया गया कि सबसे बड़ा हफ्ताखोर है। बोगस पत्रकार है। तब पत्रकारों ने कड़ा विरोध कर इसे ग्रुप से निकलवाया।
अब आप उस व्यक्ति का नाम जानने को उत्सुक होंगे। तो मैं बता दूँ कि उस व्यक्ति का इतना गंदा नाम है कि मैं यहाँ लिखना नहीं चाहता। इतना समझ लीजिये कि अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखता है। खुद को आरटीआई एक्टिविस्ट, सोशल एक्टिविस्ट लिखता है। हफ्ताखोरी के लिए ठाणे में बाकायदा अपनी ऑफिस खोल रखी है। कुछ भ्रष्ट पुलिस वालों का वह ख़ास मित्र और दामाद जैसा है। पुलिस को तो पैसे से मतलब है। वह व्यक्ति पुलिस से अवैध धंधों पर रेड करवाता है और फिर बड़ी तोड़पानी करता है। पुलिस को भी उसका हिस्सा देता है। ठाणे एंटी एक्सटॉरशन सेल में गिलास धो-धो कर पुलिसवालों को चाय पिलाता रहता है। फिलहाल एमसीआरए ने उसकी सारी इज़्ज़त (जो थी ही नहीं) मटिया में मिलाय दी।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। यशस्वी यादव औरंगाबाद के पुलिस कमिश्नर थे। उन्होंने भी इस व्यक्ति को वहां के पत्रकारों के आधिकारिक व्हाट्सएप ग्रुप में जोड़ दिया था। वहां के पत्रकारों ने मुंबई और ठाणे में फोन कर पता किया कि ये बंदा कौन है तो उन्हें बताया गया कि सबसे बड़ा हफ्ताखोर है। बोगस पत्रकार है। तब पत्रकारों ने कड़ा विरोध कर इसे ग्रुप से निकलवाया।
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