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भ्रष्ट उल्हासनगर महानगरपालिका स्टेनो बना सहायक आयुक्त!भ्रष्टाचारी गणेश अरविंद शिंपी पर आखिर कब होगी कार्रवाई?

झूंठ व भ्रष्टाचार का बोलबाला सच्चाई का मुंह काला उल्हासनगर महानगर पालिका में!!! 
उल्हासनगर मनपा में जिस भ्रष्ट कर्मचारी को चपरासी का मामुली काम दिया जाना चाहिए था, उस भ्रष्ट कर्मचारी को शासनादेश व नियम की अवहेलना कर सहायक आयुक्त बना दिया गया। एक मामूली  स्टेनोग्राफर जिसे एंटीकरप्शन की अधिकारी श्रीमती वैद्य ने रंगे हाथों रु.25000 की रिश्वत लेते पकङा था। उस भ्रष्ट कर्मचारी को नियमों को ताक पर रखकर उपायुक्त जैसा जिम्मेदारी वाला पद दिया जाता है। जबकि नियमानुसार इस भ्रष्टाचारी को कोई भी ऐसी जगह काम नहीं दिया जाना चाहिए था। जहां वह जनता के सीधा संम्पर्क में रहता।             लेकिन उल्हासनगर महानगरपालिका शायद जितना बड़ा भ्रष्टाचारी उतना बड़ा पद के नियमानुसार कार्यरत है। कई समाज सेवक व पत्रकार इस भ्रष्टाचारी को उसकी असली जगह पहुंचाने के लिए लड़ रहे हैं। परंतु उल्हासनगर महानगर पालिका में जो भी आयुक्त आता है वह अपनी कीमत पहले से तय कर लेता है, ऐसा जान पड़ता है। शायद इसीलिए यह भ्रष्टाचारी आज तक सहाय्यक आयुक्त के पद पर तैनात है। इसे हटाने के लिए तथा इसकी जांच करने के लिए हमने अपने अग्निपर्व टाइम्स हिन्दी मराठी द्विभाषी साप्ताहिक समाचार पत्र में अनेकों समाचार और लेख लिखे परंतु महानगर पालिका आयुक्त न जाने किस मजबूरी में हैं यह समझ में नहीं आता है। वंही महाराष्ट्र सरकार को उल्हासनगर महानगर पालिका के भ्रष्टाचार से शायद कुछ लेना देना नहीं या फिर उल्हासनगर की जनता को दुय्यम दर्जे का नागरिक समझा जाता है महाराष्ट्र सरकार द्वारा। इस भ्रष्टाचारी पर आख़िर किस नगर सेवक या किस भ्रष्ट नेता की छत्र छाया है यह जानना जरूरी है। आखिर उमनपा आयुक्त गणेश शिंपी की जांच क्यों नहीं करते जबकि यंहा ई.डी. और सीबीआई जैसी एजेंसी से जांच कराने की आवश्यकता है।              भ्रष्टाचारी गणेश अरविंद शिंम्पी के पास इतने पैसे कहां से आए इसका वेतन औऱ अय्याशी के कारनामों को देखकर इसकी रिश्वतखोरी का अंदाजा लगाया जा सकता है। भ्रष्टाचारी शिंपी के पास 4050 जैसे वी आई पी नंबर की इनोव्हा, क्रेटा, जैसी 4से5 गाडियां हैं, कई एकड़ जमीन और सदनिकाएं (फ्लैट) हैं। यह सारी संपत्ति एक मामूली स्टेनो- ग्राफर के पास कहाँ से आई यह जांच करने पर ही पता चल सकता है। 2013 से अब तक सीर्फ एक गाड़ी खरीदना और उसका रख रखाव करना जहाँ एक साधारण कर्मचारी के लिए मुश्किल होता है तब वहीं गणेश शिंपी के पास इतने पैसे कहाँ से आए। लॉकडाउन में शासन के नियमों को ताक पर रखकर अतिक्रमण विभाग के पदभार का दुरूपयोग कर इस भ्रष्टाचारी ने बिना अनुमति अवैध बहुमंजिला इमारतों और अवैध टियर गटर के बांधकामों को बढ़ावा दिया है। जहाँ इस लॉकडाउन के समय में लोगों को अपना घर चलाना मुश्किल है वंही इसके पास नित नई गाड़ी खरीदने के लिए लाखों रूपए कहाँ से आते हैं ? यह जांच का विषय है। जहाँ सरकार एक तरफ सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर रही है वंही गणेश शिंपी अय्याशियों के नित नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। आखिर कब होगा भ्रष्ट गणेश अरविंद शिंम्पी सलाखों के पीछे?? 


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