शुभम मिश्रा
फर्जी डिग्री देकर मुनीष पान्डे बना शिक्षक से प्रोफेसर
ठाणे जिले के कल्याण में के. एम. कला, वाणिज्य एवं विज्ञान महाविद्यालय है, जहाँ भौतिक विज्ञान का प्राध्यापक है मुनीष श्यामनारायण पान्डे, जो बिना मगध गये ही, सोधपत्र दाखिल किए बिना ही मगध विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान विषय में प्राप्त कर लिया पीएचडी की डिग्री! इस अतिउच्च उपाधि को प्राप्त करने के लोगों को न जाने कितने सोधपत्र तैयार करने होते हैं और वर्षा नु वर्ष लग जाते हैं उपाधि पाने में वहीं मुनीष को यह उपाधि बिना विश्वविद्यालय में कदम रखे ही मिल गई, जिसके बल पर वह भौतिक विज्ञान का ज्ञाता हो गया और ज्ञान बेचकर लाखों रुपये वेतन सरकारी खजाने से ले रहा है। पान्डे को इसी फर्जी डिग्री के बल पर पहले शिक्षक पद पर नियुक्त कर प्रोफेसर बना दिया गया। इस तरह की बहाली से कानून की धज्जियाँ उड़ गई। फर्जीवाड़े में के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय की प्रधानाचार्या डा. अनिता मन्ना, सहसंचालक डा. विजय नारखेड़े, मुंबई विश्वविद्यालय के अजय भामरे एवं अकील शेख सम्मीलित हैं।
सचिव की सलाह को किया दरकिनार
कालेज के तत्कालीन सचिव व वर्तमान अध्यक्ष विजय पंडित ने वर्ष २०१६ में लिखित में प्रधानाचार्या से कहा था कि यह डिग्री फर्जी है। फिर भी प्रधानाचार्या ने पंडित की बातों पर ध्यान नहीं दिया। और डिग्री को मान्य कर दिया और मुंबई विद्यापीठ को एथंटिक लिखकर भेज दिया। जांच करने पर पता चला की मुनीष पान्डे ने मुंबई विद्यापीठ से माइग्रेशन सर्टिफिकेट भी नहीं लिया था जिसके बगैर अन्य प्रदेश में दाखिला मिलता ही नहीं है, तो बिहार के मगध विश्वविद्यालय में प्रवेश कैसे मिला यह भी एक बड़ा प्रश्न है। प्रबंधन (Management) मंडल से अनापत्ति प्रमाणपत्र भी नहीं लिया था।
कैसे साबित हुआ फर्जी सर्टिफिकेट है
३१ मई २००६ में मगध विश्वविद्यालय के कुलपति डा. शम्सूद्दीन हुसैन थे, सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर डा. वीरेन्द्रनाथ पांडे का है। जबकि वीरेन्द्रनाथ पान्डे की नियुक्ति कुलपति पद पर २० नवंबर २००६ को हुई है। स्पष्ट हो जाता है कि डिग्री फर्जी है। ११ जनवरी २००० को शोधपत्र (Synopsis) जमा करने की तारीख बताई गयी है, जबकि उस दिन हाजिरी रजिस्टर के मुताबिक मुनीष पान्डे कल्याण यानी कालेज में पढा रहे थे। १९ दिसंबर २००२ को भी मुनीष थेसिस जमा करने मगध विश्वविद्यालय नहीं गये थे। प्रमाणपत्र पर पंजिकरण संख्या ३४२६४/९९/०१ छपा है, मतलब पंजिकरण वर्ष १९९९ में हुआ है। जबकि ३१ दिसंबर १९९९ के पहले होना चाहिए था। जब सिनोप्सिस जमा करने का दिनांक ११ जनवरी २००० है और मंजूरी की तारीख मई २००० है। तो पंजिकरण जून २००० या उसके बाद होना चाहिए। परंतु प्रमाणपत्र में पंजिकरण संख्या १९९९ दिखाई दे रही है यह क्या दर्शाता है? इसमें विश्वविद्यालय के पास जांच के लिए बचता ही क्या है? जिसके लिए कमेटी गठित करनी पड़ी है और वह कमेटी महीने भर से जांच कर रही है और अबतक परिणाम शुन्य है।
मगध विश्वविद्यालय का भ्रष्टाचार को सपोर्ट
पीएचडी सर्टिफिकेट पर कुलपती के तौर पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ती का नाम वीरेंद्रनाथ पांडे है। जबकि विश्वविद्यालय के कुलपती पद पर उनकी नियुक्ती बिहार राज्य के राज्यपाल एवं कुलाधिपति द्वारा दिनांक 20 नवम्बर 2006 को हुई थी। नियुक्ति से छह महीने पहले दिनांक 31 मई 2006 को हस्ताक्षर कर दिया। फर्जी डिग्री धारक को बचाने का प्रयास विश्वविद्यालय के मौजुदा कुलपती एस पी शाही कर रहे यह बेहद शर्मसार कर देनेवाली हरकत है। जब विश्वविद्यालय के कुलपति व अन्य लोगों से बात किया गया तो उन्होने कयी बार यह माना कि यह फर्जी डिग्री है परंतु लिखित देने को तैयार नहीं? जिसका विडियो उपलब्ध है यु ट्युब पर। एफिडेविट लेने के बाद जांच कमेटी गठित किया गया और जांच के लिए पंद्रह दिन का समय मांगा गया परंतु एक माह बीत जाने के बाद भी अडमिशन फाईल नहीं मिली सिर्फ टाल मटोल चल रहा है। कल्याण के, के.एम.अग्रवाल कालेज के विद्यार्थियों के साथ ही धोखा नहीं हो रहा बल्कि देश के कानून के साथ ही उन असली डिग्री धारकों के साथ भी धोखा हो रहा जो योग्य होते हुए भी पद तक पहुंच नहीं पा रहे हैं और फर्जी लोग, पद और वेतन का लाभ ले रहे हैं! अब देखना होगा इस खबर के बाद शासन प्रशासन व विश्वविद्यालय शर्मसार होता है या फिर ऐसे ही फर्जी डिग्री धारक को सपोर्ट करता रहता है।
फर्जी डिग्री देकर मुनीष पान्डे बना शिक्षक से प्रोफेसर
ठाणे जिले के कल्याण में के. एम. कला, वाणिज्य एवं विज्ञान महाविद्यालय है, जहाँ भौतिक विज्ञान का प्राध्यापक है मुनीष श्यामनारायण पान्डे, जो बिना मगध गये ही, सोधपत्र दाखिल किए बिना ही मगध विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान विषय में प्राप्त कर लिया पीएचडी की डिग्री! इस अतिउच्च उपाधि को प्राप्त करने के लोगों को न जाने कितने सोधपत्र तैयार करने होते हैं और वर्षा नु वर्ष लग जाते हैं उपाधि पाने में वहीं मुनीष को यह उपाधि बिना विश्वविद्यालय में कदम रखे ही मिल गई, जिसके बल पर वह भौतिक विज्ञान का ज्ञाता हो गया और ज्ञान बेचकर लाखों रुपये वेतन सरकारी खजाने से ले रहा है। पान्डे को इसी फर्जी डिग्री के बल पर पहले शिक्षक पद पर नियुक्त कर प्रोफेसर बना दिया गया। इस तरह की बहाली से कानून की धज्जियाँ उड़ गई। फर्जीवाड़े में के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय की प्रधानाचार्या डा. अनिता मन्ना, सहसंचालक डा. विजय नारखेड़े, मुंबई विश्वविद्यालय के अजय भामरे एवं अकील शेख सम्मीलित हैं।
सचिव की सलाह को किया दरकिनार
कालेज के तत्कालीन सचिव व वर्तमान अध्यक्ष विजय पंडित ने वर्ष २०१६ में लिखित में प्रधानाचार्या से कहा था कि यह डिग्री फर्जी है। फिर भी प्रधानाचार्या ने पंडित की बातों पर ध्यान नहीं दिया। और डिग्री को मान्य कर दिया और मुंबई विद्यापीठ को एथंटिक लिखकर भेज दिया। जांच करने पर पता चला की मुनीष पान्डे ने मुंबई विद्यापीठ से माइग्रेशन सर्टिफिकेट भी नहीं लिया था जिसके बगैर अन्य प्रदेश में दाखिला मिलता ही नहीं है, तो बिहार के मगध विश्वविद्यालय में प्रवेश कैसे मिला यह भी एक बड़ा प्रश्न है। प्रबंधन (Management) मंडल से अनापत्ति प्रमाणपत्र भी नहीं लिया था।
कैसे साबित हुआ फर्जी सर्टिफिकेट है
३१ मई २००६ में मगध विश्वविद्यालय के कुलपति डा. शम्सूद्दीन हुसैन थे, सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर डा. वीरेन्द्रनाथ पांडे का है। जबकि वीरेन्द्रनाथ पान्डे की नियुक्ति कुलपति पद पर २० नवंबर २००६ को हुई है। स्पष्ट हो जाता है कि डिग्री फर्जी है। ११ जनवरी २००० को शोधपत्र (Synopsis) जमा करने की तारीख बताई गयी है, जबकि उस दिन हाजिरी रजिस्टर के मुताबिक मुनीष पान्डे कल्याण यानी कालेज में पढा रहे थे। १९ दिसंबर २००२ को भी मुनीष थेसिस जमा करने मगध विश्वविद्यालय नहीं गये थे। प्रमाणपत्र पर पंजिकरण संख्या ३४२६४/९९/०१ छपा है, मतलब पंजिकरण वर्ष १९९९ में हुआ है। जबकि ३१ दिसंबर १९९९ के पहले होना चाहिए था। जब सिनोप्सिस जमा करने का दिनांक ११ जनवरी २००० है और मंजूरी की तारीख मई २००० है। तो पंजिकरण जून २००० या उसके बाद होना चाहिए। परंतु प्रमाणपत्र में पंजिकरण संख्या १९९९ दिखाई दे रही है यह क्या दर्शाता है? इसमें विश्वविद्यालय के पास जांच के लिए बचता ही क्या है? जिसके लिए कमेटी गठित करनी पड़ी है और वह कमेटी महीने भर से जांच कर रही है और अबतक परिणाम शुन्य है।
मगध विश्वविद्यालय का भ्रष्टाचार को सपोर्ट
पीएचडी सर्टिफिकेट पर कुलपती के तौर पर हस्ताक्षर करने वाले व्यक्ती का नाम वीरेंद्रनाथ पांडे है। जबकि विश्वविद्यालय के कुलपती पद पर उनकी नियुक्ती बिहार राज्य के राज्यपाल एवं कुलाधिपति द्वारा दिनांक 20 नवम्बर 2006 को हुई थी। नियुक्ति से छह महीने पहले दिनांक 31 मई 2006 को हस्ताक्षर कर दिया। फर्जी डिग्री धारक को बचाने का प्रयास विश्वविद्यालय के मौजुदा कुलपती एस पी शाही कर रहे यह बेहद शर्मसार कर देनेवाली हरकत है। जब विश्वविद्यालय के कुलपति व अन्य लोगों से बात किया गया तो उन्होने कयी बार यह माना कि यह फर्जी डिग्री है परंतु लिखित देने को तैयार नहीं? जिसका विडियो उपलब्ध है यु ट्युब पर। एफिडेविट लेने के बाद जांच कमेटी गठित किया गया और जांच के लिए पंद्रह दिन का समय मांगा गया परंतु एक माह बीत जाने के बाद भी अडमिशन फाईल नहीं मिली सिर्फ टाल मटोल चल रहा है। कल्याण के, के.एम.अग्रवाल कालेज के विद्यार्थियों के साथ ही धोखा नहीं हो रहा बल्कि देश के कानून के साथ ही उन असली डिग्री धारकों के साथ भी धोखा हो रहा जो योग्य होते हुए भी पद तक पहुंच नहीं पा रहे हैं और फर्जी लोग, पद और वेतन का लाभ ले रहे हैं! अब देखना होगा इस खबर के बाद शासन प्रशासन व विश्वविद्यालय शर्मसार होता है या फिर ऐसे ही फर्जी डिग्री धारक को सपोर्ट करता रहता है।
1 टिप्पणियाँ
विजय पंडित पर बहिष्कार किया जाये.
जवाब देंहटाएंऔर मुनीश पांडे को चौरहे पर पीटा जाये . विजय पंडित को उत्तर भारतीय लोगो ने बहिष्कार पत्र प्रकाशित होना चाहिये.