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चंद्रशेखर आजाद विद्यामंदिर के अध्यापक अध्यापिकाओं को सीसीटीवी नहीं चाहिए ??

चरित्रहीनता आरोप में स्कूल से बर्खास्त सचिव को नहीं चाहिए स्कूल में कैमरा, कभी कपड़े से ढंकते हैं तो कभी तोड़कर फेंकते हैं, पुलिस में मामला दर्ज !! 

उल्हासनगर : उल्हासनगर कैम्प क्रमांक-2, आजादनगर में चंद्रशेखर आजाद विद्यामंदिर है, जहाँ कुछ महीनों से स्कूल के निर्माणकर्ता संचालक चंद्रकांत मिश्र व उनके अतिप्रिय रहे सचिव हरिश्चन्द्र जिनको सन 2021 में चरित्रहीनता के आरोप में स्कूल के संचालक मंडल से बर्खास्त किया गया है। उन्होंने स्कूल सीसीटीवी कैमरा लगाने का विरोध करते हुए, स्कूल को सूचारु रुप से चलाने के लिए प्रयासरत अर्चना मिश्रा के साथ अपशिष्ट व्यवहार किया गया। वह शिकायत श्रीमती मिश्रा ने उल्हासनगर पुलिसस्टेशन में दर्ज कराया है। अब हरिश्चंद्र के सहयोग उनकी सहायक अध्यापिका कभी कैमरे को कपड़े से ढंक देती है, कपड़ा हटाने पर कैमरे को ही तोड़कर फेक दिया ताकि रासलीला में कोई व्यवधान न पड़े। कैमरा तोड़कर फेकने का मामला भी पुलिसस्टेशन में दर्ज कराया गया है। अति तो तब हो गई जब, अध्यापिका ने हाजरी रजिस्टर ही फाड़कर फेक दिया। 
     हरिश्चंद्र यादव 

बतादें आजाद नगर में चंद्रशेखर आजाद विद्यामंदिर चंद्रकांत मिश्र की सोच का परिणाम है। यह उन दिनों की बात है जब आजाद नगर आजाद नगर नहीं था बल्कि एक बदनाम सी उबड़ खाबड़ गंदी जगह थी। वहां असामाजिक तत्व पुलिस से छिपने के लिए आते थे और गरीब लोग जो छोटे-छोटे कल कारखानों में नौकरी करनेवाले लोग अपने लिए झोपड़ी बनाकर रहते थे। चंद्रकांतमिश्र भी थाने की एक मिल में कार्यरत थे और उनके कुछ परिचित लोग भी यहीं रहते थे, जिनके अनुग्रह पर उन्होंने भी अपने लिए एक झोपड़ी बनाया और बाद में रहने भी आ गये। और धीरे-धीरे अपने नेतृत्व की क्षमता के बल पर उस वीरान जगह को आजादनगर बना दिया। वहॉं रहने वाले गरीबों के लिए कोई स्कूल नहीं था यह सोचकर घर के बगल खाली पड़े भूखण्ड जो गड्ढे के रुप में था, उस गड्ढे को धरमजी मोरारजी कंपनी से निकलने वाली राख से भरवाया समतल करवाया और 1974 में संस्था का छोटा सा कार्यालय बनाकर सुरक्षित कर लिया, 1984 में अपने मित्रों से मदद लेकर स्कूल के लिए दो कमरों का निर्माण कराया। इस कार्य में अग्निपर्व टाइम्स संपादक का भी गिलहरी सहयोग रहा। तब तक हरिश्चंद्र यादव का कोई पता ठिकाना नहीं था। 
स्कुल बन गया कुछ बच्चे भी आने लगे परंतु अबतक स्कूल को मान्यता नहीं मिली थी। मान्यता के लिए प्रयास शुरू था पर बिना कुछ लिए दिये मान्यता मिलने वाली नहीं थी और मिश्राजी कुछ देनेवाले नहीं थे। परंतु स्कूल को मान्यता मिलना तो कुदरत की ओर से तंय था यही कारण है कि एकदिन तत्कालीन कांग्रेस विधानपरिषद सदस्य रामतोलानी से मुलाकात हो गई और उन्होंने कहा "मिश्रा तू चक्कर मारता रहेगा तेरा काम नहीं होगा, ला कागजात मुझे दे" इस तरह उन्होंने सत्ता की पहुंच का उपयोग कर स्कूल को मान्यता दिलवा दी। स्कूल में कुछ बच्चे पढ़ने आने लगे थे इसी बीच संस्था के कोषाध्यक्ष लालकेश सिंह हरिश्चंद्र को सन 1994 में ले आये और कहा इनकी पत्नी पढ़ी लिखी है बच्चों को संभालने में मदद करेंगी, लालकेश सिंह और हरिश्चंद्र दोनों अमरडाय कंपनी में नौकरी करते थे और दोनों कंपनी बंद हो जाने से बहुत दुखी थे।हरिश्चंद्र दिनभर मिश्राजी के घर पर ही पड़े रहते थे, उनकी पत्नी को चाची और बच्चियों को बहन कहा करते थे। मिश्राजी ने यादव की पत्नी को अपने स्कूल में नौकरी ही नहीं दी बल्कि अपनी जान पहचान का उपयोग कर उनको सेवासदन कालेज में बीएड करने का मौका दिलवाया और हरिश्चंद्र को संचालक मंडल में सचिव का पद दिया अब पत्नी मुख्याध्यापिका और पति संस्था का सचिव इस तरह सारा स्कूल पति-पत्नी के सुपुर्द हो गया। और खुद मिश्राजी सिर्फ पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी को ही स्कूल में जाते रहे। हरिश्चंद्र सारा दिन स्कूल में ही रहने लगे और अध्यापिकाओं के लाये हुए टिफिन से भोजन का स्वाद लेना, हंसी-मजाक करना जो अध्यापिका इस कृत्य में शामिल न हो उसके कपड़ों और अंगो पर कमेंट पास करना हरिश्चंद्र की दिनचर्या बन गयी थी। 

मामला कैसे बिगड़ा 

हरिश्चंद्र यादव की पत्नी ने अपनी नौकरी पूरी की और सेवानिवृत्त हो गई अब हरिश्चंद्र अपनी बहू को उस जगह पर नियुक्त करना चाहते थे जबकि मिश्राजी की छोटी बेटी अर्चना पहले से ही बीएड कर किसी और स्कूल में अस्थायी शिक्षिका थी। अर्चना को जब पदस्थ करने की बात आयी तब हरिश्चंद्र आना कानी करने लगे और तरह तरह के बहाने बनाने लगे। फिर भी अर्चना बिना किसी वेतन के ही स्कूल में पढ़ाने लगी और अपने पिता के स्थान पर स्कूल के प्रशासकीय कार्यों की देखभाल करने लगी जिससे हरिश्चंद्र की स्कूल में चल रही कारगुजारियों को अपने पिता से बताया इसी बीच हरिश्चंद्र की बदनीयती खुलकर तब सामने आ गई जब एक अध्यापक ने हरिश्चंद्र के भद्दे भद्दे हंसी मजाक, कमेंट को मोबाइल में रेकार्ड कर अर्चना को दे दिया और उन्होंने वह रेकार्डिंग अपने पिता को सुनाया, कमेंट सुनकर यादव को 2021 में सचिव पद से हटा दिया। परंतु हरिश्चंद्र के मुख तो धन व मनसुख का खून लगा था वह कहां मानने वाला था उसने स्कूल को अपना कहना शुरू कर दिया, अध्यापकों में गुटबाजी करवा दिया। संस्थापक को ही दरकिनार कर नयी कमेटी बनाकर मुकदमा भी दाखिल कर दिया इस तरह हर हथकंडा अपनाकर स्कूल पर कब्जा जमाना चाहता है। आज स्कूल के जमीन की किमत करोड़ों में है स्कूल बंद हो गया तो जमीन बेचकर कमाई हो जायेगी शायद यही सोच कर हरिश्चंद्र ने अपने परिवार के लोगों का संस्था का सदस्य और पदाधिकारी बनाया है। विद्यालय की अवस्था जर्जर हो गयी थी, जिससे आहत मिश्र ने कुछ समाज सेवियों से कहकर मरम्मत और रंग रोगन का काम कराया साथ ही स्कूल में सीसीटीवी कैमरा भी लगवाया जिसका विरोध हरिश्चंद्र और महिला टिचर भी कर रही हैं क्यों? यह हमने ऊपर लिखा है। हरिश्चंद्र द्वारा अश्लील टिप्पणियों की आडियो और सीसीटीवी कैमरे पर कपड़े से ढ़कने के साथ ही तोड़कर फेकने का विडियो अग्निपर्व टाइम्स के पास मौजूद है। 

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