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उल्हासनगर के चापलूस लोग अवैध और गैरकानूनी निर्माण को मानते हैं विकास, चलने के लिए सड़कें नहीं हैं!!

उमनपा का बजट 8 सौ करोड़, विकास के नाम पर शुन्य! रुपये जा कहाँ रहे हैं?

उल्हासनगर : उल्हासनगर महानगर पालिका 13 वर्ग किलोमीटर की एक छोटी सी मनपा है। जिसका वार्षिक बजट 8 सौ करोड़ है।बावजूद इसके शहर की हालत बद से बदतर है। यहाँ विकास का दम तो सभी भरते हैं, परंतु न चलने के लिए अच्छी साफ सूथरी सड़के हैं, न ही खेल के मैदान, न ही अपना जलशुद्धीकरण केंद्र, न ही रोज निकलने वाले कचरे का रासायनिकरण प्रकल्प जिससे कचरे के बड़े-बड़े पहाड़ बन रहे हैं। कचरा जमा करने के लिए जगह की भारी किल्लत हो रही है।
उल्हासनगर लगभग १३ वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के भूक्षेत्र वाली मनपा है जिसका वार्षिक लेखा-जोखा (बजट) 8 सौ करोड़ का होने के बावजूद शहर की हालत खस्ता व अस्त व्यस्त है। सड़कों पर गड्ढे ही गड्ढे हैं नालियां भरी पड़ी हैं। भूमिगत नालों की हालत खस्ता है। पीने के पानी की लाईनें जगह जगह टूटी हुई है। साफ सफाई और कचरा उठाने का ठेका चार गुना दामों में दिये जाने के बाद भी कचरा बराबर नहीं उठाया जाता शहर में जगह जगह सड़न, बदबू व गंदगी दिखाई देती है। अब यह 8 सौ करोड़ का बजट खर्च होता कहाँ है? यह बताने की जरूरत नहीं है यह आप लोग रोज सोसल मिडिया पर देख रहे हैं। कभी उपमहापौर तो कभी स्थायी समिति सभापति के खुद के वार्ड में बिना काम किए ही बिल भुगतान हो गया है या फिर ३० हजार के काम का 3 लाख भुगतान, किया गया है। 30 हजार के फ्रिज को तीन लाख में खरीदा जाता है। एक ही सड़क का वर्ष में दो बार निर्माण होता है। अब इसकी जांच करे कौन और कराये कौन जब सभी मिल बांटकर खा रहे हैं। जनता त्रस्त है नेता मस्त है।
जनता का रवैया

उल्हासनगर की जनता का रवैया शहर के प्रति बिल्कुल लापरवाही भरा है। शहर को नेताओं के भरोसे छोड़ दिया है जो शहर को गिद्धों की तरह नोच खा रहे हैं। पांच वर्षों में कयी करोड़ वसूलने के बाद वोटर को पांच सौ से एक हजार रुपये प्रति वोट खरीदकर फिर से नगदसेवक बनने की आस लगाये बैठे हैं। एक विकसित शहर में वाहनों को खड़ा करने के लिए स्थानक होता है। हरे-भरे उद्यान और खेल के मैदान, साफ सुथरी सड़कों से ही शहर देखने लायक बनता है। पीने के पानी का संकट बना ही रहता है। इसके बावजूद भी नेता विकास का दम भरते हैं। इतना भारी भरकम बजट आखिर जाता कहाँ है यह सवाल अब गहराता जा रहा है। इतने बड़े बजट के बाद भी उल्हासनगर शहर के पास जन सुविधाओं का भारी आभाव है। जबकि पास कि ही अंबरनाथ नगरपालिका जिसका क्षेत्रफल 57 वर्ग किलोमीटर है, और बजट भी 4 सौ करोड़ फिर भी सड़के देखने लायक, साफ-सफाई में भी उमनपा से बेहतर है। इसी तरह बदलापूर नगरपालिका का क्षेत्रफल 37 वर्ग किलोमीटर के आसपास है। और बजट 3 सौ करोड़ का फिर भी लोग उल्हासनगर छोड़कर अंबरनाथ, बदलापूर रहने के लिए जा रहे हैं। फिर भी यहाँ के नेतृत्व को रत्तीभर भी शर्म नहीं है। हर बार झूंठे वादे और झूंठी कसमें ही देखने को मिल रही है। पूरे पांच वर्ष की नगरसेवकी पूरी करने के बाद अब घर से बाहर निकलकर प्रचार के लिए काम का दिखावा कर रहे हैं। और उनके पालतू चमचों ने उनका प्रचार सोसल मिडिया पर शुरू कर दिया है।
  करौतिया नगर में नाले पर हो रहा कब्जा शिंपी नींद में 

शहर का विकास या विनाश
         इन्हीं अवैध निर्माणों को कहते हैं विकास 

उल्हासनगर शहर को अमुक नेता ने विकास दिया यह कहने वालों की आंखों में रत्तीभर भी शर्म नहीं है और न ही उपर वाले का खौफ! 1984 के बाद से शहर का जो सत्यानाश हुआ है वह आज भी रुकने का नाम नहीं ले रहा है। तबसे शुरू अवैध निर्माण आज भी रुकने का नाम नहीं ले रहा है। शहर विकास के लिए एक इंच भी अतिरिक्त भूमि नहीं बची है। 1984 में नगरपालिका की सत्ता बदली और कांग्रेस की सत्ता आयी, दो कांग्रेसी नेता पप्पू कालानी और गोप बहरानी सत्ता हथियाने के लिए आपस में लड़ गये। आखिर में अढ़ाई अढ़ाई साल के लिए नगराध्यक्ष बनने का करार हुआ। पप्पू कालानी पहले नगराध्यक्ष बने और नगराध्यक्ष बनते ही रुपये कमाने का रास्ता ढूंढने लगे उस समय नपा का बजट कम था और कुछ अधिकारी भी ऐसे थे जिनको भगवान का डर था। विपक्ष भी सतर्क और सक्रिय था। परंतु कालानी ने डर का ऐसा माहौल पैदा किया, जो डर से माना उसको डराया जो नहीं डरा उसे खरीदा, जो बिकने के लिए तैयार नहीं था। उसे मौत के घाट उतारने से भी पीछे नहीं हटे! इस तरह विपक्ष और इमानदार सरकारी कर्मचारियों को खत्म कर दिया। जब अढ़ाई वर्ष बाद गोप बहरानी को सत्ता देने की बात आयी तो भाजपा के लाल पंजाबी को उपाध्यक्ष बनाकर सत्ता अपने ही हाथों में रख ली और करार से मुकर गए।अब यहीं से शुरू हुआ कत्लों का दौर एक समय ऐसा आया की बिजली के चले जाने पर लोग कहते थे किसी का कत्ल होने वाला है, इसलिए बिजली चली गयी। मंगलवार का दिन तो जैसे कत्ल का मुहूर्त बन गया था। हर मंगलवार किसी न किसी का कत्ल हो जाता था। अब इस तरह के महौल से लोग त्रस्त हो चुके थे और उबरने के लिए हाथ पैर मारने लगे और कुदरत ने लोगों का साथ दिया। महाराष्ट्र की सत्ता बदली शरद पवार केंद्र में रक्षामंत्री बने और सुधाकर नाईक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने यहीं से पप्पू कालानी के बूरे दिन शुरू हो गये, सारे दबे मुकदमें खोले गये और कालानी को 13 अक्टूबर 1992 को टाडा (आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त होना) कानून के तहत जेल भेज दिया गया। बड़ी कोशिशों के बाद टाडा तो हट गया परंतु अपने ही रिश्तेदार इंदर और घनश्याम बठिजा के आरोप में अब जेल में हैं और आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं। यह और बात है कोविड-19 के चलते और शरद पवार के सत्ता में शामिल होने के कारण आजकल जेल से बाहर अपने घर पर हैं।

भू-माफियाओं का उदय

उस समय शहर में बहुत सारे भूखण्ड खाली पड़े थे उन भूखण्डों के फर्जी कागजात बनाकर उस पर 5 से 7 मंजिला अवैध इमारतों का निर्माण किया जाने लगा और उल्हासनगर में जो भी कालानी का चहेता था वह भवन निर्माता (बिल्डर) बन गया। जिसका भुगतान आज लोग भुगत रहे हैं। कई इमारतें या तो गिर गयी है या गिरने की कगार पर हैं जो गिरायी जा रही है।जल्दबाजी में घटिया सामग्री के साथ इन इमारतों का निर्माण किया गया। खाली पड़े भूखण्ड खत्म होने के बाद इन भू माफियाओं की कुदृष्टि हरे भरे उद्यानों पर पड़ी और देखते देखते दर्जनों उद्यानों पर बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो गई और आज तक जमीन हड़पकर अवैध निर्माण करने का सिलसिला शुरू ही है। फर्क़ सिर्फ इतना है कि अब सभी कालानी महल के लोग नहीं परंतु कुछ आज भी हैं।

गिरती इमारतें और पलायन करते लोग

सही तरीके से निर्मित इमारतों की उम्र 60 से 80 वर्ष होती है। परंतु 1994 के उस आपा धापी में बनी अवैध इमारतें 15 से 20 वर्षों में ही ढहने लगी जिसमें कई निरपराध लोगों की मृत्यु हो गई और मनपा के बजट का एक बड़ा हिस्सा इन इमारतों को ढहाने और उसका मलबा हटाने में खर्च हो रहा है। जिन्होंने इन अवैध इमारतों में सदनिका (फ्लैट) खरीदे थे वे आज बेघर हो रहे हैं, उनको फिर से बसाये जाने का कोई विकल्प तैयार नहीं है। शहर में अस्थायी रहवास की व्यवस्था नहीं है जिन रहवासियों के पास मकान खरीदने या किराये पर लेने की व्यवस्था नहीं है। उनको सड़कों के किनारे या रिस्तेदारों के यहाँ गुजारा करना पड रहा है। इस अव्यवस्था को कुछ लोग विकास का नाम दे रहे हैं। अवैध इमारतों के जंगल को विकास कहा जाता है तो यह विकास हुआ है। खाली भूखण्ड खत्म हुए तो अब जन सुविधा के लिए निर्मित सरकारी शौचालय, गली, नाला नदी के पाट यानी सीआरजेड की जमीनों पर अवैध निर्माण शुरू हैं। बंद पड़े मकानों पर अवैध कब्जा कर फर्जी कागजातों द्वारा अवैध व गैरकानूनी विकास किया जा रहा है। मेरी नजर में आज तक यही विकास हुआ है। 

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