उल्हासनगर : उल्हासनगर के मध्यवर्ती पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ निरीक्षक शंकर अवताड़े ने रुपयों की लालच में, जून 2024 में एक झूंठी FIR दर्ज की। इस झूंठी FIR के विरोध में पुलिस के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में उतर गई हैं। उन्होंने दर्जनों पत्र वरिष्ठ अधिकारियों को पोस्ट किया और जांच की मांग की है।
बतादें नेकी के बदले विनोद खथुरिया ने मुझ पर झूंठी प्राथमिकी दर्ज करवाया था। उस मुकदमे में 15 जुलाई को मुझे जमानत मिल गई थी। विनोद पंजाबी ने मदद करने के बदले वसुली करने के लिए झूंठा FIR दर्ज करवाया था। 2023 के एप्रिल महीने में विनोद खथुरिया (पंजाबी) का फोन आया, सामने से कहा मैं मर रहा हूँ। आप देखने भी नहीं आये। मैने कहा ऐसा क्यों कह रहे हो? मैंने कहा मैं कैसे आऊ आप कहाँ रहते हो मुझे पता नहीं है। विनोद ने अपना पता बताया जो मेरे घर के नजदीक, शहीद दुनीचंद कालेज के पीछे ट्रांसपोर्ट वाली बिल्डिंग के पहली मंजिल पर है। विनोद ने कहा मैने मुंबई के जेजे अस्पताल में आप्रेशन कराया है। मैं न पैदल चल सकता हूँ और न ही रिक्शे पर और मैने जो जमीन खरीदी थी उस पर कलवा अवैध निर्माण कर रहा है। मैं क्या करुं मैने कहा आप पुलिस के 112 पर काल करो। और मैं अपने घर चला गया। दूसरे दिन फिर विनोद का फोन आया और कहा आप फ्री हो तो एक बार आ जाओ। बिमार व्यक्ति पैसे-पैसे को मोहताज क्योंकि अब तक मुझे पता चल गया था कि उसकी पत्नी और बेटी साथ नहीं रहते, पत्नी से तलाक हो चुका है। मैं उसके घर गया शायद कोई जरूरत होगी? पहुंचने पर उसने कहा बैठो, अभी दो जन और आ रहे हैं उनके साथ साईट पर जाकर काम बंद करा दो, मैने कहा मैं नहीं जाऊंगा और आये हुए दो व्यक्तियों को साईट पर भेज दिया। विनोद ने कहा मेरी मदद नहीं करोगे? मैने कहा पुलिस में शिकायत करो मैं वहाँ जाकर आपकी पैरवी कर दूंगा, परंतु साईट पर जाकर गाली गलौज और मारपीट में साथ नहीं दूंगा क्योंकि मैं पत्रकार हूँ, गुंडा नहीं। इस पर विनोद कहा मेरे नामपर एक एप्लीकेशन टाईप करवा लाओ जो मैं चोपड़ा कोर्ट के सामने से टाईप करवा लाया और बेटे से कहकर पुलिस थाने, महानगरपालिका, डीसीपी व एसीपी कार्यालय पहुंचवा दिया। स्थानीय पुलिस थाने जाकर निरीक्षक दिलिप फुलपगारे से मिला और तब तक आता जाता रहा जबतक काम बंद नहीं हो गया। काम बंद होने पर जमीन मालिक अनिल गुप्ता डेवलपर सुनील सिंह उर्फ कलवा का फोन विनोद को आने लगा और वह उसने आपस में बातें होने लगी, परंतु पुलिसस्टेशन पर मेरे द्वारा दबाव बनवाता रहा कि कलवा पर मुकदमा दर्ज करवाइए, मैं फुलपगारे साहब से मिलकर बातचीत करता रहा, एक दिन चाय के उपरांत निरीक्षक साहब ने कहा विनोद तुमसे और बात करता है और कलवा से कुछ और डबल क्रास कर रहा है दुबेजी सावधान हो जाइए, आप जितना समझ रहे हैं विनोद उतना सही व सीधा नहीं है। संयोग से उसी दिन कलवा अपना स्टेटमेंट देने थाने आया हुआ था। मुझे मिल गया और अपने रिस्तेदार के बर्तन की दुकान पर ले गया, जहाँ उसने मुझे बताया कि विनोद का ब्याज समेत सात लाख अनिल पर निकलता है। वह रुपया भी उसने रोकड़ा या फिर चेक से नहीं दिया था। उसने अनिल गुप्ता को दो बार अंबरनाथ पुलिस स्टेशन से छुड़ाया था और रिश्वत के रूप में कोते नामक पुलिस निरीक्षक को दिया था। परंतु आप कहेंगे तो मैं उसे बढाकर दे दूंगा परंतु मुझे काम करने देगा तब, अगर परेशान करेगा तो मैं काम छोड़ दूंगा मेरा तो लगा हुआ रुपया डूबेगा ही विनोद को भी कुछ नहीं मिलेगा।
अनिल गुप्ता को रूपया दिया
जमीन मालिक अनिल गुप्ता पर कत्ल की एफआईआर दर्ज न हो इसलिए अंबरनाथ पुलिस स्टेशन के तत्कालीन वरि निरीक्षक कोते को रिश्वत के रूप में दिये गये रुपयों के एवज में अनिल की जमीन का खरीदीखत विनोद की पत्नी के नाम तैयार किया गया। और मजे की बात यह है कि वह करारनामा भी फाड़ दिया गया। परंतु धूर्त विनोद पंजाबी ने उस करारनामे की छायांकित (झेराक्स) प्रति निकाल लिया था। जिसके आधार पर विनोद पंद्रह लाख की वसूली अनिल गुप्ता से कर रहा था। हमारे पास रिकार्डिंग मौजूद है जिसमें विनोद की पत्नी कह रही है मैने रुपये ब्याज पर लेकर दिये हैं, वह पत्नी जो तलाकशुदा है और अलग रह रही है। इस तरह की कहानी देखकर अक्षता को पुलिस पर क्रोध आया और वे मेरी लड़ाई में कूद पड़ी और लड़ रही हैं।
अक्षता ने सभी संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखा और कुछ के जवाब भी आये और उनमें जांच की बात कही गई है। परंतु जांच वही पुलिस थाना कर रहा है, जिसमें झूंठी प्राथमिकी दर्ज हुई थी वह भी एक कनिष्ठ पुलिस अधिकारी उमेश सावंत कर रहा है। जो जांच के नामपर सिर्फ अक्षता उत्तेकर को बार बार पुलिस स्टेशन बुलाकर उन्हीं का स्टेटमेंट दर्ज करता है। और कहता है तुम इस पचड़े में क्यो पड़ रही हो, वह लोग गुंडे हैं। पत्रकार लोग भी पैसे लेते हैं आदि आदि। हमारे महाराष्ट्र का पुलिस महकमा कितने ढंग व जिम्मेदारी से काम करता है यह आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं जब वरिष्ठ निरीक्षक की जांच उसी पुलिस थाने का कनिष्ठ कर्मचारी कर रहा हो। वैसे हमने उच्च न्यायालय जाने की तैयारी कर ली है अब देखना होगा कि न्यायालय ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों और पुलिस कर्मचारियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई करता है या नहीं?
टिप :- उल्हासनगर के डीसीपी, वरि.निरीक्षक शंकर अवताड़े, गुनाह शाखा अधिकारी उमेश सावंत सभी ने अवैध धंधों से वसुली के लिए अपने-अपने कलेक्टर रखे हुए हैं और यह बेशर्म लोग कहते हैं कि पत्रकार रुपये लेते हैं, तो यह भ्रष्टाचारी बतायेंगे की पत्रकारों को वेतन कौन देता है? तुम बेशर्मो को तो हर महीने लाख रुपये वेतन मिलता है। वेतन मिलने के बावजूद भी वसूली करते हो। पत्रकारों को रिश्वतखोर कहने से पहले शर्म से चुल्लू भर पानी में तुम सबको डूब मरना चाहिए। परंतु चमड़ी गैंडे से भी मोटी है असर नहीं पड़ेगा?
0 टिप्पणियाँ