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उल्हासनगर शहर के लोगों को स्वहित से ऊपर उठकर शहरहित के बारे में सोचना होगा।

शहर में उल्हास लाने की लेनी होगी शपथ, स्वभला छोड़कर करना होगा शहर हित में कार्य।

लेखन अनिल ला. मिश्रा (सामना संवाददाता)        तस्वीर में बांयी तरफ पुष्प गुच्छ स्विकारते अनिल ला मिश्रा 

उल्हासनगर:- उल्हासनगर की सीमायें भले ही साढ़े तेरह वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफ़ल में फैली है। परंतु शहर को एक सांसद, तीन विधायक तथा 79 नगरसेवकों के साथ 5 मनोनीत नगरसेवक नगर को सुंदर बनाने के लिए मिले हुए हैं। पर शहर सुंदर बनने के बजाय हर दिन कूरूपता की ओर अग्रसर है। हमे संकल्प (शपथ) लेने की आवश्यकता है कि शहर में विद्यमान अवगुणों को दूर कर शहर को एक सुन्दर, सुसज्जित व सुरक्षित शहर बनाने की। यह केवल 8 अगस्त को उल्हासनगर नामित शिला पूजकर स्थापना दिवस मनाने से नहीं होगा। हम 72 वर्षों से 8 अगस्त के दिन को बड़े हर्षोल्लास से मनाते आये हैं पर उसका कोई फायदा होता दिखाई नहीं देता क्यों? क्योंकि हम सिर्फ अपने घर को ही अपना समझते हैं शहर को कभी अपना समझा ही नहीं! यही कारण है कि उल्हासनगर शहर कई मामलों में आज भी बदनाम हैं। 

हर वर्ष कथित समाज सेवक, नगरसेवक, व्यापारी आदि तमाम लोग इकठ्ठा होकर स्वीमिंग पुल परिसर में स्थापित शिला को पुष्प चढ़ा कर सेल्फी लेकर शहर की जनता को एक प्रकार से मानो मूर्ख ही बनाते आ रहे हैं? 8 अगस्त को मनपा मुख्यालय लाइटिंग कर सजाया गया था। राजनीतिक लोग काफी उत्साहित थे, पर शहर को सच्चा प्रेम करने वाले लोग दुःखी थे, नाटक नाम दे रहे थे। उल्हासनगर एक लघु व्यापारिक शहर है। यहाँ तैयार तमाम तरह का माल देश विदेश भेजा जा रहा है। पर जिन लोगों ने उल्हासनगर को नही देखा है, वह लोग जब उल्हासनगर खरीदारी करने आते हैं, तो क्या देखते हैं? जर्जर इमारतें जो एक दूसरे से सटी हुई हैं। कचरा व बदबूयुक्त सड़के, टूटी फूटी गड्ढा युक्त सड़कें जो गलियों में तब्दील हो गयी हैं। दूषित नदी, ध्वनि प्रदूषण, सड़को के किनारे जमा पानी, वाहन पार्किंग का आभाव जिसके कारण सड़कों पर खड़े वाहन जो सड़कों को सकरा बना रहे हैं। हर तरफ फेरीवालों की भरमार, उल्हासनगर शहर पहला ऐसा शहर होगा जहाँ प्रतिवर्ष बजट का 40 फीसदी सड़को पर खर्च होता है, पर डामर तो डामर है सीमेंट की सड़कें गड्ढों के कारण चलने लायक नहीं है। सड़को को देखकर लोग अंदाजा लगा लेते है कि उल्हासनगर शहर में आ गये? इन सड़कों व चारो तरफ फैली बदबू पर मनपा के पूर्व आयुक्त व मुख्यमंत्री प्रतिक्रिया व्यक्त कर चुके हैं। डामर की सड़क के बारे में क्या कहना यहाँ सीमेंट कांक्रीट से बनी सड़को की भी कोई गारंटी नहीं देते यहाँ के ठेकेदार। ठेकेदारों का कहना है कि वे बजट का 60 फीसदी अधिकारी व नगरसेवकों में बांट देते हैं। यही कारण है कि निर्माण घटिया हो जाता है। आश्चर्यजनक बात तो यह हैं कि निर्माण कार्य को लेकर आज तक किसी ठेकेदार व अधिकारी को दोषी नहीं ठहराया गया है। ठेकेदारों द्वारा किए गए कार्य की रकम साल-साल भर नही दी जाती। शहर में 80 फीसदी व्यापार सड़क पर किया जाता है, अवैध निर्माण की भरमार है। उल्हासनगर ऐसा पहला शहर होगा जहाँ अवैध निर्माण रोकने गए मनपा कर्मचारियों व यातायात नियम की धज्जियां उड़ाते लोगों को रोकते समय पुलिस की पिटाई हुई हैं। रिश्वत लेते हुए पुलिस कर्मी, नगरसेवक व मनपा के लोगो पर कार्यवाही हुई है फिर भी भ्रष्टाचार रुकने का नाम नहीं ले रहा है। शहर से अंदाजन 41 टन कचरा प्रतिदिन निकलता है, उस कचरे को फेकने  के लिए न तो जगह है और न ही प्रक्रिया करने के लिए कोई साधन। उल्हासनगर में कई जर्जर इमारतें गिरी, जिसमें दबकर दर्जनों लोगों की जान गई हैं। धोखा दायक दर्जनों इमारतों के लोग दर दर भटक रहे हैं। राजनीतिक लोग इस मुद्दे को लेकर राजनीति कर रहे हैं। उल्हासनगर ऐसा पहला शहर हैं जहाँ एक स्वीकृत नगरसेवक फाइल चुराने के आरोप में 39 दिनों तक जेल में रहा और मंचो पर खड़े होकर मार्गदर्शन और शहर विकास की बातें करता है और लोग बहिष्कार करने की बजाय उसकी बातें सुनते हैं। अपराध की बात करें तो एक समय उल्हासनगर खुनी संघर्ष के चलते खूनी शहर बन गया था। जिनके कारण शहर बदनाम हुआ अवैध शहर बन गया उन्हीं को कुछ लोग शहर का विकास पुरुष कहते हैं। विकास की निशानी कहे जाने वाले कथित विकास पुरूष को आजीवन कारावास की सजा मिली यह और बात है कि न्यायालय द्वारा दी गई सजा, राज्य में आई उद्धव ठाकरे सरकार ने माफ कर दिया और वे फिर अपनी झूंठी और गुनाहों की राजनीति में मशगूल हो गये हैं। उल्हासनगर मनपा में परिवहन समिति तो है पर परिवहन सेवा नही हैं। शहर में उद्यान तो है पर उद्यान अधीक्षक नही। परिवहन समिति है पर पर्यावरण समिति नही है। निजी वाहन इतने हैं कि उन्हें खड़ा करने के लिए जगह नही है। लोग घर के बाहर सड़कों पर दिन रात वाहन खड़ा करते हैं, जिससे सड़कें सकरी हो गयी हैं। शहर को तीन रेलवे स्टेशन मिला है, पर उनकी भी स्थिति कुछ ठीक नही है। उल्हासनगर में महाराष्ट्र राज्य की परिवहन सेवा थी।वह भी शहर के नेताओ  के चलते बंद हो गयी। उल्हासनगर में लगभग सभी सरकारी भूखंड हड़पे जा चुके हैं। अब तक हजारों इमारत को मनपा ने तोड़ा है, पर वह तोड़ी गई इमारतों से खाली हुई जमीन कहीं दिखाई नहीं देती। सड़क छाप विकासक, ठेकेदार पुनः बना देते हैं और शहर के लोग उसे खरीद भी लेते हैं। उल्हासनगर की बदनामी के लिए हर वर्ग जिम्मेदार है। शहर भले ही बदनाम हो रहा हैं पर कुछ लोग मानते है कि "बदनाम जो होंगे तो क्या नाम न होगा" इस तरह किसी न किसी कारण उल्हासनगर चर्चा में तो है!

नोट पर छपी गाँधीजी की तस्वीर पर मूँछ बनाने वाले, एक जनवरी को विदेशी महिला के साथ अश्लीलता करने वाले उल्हासनगर के ही लोग थे। नगरसेवक के मनमाफिक कार्य को सहयोग न देने के कारण मनपा से 35 के करीब आयुक्तों की हकलापट्टी कराने का दावा करने वाले उल्हासनगर के ही लोग है। उल्हासनगर से सबसे अधिक मामले न्यायालय में चल रहे होंगे। कहने का मकसद हैं कि नाम तो उल्हासनगर हैं पर जनता शासन प्रशासन सभी परेशान हैं कहीं भी उल्हास नजर नहीं आता है। जब समस्याएं दूर होगी शहर खुशहाल बनेगा तब जाकर 8 अगस्त को उल्हासनगर की शिला पर पुष्प अर्पित करने का मकसद सार्थक होगा।
                                        

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