
10 सालों में हुई दुर्घटनाओं से 164 लोगों की मौत
कमलेश दुबे
उल्हासनगर. उल्हासनगर की सड़कों पर जानलेवा गड्ढों की भरमार, पिछले 10 वर्ष में गड्ढों के कारण हुई दुर्घटनाओं में 164 लोगों की मौत। बरसात में इन सड़कों पर गाड़ी चलना मौत के कुएं में चलाने जैसा है। पैदल चलना भी हुआ दूभर!
गौरतलब हो कि उल्हासनगर शहर का क्षेत्रफल सिर्फ 13 वर्ग किमी है। शहर की सड़कों की कुल लंबाई 61.94 किलोमीटर है। पिछले पांच सालों में रोड के गड्ढे भरने के लिए 36 करोड़ 34 लाख रुपए खर्च किए गए हैं। इसके बावजूद शहर की सड़कों की अवस्था विकट है। पिछले 10 वर्षों में रोड के गड्ढों की वजह से हुई सड़क दुर्घटनाओं में 164 लोगों की मौत हुई, जबकि 560 लोग जख्मी हुए सड़क पर हुए इन हादसों में पत्रकार, समाजसेवक, डॉक्टर, महिला, बुजुर्ग बच्चे शामिल हैं। सड़क दुर्घटनाओं की संख्या कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है।
ज्ञात हो कि मनपा द्वारा गड्ढे भरने के लिए कुछ चुनिंदा ठेकेदारों को ही हमेशा ठेका दिया जाता है। निविदा मंगाने की प्रक्रिया खाना पूर्ति के लिए की जाती है। निविदा में दिए गए नियमों और शर्तों के अनुसार काम कभी नहीं होता! ठेकेदार के काम की जांच मनपा के सार्वजनिक निर्माण विभाग(PWD) के द्वारा गंभीरता से नहीं किया जाता। यही कारण है कि पहली ही बारिश में रोड में गड्ढों की भरमार हो जाती है। इस संदर्भ में मनपा प्रशासन से कई बार शिकायत व आंदोलन होने के बाद भी किसी प्रकार की कोई कार्रवाई होती नजर नहीं आती यही कारण है कि अभियंताओं का मनोबल बढा़ हुआ है, और उमनपा के सार्वजनिक बांधकाम विभाग में हर तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला है।

मोटी खड़ी डाली जा रही
मनपा अधिकारी और ठेकेदार सरकारी अध्यादेश की अवमानना करते हैं। वर्षाकाल में डाम्बर सड़क के गड्ढों में चिपकता नहीं, इसलिए मनपा ठेकेदारों द्वारा मोटी खड़ी डाली जा रही है। इस खड़ी के कारण दो चक्कों वाली गाड़ियां फिसल रही हैं, फिसलकर गिर रही हैं। मोटी खड़ी, पत्थर गाड़ियों के टायर से उछलकर लोगों को लग रहे हैं।
उमनपा को गड्ढों के बड़े होने का इंतजार
वर्षाकाल शुरू होने से पहले सड़कों पर हुए गड्ढों के बारे में मनपा नहीं सोचते जिसके कारण पानी गिरते ही गड्ढे बड़े हो जाते हैं, फिर लोग इन गड्ढों में गिरते हैं, गिरकर घायल होते हैं। हंगामा होता है हंगामें के बाद मई महीने में निकलने वाला टेंडर मनपा जुलाई में जान बूझकर निकालती है। जुलाई से अगस्त माह में चालिया उत्सव और गणेश उत्सव में भक्तों को होने वाली असुविधा को ध्यान में रखकर सड़कों के गड्ढों को भरना ज़रूरी है, यह बोलकर निविदा निकाली जाती है। परंतु दो वर्ष से यह उत्सव हो ही नहीं रहे, कोई जुलूस भी नहीं निकल रहा, फिर उत्सवों के नाम पे लाखों का टेंडर हर वर्ष की भांति क्यों निकाला गया।
टेंडर की रकम में कोई कमी नहीं
ठेकेदारों को सड़के बनाने का ठेका दिया जाता है। उनके इमानदारी से काम न किये जाने से होते हैं गड्ढे। दोबारा उन्हीं से दुरुस्त न कराकर दोबारा दिये जाते हैं पैसे जबकि निमय अनुसार उन्हीं से दिए हुए पैसों में ही काम करवाकर लेना चाहिये ऐसा सरकारी आदेश भी है। अगर ठेकेदार अपने ही किये हुए काम को दुरुस्त नहीं करता तो उस ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट किया जाना चाहिए। परंतु उमनपा में ऐसा होता नहीं। बीते हुए सालों में सीमेंट की सड़कें बढ़ी हैं, डामर की सड़कें कम हुई है, बावजूद गड्ढे भरने के टेंडर की रकम में कोई कमी नहीं आई। पता चला है कि उमनपा द्वारा1प्रभाग में 15 लाख का टेंडर इस प्रकार 4 प्रभागों के लिए 60 लाख का टेंडर वो भी सिर्फ खड़ी डालने के लिए दिये जा रहे है, 2 साल पहले यही टेंडर 2 लाख रुपये प्रति प्रभाग निकाले गए थे, और अब प्रति प्रभाग 15 लाख दिये जा रहे हैं।

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