कमलेश खतुरानी और राजेश नागदेव के आजाद मैदान में 40 दिनों के अनसन के बाद भ्रष्ट गणेश शिंपी को 30 दिन के लिए प्रभाग अधिकारी पद से हटाकर जलापूर्ति विभाग में उनके मूल पद लिपिक पद का कार्यभार दिया गया था। फिर शिंपी को प्रभाग-1 का प्रभाग अधिकारी बना दिया गया। उमनपा में प्रभाग अधिकारी बनाने के काबिल और कोई कर्मचारी नहीं है क्या? यह सवाल अब उल्हासनगर के हर नागरिक के जबान पर है।
उल्हासनगर महानगरपालिका में जहाँ तरह-तरह के घोटालों का बोलबाला है। वहीं पदोन्नति घोटाला उजागर होता रहता है। इसी तरह का एक मामला गणेश शिंपी का है। स्टेनो के पद पर भर्ती हुए गणेश शिंपी को नये पद का निर्माण कर अनधिकृत बांधकाम नियंत्रक प्रभारी बनाया गया। जबकि गणेश शिंपी तत्कालीन आयुक्त मनोहर हिरे के स्टेनो पद पर कार्यरत रहते हुए 13 मई 2013 को 25 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए भ्रष्टाचार निरोधक अधिकारियों द्वारा रंगे हाथों पकड़े गये थे। और जेल की हवा खा कर बाहर आये थे। महाराष्ट्र सरकार अधिनियम कहता है कि जब कोई सरकारी कर्मचारी रिश्वतखोरी करते पकड़ा गया हो तब ऐसे किसी कर्मचारी को ऐसे किसी पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता जहाँ उसका आम जनता से आमना सामना होता हो। 40 दिनो तक आजाद मैदान में अनशन पर रहे राजेश नागदेव और कमलेश खतुरानी
परंतु उल्हासनगर महानगर पालिका आयुक्त डॉ राजा दयानिधि को महाराष्ट्र सरकार के किसी नियम को कहां मानना है जो यह नियम मानेंगे। जाने क्या गणेश शिंपी में मनपा आयुक्त को नजर आया कि उनको फिर से प्रभाग अधिकारी बना दिया जबकि अनधिकृत बांधकाम नियंत्रण अधिकारी पद पर गणेश शिंपी के रहते हुए सबसे ज्यादा अनधिकृत बांधकाम 17 हजार 160 अवैध बांधकाम हुए। यह एक विडम्बना ही है कि भ्रष्टाचार के किचड़ में आकंठ लिपटे हुए लिपिक को बनाया गया प्रभाग-1 का प्रभाग अधिकारी ।
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