सेटिंगबाज प्रकाश माखीजा और रविंंद्र चव्हाण
उल्हासनगर महानगर पालिका में स्थायी समिति का चुनाव शुरू है। देखा जाय तो भाजपा बहुमत में है। परंतु महापौर विपक्ष याने की शिवसेना से है। वंही उपमहापौर रिपाई का है। अब बारी स्थायी समिति की है वह भी शिवसेना का होना लगभग निश्चित है, क्योंकि भाजपा के सदस्य बिजू पाटिल ने शिवसेना की ओर से नामांकन दाखिल किया है। समर्थन में एक और भाजपाई स्थायी समिति सदस्य प्रकाश नाथानी ने इस्तीफा दे दिया है। स्थायी समिति मनपा के तिजोरी की कुंजी होती है। मनपा का हर प्रस्ताव यंहा पास होता है। पास करवाने के लिए कमिशन का चलन है जो बरसों से चला आ रहा है। इस पद पर बैठने वाला उमपा से एक वर्ष में कम से कम तीन करोड़ तो कमा ही सकता है। अगर ज्यादा की बात करें तो दो गुना या तीन गुना भी हो सकता है। यही कारण है। हर बार इस पद के लिए बहुत ज्यादा खींच तान होती है। उल्हासनगर कि भाजपा, पुर्व भाजपा मंत्री रविन्द्र चव्हाण के रहमो करम पर है शायद इसीलिए उन्होंने तीन बार के अनुभवी प्रकाश माखीजा को यह पद देने का मन बनाया और बगावत हो गयी।इसी तरह चुनाव पूर्व टीम ओमी कालानी से चुनावी गठबंधन कराकर अपने मित्र पप्पू कालानी से दोस्ती निभा दी परंतु भाजपा की किरकिरी हो गयी जिसका भुगतान आज भी उल्हासनगर भाजपा भुगत रही है।
भाजपा नगरसेवक बिजू पाटिल नीचे शहर प्रमुख राजेंद्र चौधरी और बगल में नाराज नगरसेवक प्रकाश नाथानी
इसी तरह स्वीकृत नगरसेवक के मामले में भी कई योग्य लोगों को दर किनार करके उल्हासनगर के ठेकेदार प्रदीप रामचंदानी को दिलाया जो बाद में फाईल चोरी करते पकड़े गये और जेल यात्रा भी कर आये फिर भी अभी तक पद पर सुशोभित हैं। बाद में एक स्वीकृत नगर सेवक पद के उम्मीदवार ने इल्ज़ाम लगाया कि इस पद की निलामी में मेरी बोली कम पड़ गयी मैं 25 लाख तक गया था। हर इल्जाम के बाद और ताकतवर होकर निकलते हैं। आज भी उल्हासनगर में इनके बगैर पत्ता भी नहीं हिलता। उल्हासनगर की तंग गलियों जैसे रोड उसमें भी दोनों बगल पार्किंग, सड़कों पर बहते नाले गढ्ढे में सड़क या सड़क में गढ्ढा होने का अंदाजा लगाना मुश्किल, हर तरफ अवैध बांधकाम जिससे अखबार और सोसल मिडिया भरा पड़ा रहता है। यह सब देखकर उल्हासनगर के नगर सेवकों और नेताओं की इमानदारी का पता तो लग ही जाता है। बाहर से आया हुआ आयुक्त भी सोचता है जब इनके शहर की इनको परवाह नहीं तो मुझे क्या वह भी कमाई पर जोर देता है। जैसे तैसे पैसे जमाकर अपने तबादले का इंतजार करता है। और पैसे कमाकर निकल जाता है। उल्हासनगर शहर का नाम ध्यान में आते ही याद आ जाते हैं जगह जगह नाश्ते के ठेले, जापानी बाजार, गजानन मार्केट जिन्समार्केट, गाऊन मार्केट, फर्नीचर बाजार जैसे अनेकों छोटे बड़े बाजार के साथ ही गली गली में चल रहे कारखाने। रेडिमेड गारमेंट से लेकर कई तरह के कलपुर्जे. मशीनरी बनती है इन कारखानों में सिंधी समुदाय व्यापारिक समुदाय है। उल्हासनगर शहर हिन्दूस्तान-पाकिस्तान के बंटवारे में विस्थापित होकर सिंध से आये लोगों से आबाद हुआ है। पहले यहां सेना की छावनी हुआ करती थी। इसीलिए यहाँ की राजनीति भी ज्यादातर सिंधियों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। शिवसेना को छोड़ दिया जाय तो सभी प्रमुख पार्टियों के प्रमुख पदों पर सिंधियों का ही कब्जा है। यह और बात है कि गैर सिंधियों की आबादी बढ़ गयी है और उन्नीस बीस का ही फासला बचा है। पर यहां यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि जो लोग शहर को अपना शहर कहते नहीं थकते उन्होंने अपने शहर को संभाला नहीं या यूं कहें संभालने में नाकामयाब रहे। उल्हासनगर का नाम अवैध बांधकाम के लिए बदनाम है। खुले खुले शहर को जीर्ण शीर्ण कर दिया गया। कयी छोटे बड़े मैदान,बाग बगीचे हड़प कर वहां इमारतों का निर्माण कर दिया गया। बिना अधिकारिक कागज पत्र और नक़्शे के। सेना के लिए बने बैरकों से लगकर बने बड़े-बड़े शौचालय और उसके इर्द-गिर्द खालीपड़ी जमीन कब्जा करने के बाद अब नदी, तालाब और स्कूलों पर भू-माफियाओं कि कुदृष्टि पड़ी है, धड़ल्ले से हड़पना शुरू हो गया है। उल्हासनगर मनपा में ज्यादातर भू-माफिया ही नगरसेवक बने बैठे हैं। अवैध बांधकाम से कोई पार्टी अछूती नहीं है। इनकी नजर में पद सिर्फ पैसे कमाने का जरिया मात्र है। इन्होंने आस पास के शहरों में अपने रहने का बंदोबस्त कर लिया है। अव्यवस्था से परेशान होकर बहुत लोगों ने तो पलायन कर भी लिया।
0 टिप्पणियाँ